ओकारजी में हर जगह दिखता है धर्म का स्वरूप

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By News Desk
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परिक्रमा मार्ग पर पुरात्तव शिलालेख स्थापित सावन में निकलती है सवारी

मध्य प्रदेश के खंडवा जिले से 65 किलोमीटर की दूर पवित्र पावन सलिला मां नर्मदा के तट के विराजित स्वयंभू भूत भावन आशुतोष भगवान भोलेनाथ का ज्योतिर्लिंग राजा मांधाता की तपस्वी स्थली रही। मांधाता नगरी में विराजित होकर यह देश विदेश में विख्यात तीर्थ स्थल माना जाता है। यहां देश-विदेश से अनेक श्रद्धालु बड़ी संख्या में पवित्र श्रावण मास के पर्व पर आते है। जहां मां नर्मदा नदी के पवित्र जल में स्नान पूजन कर ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग महादेव के दर्शन कर अपने आप को धन्य समझते है। शास्त्रों की मान्यता अनुसार ओंकार ज्योतिर्लिंग पर सावन मास पर्व पर बेल पत्र चढ़ाने की अधिक मान्यता है। यह मंदिर नर्मदा जी के उत्तर तट पर स्थापित होकर अपनी छटा बिखेरता है। पवित्र नर्मदा नदी के दक्षिण तट पर ममलेश्वर महादेव का मंदिर होने से इनके दर्शनों का लाभ लेना भी शास्त्र अनुसार अनिवार्य माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार ओम्कारेश्वर ममलेश्वर महादेव मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंगों मे महत्वपूर्ण स्थान है। जिन्हें स्वयंभू भूतभावन आषुतोष ओंकारेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। चारों धाम की तीर्थ यात्राएं करने के बाद तीर्थयात्री ओम्कारेश्वर महादेव ज्योतिर्लिंग पर आकर जल समर्पित करते हैं। तब जाकर चारों धाम तीर्थ यात्राओं का लाभ भी श्रद्धालुओं को मिल पाता है।
सावन में 1 माह रहेगी भीड़-
यहां सावन मास के पावन माह में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते है । ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की देखरेख के लिए श्रीजी मंदिर ट्रस्ट वहां की व्यवस्था सम्हालता है। श्रावण मास के पावन माह में उचित दर्शन की तैयारियां की गई है।
सवारी के साथ करेंगे नोका विहार-
श्रावण मास में यहां सवारी निकाली जाती है। जिसमे भगवान ओमकारेश्वर की प्रतिमा को नर्मदा नदी के उत्तर तट पर पूजन जल अभिषेक आरती के पश्चात नौका विहार करवाया जाता है। इस अलौकिक दृश्य को देखने के लिए दूर दूर से श्रद्धालु आते है। नोका विहार के बाद ओकारजी नगर भ्रमण कर अपने भक्तों का हाल जानते है। इस अवसर पर दक्षिण तट पर विराजित ममलेश्वर महादेव की भी रजत प्रतिमा को नर्मदा नदी के पावन तट पर विद्वान ब्राह्मणों द्वारा मंत्रोचार के बाद ओंकार महाराज के साथ नगर भृमण करते है। नगर के मुख्य मार्ग से महा सवारियां भी निकलती है। यह प्रति श्रावण मास के सोमवार को आयोजित की जाती है। जिसमें भारी संख्या में स्त्री पुरुष भाग लेकर गुलाल एवं गुलाब की पुष्प वर्षा से सराबोर होकर भोले शंभू भोलेनाथ की जय घोष में रम जाते है। जिससे समूची ओमकार नगरी शिवमय हो कर गुंजायमान सुनाई देती है। सावन मास में हर कोई तीर्थ नगरी में आने के लिए आतुर रहता है।

 

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