सम्राट अशोक का नाम भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। वह केवल एक विजेता राजा नहीं थे, बल्कि अपने समय के महानतम शासकों में से एक थे, जिन्होंने युद्ध और रक्तपात के मार्ग से हटकर शांति, धर्म और करुणा के पथ को अपनाया। इस लेख में हम अशोक महान के जीवन, युद्धों, बौद्ध धर्म के प्रति उनकी आस्था और उनके अद्वितीय शासन की चर्चा विस्तार से करेंगे।
- अशोक का प्रारंभिक जीवन और मौर्य वंश में स्थान:-
अशोक का जन्म मौर्य सम्राट बिंदुसार और रानी धर्मा के पुत्र के रूप में हुआ था। कहा जाता है कि वे बचपन से ही तेजस्वी, पराक्रमी और बुद्धिमान थे। यद्यपि वे बिंदुसार के कई पुत्रों में से एक थे, परंतु उनकी मातृभूमि की सामाजिक स्थिति के कारण वे राजमहल की मुख्यधारा से थोड़े दूर रहे।
उनकी शिक्षा-दीक्षा राजकुमारों के अनुरूप हुई, जिसमें युद्ध कौशल, राजनीति, प्रशासन और शास्त्रों की जानकारी शामिल थी। किशोरावस्था में ही अशोक ने अपनी वीरता और युद्धकौशल से मौर्य साम्राज्य के उच्च पदाधिकारियों और जनमानस का ध्यान आकर्षित किया।
सम्राट बिंदुसार ने अशोक को अवंती (वर्तमान उज्जैन) का गवर्नर नियुक्त किया। वहाँ के शासन में उन्होंने अपनी नेतृत्व क्षमता और न्यायप्रियता का प्रदर्शन किया। उज्जैन में रहते हुए ही अशोक ने देवी नामक महिला से विवाह किया, जो आगे चलकर उनके पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा की माता बनीं।
जब बिंदुसार की मृत्यु हुई, तो मौर्य साम्राज्य के सिंहासन के लिए संघर्ष शुरू हुआ। अशोक ने अपने भाइयों के विरुद्ध युद्ध किया और लगभग चार वर्षों तक चले संघर्ष के बाद वह सम्राट बने। यह सत्ता प्राप्ति का मार्ग सरल नहीं था, किंतु यह बताता है कि अशोक में नेतृत्व, साहस और रणनीति की अद्वितीय शक्ति थी।
- कलिंग युद्ध: जीवन का निर्णायक मोड़:-
अशोक के शासनकाल का सबसे निर्णायक और क्रांतिकारी क्षण था – कलिंग युद्ध। यह युद्ध 261 ईसा पूर्व में हुआ था। कलिंग (वर्तमान ओडिशा) एक स्वतंत्र राज्य था जो मौर्य साम्राज्य के अधीन नहीं था। अशोक ने इसे साम्राज्य में शामिल करने के लिए एक विशाल सैन्य अभियान शुरू किया।
कलिंग युद्ध अत्यंत रक्तरंजित था। ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार, इस युद्ध में लगभग 1 लाख लोगों की मृत्यु हुई, 1.5 लाख लोग बंदी बनाए गए और कई लाख लोग घायल या बेघर हुए। युद्ध के बाद की स्थिति अत्यंत भयावह थी – जलते गाँव, रोते बच्चे, विधवा स्त्रियाँ और वीरान धरती।
युद्ध समाप्त होने के बाद, अशोक विजयी तो हुए, परंतु विजयी राजा की जगह उनके मन में एक अपराधबोध भरे साधु का हृदय जन्म ले चुका था। उन्होंने युद्ध के मैदान का निरीक्षण किया और वहाँ की पीड़ा, करुणा और विनाश देखकर भीतर से टूट गए।
यह घटना उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट बनी। कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने हिंसा का त्याग कर दिया और उन्होंने आत्म-मंथन करते हुए अहिंसा, करुणा और धर्म का मार्ग अपनाया। उन्होंने सार्वजनिक रूप से घोषणा की कि अब वह तलवार नहीं, बल्कि नैतिकता और सदाचार के बल पर साम्राज्य का विस्तार करेंगे।
- बौद्ध धर्म की ओर झुकाव और दीक्षा:-
