सवालों के घेरे में वन विकास निगम-आंचलिक ख़बरें-मनीष शर्मा के साथ सत्येन्द्र वर्मा

News Desk
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अवैध पेड़ कटाई से उजडते वन आखिर जिम्मेदार कौन..?

बिलासपुर। अवैध पेड़ कटाई से वनों का उजडऩा आज भी बदस्तूर जारी है वनों का विलुप्त होना ये कोई नई बात नही बल्कि ये सिलसिला तत्कालीन मध्यप्रदेश प्रदेश के समय से चला आ रहा है विडंबना ही है कि जिन लोगों पर वनों की सुरक्षा का भार सौपा जाता रहा है वही लोग वनों को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करते रहे है। इसका प्रमाण प्रदेश के जंगलों को देख कर लगाया जा सकता है।अगर यह कहा जाए कि प्रदेश के वन चोरों और तस्करों के हवाले है तो यह कहना अतिश्योक्ति नही होगी।आखिर सरकार और उसके नुमाइंदे वनों के महत्व को क्यो नजरंदाज कर रहे है।वे उनकी सुरक्षा व्यवस्था के प्रति इतने लापरवाह क्यों है.?

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इल्म हो कि प्राचीन काल से ही वन मनुष्य के जीवन में विशेष महत्व रखते थे। यह मानव जीवन के लिए प्रकृति के अनुपम उपहार हैं। हमारे वन पेड़-पौधे ही नहीं अपितु अनेकों उपयोगी जीव-जंतुओं व औषधियों का भंडार हैं। इतना ही नही वन पृथ्वी पर जीवन के लिए अनिवार्य तत्व हैं यह प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने में पूर्णतया शक होते है। यह भी ज्ञात हो कि प्राचीन काल से ही हमारे पूर्वजों, ऋ षियो-मुनियों व संतो के लिए वन तपोभूमि रही है और इन्ही वनों में महान ऋ षियोँ के आश्रम भी रहे जहा वे अपने शिष्यों के साथ निवासरत रहते थे।और इन ऋ षियोँ का समाज मे विशेष स्थान था जिन्हें लोग बड़ी श्रद्धा एवं विशवास से देखते थे। लेकिन अफसोस तो इस बात का है कि जंगल के अधिकारियों ने वनों को चोरो और तस्करों के हाथों मानो बेच दिया हो। इस संदर्भ में जब हमारे ‘संवाददाताÓ ने उजड़ते हुए वनों के बारे में वहाँ के रेंजर ‘गोस्वामीÓ से जब सवालों के घेरे में लिया तो उन्होंने कहा कि जंगल मे थिनिग का कार्य चल रहा है और यह तब चलता है जब पौधा लगभग 11 साल में एक परिपक्व वृक्ष का रूप ले लेता है।जंगल मे थिनिग का आदेश वन विभाग के उच्च अधिकारी द्वारा प्रदान किया जाता है इतना ही नही जब थिनिग के बाद पेड़ की कटाई की जाती है तो उसमें हैमर व नम्बर डाले जाते है और उसका पूरा रिकॉर्ड भी रखा जाता है। लेकिन यहाँ जिन ‘हरा सोनाÓ अर्थात सागौन के परिपक्व पेड़ो की कटाई की जा रही है उसकेे कटे हुए ठूठ में ना हैैमर है और ना ही कोई नंबर, इससे साफ जाहिर होता है कि वनोंं की सुरक्षा में तैनात अधिकारी ने वनों को तस्करोंं के हवाले कर दिया हैं। आखिर ऐसे गैरजिम्मेदार अधिकारियों से भला जंगल की सुरक्षा कैसे संभव है। इतना ही नही जंगलों की सुरक्षा में नियुक्त अधिकारी एवं कर्मचारियों द्वारा वनों की सुरक्षा में लापरवाही का ही परिणाम है कि जंगलों में परिपक्व सागौन वृक्ष पर बिना हैमर व नंबर के गोला व ठूठ का पाया जाना अपने  कर्तव्यों के प्रति लापरवाह होने की तरफ इंगित करता है और वन विकास निगम को सवालों के कटघरे खड़ा करने के लिये पर्याप्त है।                 