प्रयागराज, जिसे तीर्थराज कहा जाता है, न केवल त्रिवेणी संगम के कारण विख्यात है, बल्कि यहां स्थित अनेक प्राचीन मंदिरों की आध्यात्मिक गरिमा भी इसे विशेष बनाती है। इन्हीं में से एक है नागवासुकी मंदिर, जो नागों के राजा वासुकि को समर्पित है। यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि पुराणों, लोक आस्था और ऐतिहासिक घटनाओं का जीवंत प्रमाण है। प्रयागराज नाग वासुकि मंदिर तीर्थयात्रियों के लिए एक अनिवार्य पड़ाव बन गया है। इस लेख में हम इस अद्भुत मंदिर की महत्ता, इतिहास, धार्मिक मान्यताओं और आधुनिक श्रद्धा के स्वरूप को विस्तार से जानेंगे।
नागवासुकी मंदिर का परिचय:-
नागवासुकी मंदिर उत्तर भारत के उन विरले स्थानों में है जहाँ नागों की पूजा इतनी श्रद्धा और विधिपूर्वक की जाती है। यह मंदिर प्रयागराज के दारागंज मोहल्ले में स्थित है और गंगा के तट पर विराजमान है। यह स्थान विशेषकर नाग पंचमी मंदिर प्रयागराज के रूप में प्रसिद्ध है क्योंकि नाग पंचमी के दिन यहां हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए उमड़ पड़ते हैं। मान्यता है कि त्रिवेणी संगम में स्नान के बाद यदि नाग वासुकि के दर्शन नहीं किए तो तीर्थयात्रा अधूरी मानी जाती है।
पौराणिक महत्व और समुद्र मंथन से जुड़ाव:-
नागवासुकी मंदिर का महत्व पुराणों में स्पष्ट रूप से वर्णित है। स्कंद पुराण, पद्म पुराण, भागवत पुराण और महाभारत में सर्पराज वासुकि का उल्लेख मिलता है। समुद्र मंथन की घटना में नाग वासुकि को रस्सी के रूप में प्रयोग किया गया था। मंदराचल पर्वत को मथानी बनाकर देवताओं और असुरों ने जब सागर मंथन किया, तो वासुकि नाग का शरीर रगड़ से छिल गया। अत्यधिक पीड़ा के बाद भगवान विष्णु के आदेश पर उन्होंने प्रयागराज नाग वासुकी मंदिर की भूमि पर विश्राम किया।
यह विश्राम स्थल ही कालांतर में नागवासुकी मंदिर बना। त्रिवेणी संगम में स्नान कर वासुकि नाग ने अपने घावों को शांत किया और फिर इसी भूमि पर विराजमान हो गए। उनके इस स्थायी निवास से यह स्थान आध्यात्मिक शक्ति का केंद्र बन गया|
ब्रह्मा के पुत्र ने की थी स्थापना:-
धार्मिक मान्यता के अनुसार जब नाग वासुकि प्रयाग छोड़ने को तैयार हुए तो देवताओं ने उनसे यहीं निवास करने की प्रार्थना की। नाग वासुकि ने शर्त रखी कि संगम स्नान के बाद मेरे दर्शन किए बिना किसी को पूर्ण फल नहीं मिलेगा। साथ ही सावन महीने की पंचमी को तीनों लोकों में मेरी पूजा की जानी चाहिए। यह मांग देवताओं ने स्वीकार की और फिर ब्रह्मा के मानस पुत्र ने इस मंदिर का निर्माण कर नाग वासुकी के दर्शन की परंपरा को स्थायी बना दिया।
औरंगजेब का मूर्छित होना – ऐतिहासिक संदर्भ:-
इतिहास के पन्नों में दर्ज एक रोचक कथा के अनुसार जब मुगल शासक औरंगजेब प्रयागराज आया, तो उसने मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया। जब वह नागवासुकी मंदिर के भीतर गया और विराट वासुकि नाग की मूर्ति को देखा, तो एक अद्भुत ऊर्जा से उसका शरीर कांपने लगा और वह मूर्छित हो गया। इस घटना के बाद उसने मंदिर को क्षति पहुँचाने का विचार छोड़ दिया। यह घटना न केवल मंदिर की शक्ति को दर्शाती है, बल्कि यह भी सिद्ध करती है कि नाग वासुकि मंदिर का महत्व राजाओं और बादशाहों तक भी पहुंचा था।