कलिंग युद्ध के बाद अशोक को आत्मिक शांति की खोज हुई, और इस खोज ने उन्हें बौद्ध धर्म की ओर आकर्षित किया। उन्होंने बौद्ध भिक्षुओं के संपर्क में आकर धम्म (धर्म) के सिद्धांतों को समझा। विशेष रूप से भिक्षु उपगुप्त ने अशोक को गहराई से प्रभावित किया।
अशोक ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली और जीवन के शेष भाग को बुद्ध के विचारों के प्रचार-प्रसार में समर्पित कर दिया। उनके शासन में बौद्ध धर्म एक राज्यधर्म के रूप में निखर कर सामने आया, किंतु उन्होंने किसी अन्य धर्म पर प्रतिबंध नहीं लगाया। यह उनकी धार्मिक सहिष्णुता का प्रमाण है।
उन्होंने ‘धम्म’ की एक व्याख्या प्रस्तुत की जिसमें अहिंसा, सत्य, संयम, करुणा, सम्मान और नैतिकता को प्राथमिकता दी गई। उन्होंने बौद्ध धर्म को एक सामाजिक और नैतिक अनुशासन के रूप में अपनाया, न कि केवल एक धार्मिक पद्धति के रूप में।
उनके दो प्रमुख कार्य इस दिशा में उल्लेखनीय हैं:
- बौद्ध परिषदों का आयोजन – अशोक ने तीसरी बौद्ध संगीति (council) का आयोजन पाटलिपुत्र में कराया जिसमें बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को संरक्षित करने की दिशा में ठोस कदम उठाए गए।
- महेंद्र और संघमित्रा का विदेश गमन – अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु श्रीलंका भेजा, जहाँ उन्होंने अनगिनत लोगों को बुद्ध के मार्ग पर चलने को प्रेरित किया।
- अशोक का प्रशासन और धम्म नीति:-
बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को अपनाने के बाद अशोक का शासन पूरी तरह बदल गया। उन्होंने प्रशासनिक स्तर पर कई सुधार किए, जिनका उद्देश्य केवल कानून और व्यवस्था बनाए रखना नहीं, बल्कि जनता को नैतिक और शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए प्रेरित करना था।
उन्होंने ‘धम्म महामात्र’ नामक अधिकारियों की नियुक्ति की जो पूरे साम्राज्य में घूम-घूमकर लोगों को नैतिकता, सत्य और करुणा का उपदेश देते थे। इन अधिकारियों का काम न केवल बौद्ध धर्म का प्रचार करना था, बल्कि सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता बनाए रखना भी था।
अशोक ने कई जनकल्याणकारी योजनाएँ शुरू कीं:
यात्रियों के लिए सरायों और कुओं का निर्माण।
अस्पतालों और औषधालयों की स्थापना।
पशु चिकित्सालयों की शुरुआत।
वृक्षारोपण और सड़कों के किनारे छायादार वृक्षों की व्यवस्था।
अशोक ने यह सिद्ध कर दिया कि एक सम्राट की महानता उसकी तलवार से नहीं, बल्कि उसके धर्म और सेवा भाव से आंकी जाती है। उनके शासनकाल में अपराध दर में भारी गिरावट आई और लोगों में नैतिकता और अनुशासन का भाव विकसित हुआ।
- अशोक के शिलालेख और स्तंभ: धम्म का प्रसार:-
अशोक महान का एक अद्वितीय कार्य था – शिलालेखों और स्तंभों के माध्यम से अपनी नीति और धम्म का प्रचार। उन्होंने अपने आदेशों, नैतिक उपदेशों और बौद्ध सिद्धांतों को शिलाओं और खंभों पर खुदवाया जो आज भी भारत, नेपाल, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में पाए जाते हैं।
इन शिलालेखों को ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपि में लिखा गया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि अशोक ने विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों को ध्यान में रखकर संदेश प्रसारित किया। उन्होंने केवल बौद्ध धर्म का प्रचार नहीं किया, बल्कि धार्मिक सहिष्णुता, माता-पिता के प्रति कर्तव्य, महिलाओं के अधिकार, और पशु-पालन जैसी विषयों पर भी संदेश दिए।