इल्म हो कि यहाँ बात हो रही है वह विकास निगम रेँज कोटा दवनपुर के दवन खार कक्ष क्रमांक 169 का जहां पर बेशकीमती सागौन के परिपक्व वृक्षों की अवैध कटाई की जा रही है और सम्भवत: उस कटाई को थिनिग का नाम दिया जा रहा है। इतना ही नही यहां वनों की सुरक्षा के लिए रेंज अफसर, डिप्टी रेंजर, बीट गार्ड और चौकीदार मौजूद है, किन्तु ग्रामीणों के कथनानुसार निगम के कोई भी अधिकारी यहाँ जंगलों में सुरक्षा गश्त के लिये आते ही नही, इसलिए रात में सागौन के तस्कर आरी लेकर पेड़ को काटकर ले जाते है इतना ही नही ग्रामीणों ने तो यहां तक कहा कि रात की बात तो छोडिये दिन में यहाँ अधिकारी नही आते है ऐसा लगता है कि ये जंगल की कटाई अधिकारी और तस्करों के मेलजोल का ही परिणाम है। अत: वन विकास निगम के जंगलों में इन दिनों  इमरती लकडिय़ों की जो तस्करी दिनदहाड़े अवैध कटाई के रूप में की जा रही है। ये काफी शर्मनाक है इस ओर सरकार को ध्यान देना चाहिए। इतना ही नही वन विकास निगम के अधिकारी मौड़े पर जाकर मुआयना करने के बजाय मामले को रफादफा करने के लिए ‘पत्रकारÓ को रिश्वत देने की कोशिश करते है ऐसी ही एक कोशिश हमारे संवाददाता से कोटा में पदस्थ रेंजर गोस्वामी ने भी की थी,  और ये भी रोना रोया था कि जब हम कुछ गाडिय़ों को पकड़ते है तो मीडिया वाले उस बारे में नही लिखते है लेकिन जब कोई छोटी सी बात हो जाती है तो वे उसी के पीछे पड़ जाते है, आखिर सरकार हमे अपनी इफाजत के लिए रायड़ल जैसे कोई साधन तो देती नही है हमें अपनी सुरक्षा मात्र डंडे से करनी पड़ती है यह बात तो गोस्वामी रेंजर ने सही कहा है। लेकिन क्या वे नही जानते कि जब कभी ऐसा मौके आये तो पुलिस उनकी सहायता के लिए हर वक्त मौजूद है लेकिन ये पुलिस की मदद ही लेना नही चाहते। खैर छोड़ो इन बातों को वह बात करे जो संवाददाता से रेंजर गोस्वामी ने साफ-साफ कहा है कि 500-1000 रुपये के लिये आप लोग ऐसा क्यों करते हो, आप मुझसे आ के मिलो, जब संवाददाता ने पूछा कि आपका एस. डी. ओ.कौन है तो गोस्वामी ने सीधा जवाब दिया कि मैं ही निगम का रेंजर हूँ, मैं ही डी. एफ.ओ. और मैं ही एस. डी. ओ.हूँ। एक रेंजर ने इतनी बड़ी बात बड़ी ही आसानी से कहा दी और यह भी बता दिया कि मेरे अधिकारी भी मेरे ही अधीन है। आखिर गोस्वामी के इस कथन का क्या मतलब निकाला जाए। जो पत्रकार की कीमत 500 से 1000 रुपये लगा रहा हो तो वो अपने वरिष्ठ अधिकारियों की कीमत भी तय कर चुका होगा। सन 2017 से कोटा में पदस्थ रेंजर गोस्वामी अम्बिकापुर से ताल्लुकात रखते है और वे अपने आप को टी.एस. सिंहदेव का दायां हाथ बताते है। ये सब बातें उन्होंने प्रेस प्रतिनिधि से फोन पर कही है जो फोन द्वारा रिकार्डिंग किया गया है।