शिव के कंठहार – नाग वासुकि:-
नागवासुकी मंदिर का शिव से भी गहरा संबंध है। वासुकि नाग को भगवान शिव के कंठ में सुशोभित माना जाता है। यही कारण है कि सावन के महीने में यहाँ विशेष पूजन होता है। ऐसा माना जाता है कि नाग वासुकि के दर्शन करने से कालसर्प दोष जैसे ज्योतिषीय प्रभावों से मुक्ति मिलती है। श्रद्धालु सावन के सोमवारों में संगम स्नान कर सीधे इस मंदिर में आकर पूजा अर्चना करते हैं।
धार्मिक आयोजनों और नाग पंचमी का महत्व:-
नाग पंचमी मंदिर प्रयागराज में हर साल नाग पंचमी के दिन विशाल धार्मिक आयोजन होता है। इस दिन हजारों श्रद्धालु संगम स्नान के बाद मंदिर में दर्शन हेतु आते हैं। नागवासुकी मंदिर पर इस दिन विशेष पूजा, अभिषेक, दुग्धाभिषेक और आरती का आयोजन होता है। इस दिन को तीनों लोकों में नाग पूजा का दिन कहा जाता है और प्रयागराज में इसका विशेष रूप देखने को मिलता है।
त्रिवेणी संगम और पूर्ण तीर्थफल की प्राप्ति:-
यह मान्यता पुरानी है कि प्रयागराज में त्रिवेणी संगम का स्नान ही मोक्ष का मार्ग है। किंतु नागवासुकी मंदिर की विशेषता यह है कि संगम स्नान के बाद ही जब श्रद्धालु नाग वासुकि के दर्शन करते हैं, तभी उन्हें पूर्ण तीर्थफल की प्राप्ति होती है। इसी कारण हजारों तीर्थयात्री इस मंदिर में आते हैं, विशेषकर कुंभ और अर्धकुंभ के अवसर पर।
मंदिर की भौगोलिक स्थिति और संरचना:-
नागवासुकी मंदिर प्रयागराज के दारागंज मोहल्ले में स्थित है। यह स्थान गंगा तट पर होने के कारण अत्यंत रमणीय और शांति से परिपूर्ण है। मंदिर की वास्तुकला पारंपरिक हिन्दू शैली में है, जिसमें विशाल मंडप, गर्भगृह और कलात्मक मूर्तियां हैं। गर्भगृह में विराजमान नाग वासुकि की मूर्ति को देखकर श्रद्धालु अद्भुत आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव करते हैं।
नागवासुकी मंदिर की वर्तमान प्रासंगिकता:-
आधुनिक समय में भी नागवासुकी मंदिर की आस्था में कोई कमी नहीं आई है। यह मंदिर अब न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि संस्कृति और पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक भी बन गया है। यहाँ स्थानीय लोग बच्चों को नागों के प्रति करुणा और सम्मान का भाव सिखाते हैं। मंदिर में नियमित पूजा, कथा, और सामूहिक भजन होते हैं।
निष्कर्ष: आस्था का अमिट केंद्र:-
नागवासुकी मंदिर प्रयागराज की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान है। यह मंदिर न केवल समुद्र मंथन जैसी पौराणिक घटना से जुड़ा है, बल्कि आज भी लोगों की आस्था, विश्वास और अध्यात्म का जीवंत प्रतीक है। प्रयागराज नाग वासुकी मंदिर वह स्थल है जहाँ भक्ति, इतिहास, और प्रकृति का संगम होता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि जब तक श्रद्धालु नाग वासुकि के दर्शन नहीं कर लेते, प्रयागराज की तीर्थयात्रा अधूरी मानी जाती है।
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