सबसे प्रसिद्ध स्तंभ: सारनाथ का अशोक स्तंभ – आज भारत का राष्ट्रीय प्रतीक बना हुआ है। इसमें चार सिंहों का समूह है जो चार दिशाओं में मुँह करके खड़े हैं और नीचे ‘धम्म चक्र’ (अशोक चक्र) अंकित है।
अशोक के शिलालेख आज भी इतिहासकारों के लिए अमूल्य स्रोत हैं जो उस समय की शासन व्यवस्था, भाषा, धर्म और सामाजिक जीवन को समझने में मदद करते हैं। यह दुनिया की पहली ऐसी प्रणाली थी, जिसमें शासक ने सार्वजनिक रूप से अपनी नीतियों को जनता के साथ साझा किया।
- अशोक की विरासत और आधुनिक भारत पर प्रभाव:-
अशोक की मृत्यु लगभग 232 ईसा पूर्व मानी जाती है। उनकी मृत्यु के बाद मौर्य साम्राज्य धीरे-धीरे पतन की ओर बढ़ा, किंतु अशोक की विचारधारा कभी नहीं मरी। उनका जीवन और शासन आज भी न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया में आदर्श माना जाता है।
अशोक की विरासत के प्रमुख पहलू:
भारतीय संविधान और ध्वज में स्थान – भारत का राष्ट्रीय चिह्न अशोक स्तंभ से लिया गया है, और राष्ट्रीय ध्वज में मौजूद ‘अशोक चक्र’ उनकी धम्म नीति का प्रतीक है।
बौद्ध धर्म का वैश्विक प्रसार – अशोक की कोशिशों से बौद्ध धर्म श्रीलंका, म्यांमार, चीन, जापान, थाईलैंड आदि देशों में पहुँचा।
गांधीजी और अशोक – महात्मा गांधी ने अहिंसा के सिद्धांत को अपनाते समय अशोक को अपना प्रेरणास्रोत माना।
अशोक ने यह प्रमाणित कर दिया कि एक सच्चा राजा केवल तलवार नहीं चलाता, बल्कि दिलों पर शासन करता है। उनकी नीतियाँ आज भी राजनीति, धर्म और प्रशासन के लिए मार्गदर्शक हैं।
7.उपसंहार: क्यों अशोक को “महान” कहा जाता है?
अशोक को “महान” केवल इसलिए नहीं कहा जाता कि उन्होंने विशाल साम्राज्य पर शासन किया, बल्कि इसलिए क्योंकि उन्होंने सत्ता का उपयोग विनम्रता, करुणा और सेवा के लिए किया। उन्होंने धर्म को राजनीति का उपकरण नहीं बनाया, बल्कि नीति और नैतिकता को शासन का आधार बनाया।
उनकी महानता इस बात में है कि उन्होंने अपने सबसे भयानक युद्ध के बाद आत्मज्ञान प्राप्त किया, और सत्ता के सर्वोच्च शिखर से नीचे उतरकर जनता के कल्याण का मार्ग चुना। अशोक इतिहास का वह दीपक हैं, जिसकी लौ आज भी मार्गदर्शन करती है।
- अशोक का अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण और सांस्कृतिक कूटनीति:-
सम्राट अशोक केवल भारतीय उपमहाद्वीप तक ही सीमित नहीं रहे, उन्होंने बौद्ध धर्म और भारतीय संस्कृति को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुँचाया। उन्होंने अपने दूतों को श्रीलंका, अफगानिस्तान, यूनान (ग्रीस), मिस्र और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में भेजा। महेंद्र और संघमित्रा की श्रीलंका यात्रा तो ऐतिहासिक रही ही, साथ ही अन्य देशों में भी उन्होंने धार्मिक शांति और नैतिक मूल्यों के संदेश पहुँचाए।
अशोक के शासनकाल में भारत एक सांस्कृतिक महाशक्ति के रूप में उभरा। उन्होंने अपने संदेश में यह बात बार-बार दोहराई कि सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए और विविधता में ही एकता है। उनके ऐसे विचार आज के ‘सांस्कृतिक कूटनीति’ (Cultural Diplomacy) के आधार बन सकते हैं।
- अशोक और सामाजिक सुधार: महिलाओं और पशुओं के प्रति करुणा:-
अशोक ने शासन में नैतिकता को स्थापित करने के साथ-साथ समाज के वंचित वर्गों, विशेष रूप से स्त्रियों और पशुओं के अधिकारों की भी सुरक्षा की। उन्होंने स्त्रियों की शिक्षा, पुनर्विवाह और गरिमा की बात की। उन्होंने पशुबलि पर रोक लगाई और अस्पतालों की स्थापना करवाई, जहाँ पशुओं का भी इलाज होता था।
उनके शिलालेखों में बार-बार यह संदेश आता है कि सम्राट को अपनी प्रजा की तरह जानवरों की भी चिंता करनी चाहिए। यह एक समय था जब पशुओं के प्रति करुणा और पर्यावरण-संरक्षण की बात कहीं नहीं होती थी, अशोक ने इसे राज्य की नीति बना दिया।
- अशोक की धम्म नीति बनाम धार्मिक प्रचार: एक संतुलित दृष्टिकोण:-
अशोक ने बौद्ध धर्म को जरूर अपनाया, परंतु उन्होंने कभी भी इसे दूसरों पर थोपा नहीं। उनकी ‘धम्म नीति’ धर्म से ऊपर उठकर मानव धर्म की बात करती थी। उन्होंने अन्य धर्मों – जैसे जैन, ब्राह्मणवाद और आजीवक संप्रदाय – के प्रति सम्मान और सहिष्णुता बरती।
यहां तक कि उनके शिलालेखों में यह बात स्पष्ट रूप से अंकित है कि “कोई भी व्यक्ति किसी अन्य धर्म की निंदा न करे, बल्कि अपने-अपने धर्म की अच्छाइयों को समझे और दूसरों की अच्छाइयों की सराहना करे।” यह आज के सेक्युलरिज़्म (धर्मनिरपेक्षता) की जड़ है।
- अशोक के बाद मौर्य साम्राज्य का पतन और कारण:-
अशोक के निधन के बाद मौर्य साम्राज्य का पतन शीघ्रता से शुरू हो गया। इसके प्रमुख कारणों में उत्तराधिकारियों की कमजोरी, सैन्य विस्तार का अभाव, और राजस्व व्यवस्था की गिरावट शामिल थी। अशोक के उत्तराधिकारी उनके जैसे प्रभावशाली नहीं रहे और साम्राज्य छोटे-छोटे टुकड़ों में बँट गया।
हालांकि कुछ इतिहासकार मानते हैं कि अशोक की धम्म नीति ने साम्राज्य को सैन्य दृष्टि से कमजोर किया, परंतु अन्य इतिहासकार इसे एक महान नैतिक प्रयोग मानते हैं जो दीर्घकालिक सांस्कृतिक विरासत छोड़ गया।
- अशोक की स्मृति और आधुनिक भारत में पुनर्जागरण:-
अशोक का नाम सदियों तक भुला दिया गया था। लेकिन 19वीं सदी में ब्रिटिश पुरातत्वविद् जेम्स प्रिंसेप द्वारा ब्राह्मी लिपि के अनुवाद और अशोक के शिलालेखों की खोज से उनका नाम पुनः प्रकाश में आया। इसके बाद स्वतंत्र भारत ने उन्हें राष्ट्रीय प्रतीकों में स्थान देकर उनका पुनर्जीवन किया।
अशोक चक्र, अशोक स्तंभ और ‘धम्म नीति’ आज भी भारतीय नीतियों, शासन व्यवस्था और नैतिकता का मार्गदर्शन करती है। उनके नाम पर पुरस्कार, सड़कें, विश्वविद्यालय, रेलवे स्टेशन और विमानन सेवाएँ आज मौजूद हैं – यह उनके विचारों की अमरता का प्रमाण है।
- अशोक पर वैश्विक दृष्टिकोण: दुनिया की नज़रों में एक महान सम्राट:-
अशोक को विश्व इतिहास में नैतिक शासन और धार्मिक सहिष्णुता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। संयुक्त राष्ट्र सहित कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने अशोक की विचारधारा को शांति, सहअस्तित्व और विकास के मार्ग में उपयोगी माना है।
यूनानी इतिहासकार मेगस्थनीज़ से लेकर आधुनिक शिक्षाविदों तक, अशोक को ‘The Righteous Ruler’ (धार्मिक राजा) की संज्ञा दी गई है। वे आधुनिक युग के लिए आदर्श ‘Ethical Governance’ के प्रतीक बन गए हैं।
निष्कर्ष: इतिहास का राजा या युगों का मार्गदर्शक?
इस उपशीर्षक के अंतर्गत आप सम्राट अशोक की समग्र छवि को समेट सकते हैं—वह कैसे एक सामान्य विजेता से “धम्म सम्राट” बने, उनका शासन क्यों आज भी अनुकरणीय माना जाता है, और उन्होंने भारतीय संस्कृति, राजनीति व नैतिकता को किस तरह आकार दिया। यह खंड लेख को पूर्णता और गहराई देगा।
(FAQ)
प्रश्न 1: सम्राट अशोक कौन थे?
उत्तर: सम्राट अशोक मौर्य वंश के तीसरे शासक थे जिन्होंने लगभग 268 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व तक भारत पर शासन किया। वे महान विजेता, कुशल प्रशासक और बाद में बौद्ध धर्म के अनुयायी बनकर शांति व अहिंसा के प्रतीक बने।
प्रश्न 2: सम्राट अशोक का शासनकाल कब था?
उत्तर: सम्राट अशोक का शासनकाल 268 ईसा पूर्व से लेकर 232 ईसा पूर्व तक रहा। यह मौर्य साम्राज्य का सबसे समृद्ध और शक्तिशाली दौर माना जाता है।
प्रश्न 3: अशोक ने बौद्ध धर्म कब अपनाया?
उत्तर: कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाया। इस युद्ध की विभीषिका और रक्तपात से व्यथित होकर उन्होंने अहिंसा, करुणा और धर्म के मार्ग को चुना।
प्रश्न 4: सम्राट अशोक ने कौन-कौन से धर्म कार्य किए थे?
उत्तर: अशोक ने अनेक बौद्ध स्तूप, विहार और शिलालेख बनवाए। उन्होंने बौद्ध भिक्षुओं को विदेशों में धर्म प्रचार के लिए भेजा, जैसे श्रीलंका, नेपाल, मिस्र आदि। उन्होंने ‘धम्म नीति’ का प्रचार किया।
प्रश्न 5: अशोक के सबसे प्रसिद्ध शिलालेख कौन से हैं?
उत्तर: अशोक के प्रमुख शिलालेख हैं — लुम्बिनी स्तंभ लेख, प्रयाग शिलालेख, कंधार शिलालेख, और गिरनार शिलालेख। इन शिलालेखों में उन्होंने धर्म, नैतिकता और शासन के सिद्धांतों का वर्णन किया है।
प्रश्न 6: कलिंग युद्ध क्या था और इसका अशोक पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर: कलिंग युद्ध 261 ईसा पूर्व में अशोक और कलिंग राज्य के बीच लड़ा गया था। इसमें भारी जनहानि हुई। युद्ध के बाद अशोक ने हथियार त्यागकर बौद्ध धर्म अपनाया और मानवता की सेवा को अपना लक्ष्य बनाया।
प्रश्न 7: सम्राट अशोक की मृत्यु कैसे हुई थी?
उत्तर: सम्राट अशोक की मृत्यु 232 ईसा पूर्व में हुई। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने अंतिम समय तक बौद्ध धर्म का प्रचार और प्रजा की सेवा की।
प्रश्न 8: सम्राट अशोक को ‘अशोक महान’ क्यों कहा जाता है?
उत्तर: सम्राट अशोक को ‘अशोक महान’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे विजय से विवेक और युद्ध से शांति की ओर बढ़े। उन्होंने बौद्ध धर्म को वैश्विक स्तर पर फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रश्न 9: अशोक चक्र क्या है और इसका क्या महत्व है?
उत्तर: अशोक चक्र सम्राट अशोक द्वारा धर्म प्रचार के प्रतीक रूप में अपनाया गया 24 तीलियों वाला चक्र है, जो अब भारतीय ध्वज का हिस्सा है। यह धर्म, गति और न्याय का प्रतीक है।
प्रश्न 10: सम्राट अशोक की विरासत आज भी कैसे जीवित है?
उत्तर: अशोक की विरासत आज भी भारत के राष्ट्रीय प्रतीकों में जीवित है — जैसे अशोक स्तंभ (राष्ट्रीय प्रतीक), अशोक चक्र (राष्ट्रीय ध्वज में), और उनकी अहिंसा की नीति आज भी प्रेरणा देती है।
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