उनका ऐसा कहना एक धमकी था या बड़बोलापन और वे मंत्री सिंहदेव के खास है भी की नही यह तो जाँच का विषय है। इतना ही नही वन अधिकारी द्वारा उडऩदस्ता टीम बनाकर वाहनों से जंगलों के सुरक्षा की बात तो कही जा रही है। लेकिन फिर भी जंगल से सागौन जैसे इमारती लकडिय़ों की आरे से अवैध कटाई भी हो रही है। इसका मतलब यह है कि उडऩदस्ता का गश्तीदल जंगलों की सुरक्षा में नाकाम साबित हो रहा है या फिर तस्करों से हाथ मिला चुका है। यह भी अजीब विडंबना ही है वनों के विनाश का भी संभवत: वन विभाग के अधिकारियों द्वारा ही हो रहा है। इतना ही नही सागौन के परिपक्व पेड़ों की अवैध कटाई को रेंजर की करतूतों छिपाने अब जिम्मेदार अधिकारी थिनिंग बता रहे है। अगर ग्रामीणों की बातों पर गौर करे तो अधिकारी अपने कर्तव्य के प्रति सजग़ नही है वे सरकार की आँखों मे धूल झोंक कर अपना उल्लू सीधा कर रहे है। इल्म हो कि लकड़ी चोरो व तस्करों द्वारा दिन के उजाले में ये लोग सागौन के मोटे और सीधे परिपक्व पेड़ों पर निशान लगा कर चले जाते है और रात के अंधेरे में निशान लगे पेड़ो को काट ले जाते है लकड़ी तस्करो का यह कार्य निरन्तर चलता रहता है। सन 2000 के आस-पास बेलगहना के जंगलों की कटाई में लकड़ी तस्करों ने इसी तरकीब से काम लिया था। संभवत: यही तरकीब का इस्तेमाल कर के अब वे कोटा के दावनखार जंगलों की कटाई भी कर रहे होंगे,और अधिकारियों द्वारा जंगलों के निरीक्षण ना किया जाना उनके हौसले बुलंद कर रहा है ज्ञात हुआ है कि कुछ समय पूर्व शनिवार की बात है चोरो द्वारा दवनपुर सड़क मार्ग किनारे कक्ष क्रमांक 169 में सागौन के तीन परिपक्व पेड़ो को लकड़ी तस्करों ने आरे मशीन से इतनी सफाई से काट कर ले गए कि पता ही नही चला। इस संबंध में वहाँ जंगल के चौकीदार ओमप्रकाश का कहना है कि रात में मेरी तबीयत खराब हो गई थी, जिसकी सूचना मैंने बीट गार्ड सुकृत ध्रुव को दी थी। लेकिन बीट गार्ड ने रात में गशत नही किया। जिससे चोर पिकअप ले कर रात में आये और बेखौफ आरे से पेड़ काट कर ले गए। वहां के ग्रामीणों का आरोप है कि बीट गार्ड सुकृत ध्रुव अपने ड्यूटी के दौरान शराब के नशे में रहता है और सप्ताह में दो तीन दिन ही जंगल आता है। इसका तात्पर्य यह है कि तस्करों द्वारा सागौन की अवैध कटाई की सूचना ना तो रेंज अफसरों को दी गई और ना ही उडऩदस्ते की की टीम को ऐसे में वनों के विनाश में अधिकारियों और तस्करों की सांठ-गांठ की आशंका तो बनती ही है। फिलहाल रेंज ऑफिसर अभिनंदन गोस्वामी ने जंगल में सागौन पेड़ों की कटाई पर अपनी अनिभिज्ञता जाहिर करते हुए कहा कि यदि कटाई हुई है तो उसकी जाँच करवाया जायेगा और जाँच के बाद कार्यवाह करवायेंगे। विडंबना ही है जब जँगल कट गया उसके बाद जाँच करवायेंगे। यह तो वही बात हुई  ‘साँप के चले जाने के बाद लकीर पीटनाÓ वाली कहावत को ही चरितार्थ करने जैसा है। बहरहाल वन विकास निगम के जंगल और कूपो में ना जाने ऐसे कितने परिपक्व सागौन, साजा, सरई जैसे इमारती पेड़ो की बलि चड़ा दी गई है अब जरूरत है बिलासपुर और रायपुर में बैठे अधिकारियों को एक-एक बीट कंपार्टमेंट की सूक्ष्मता से जाँच की ताकि जंगल और जंगली जानवरों के अवैध तस्करों से बचाव किया जा सके। लेकिन इस जाँच के दौरान एक बातो का भी अधिकारियों को ध्यान रखना होगा कि रेंजर अभिनंदन गोस्वामी मंत्री सिंहदेव का दायांहाथ भी है जैसा कि उसने बताया है और पत्रकार को एक मीठी धमकी भी थी है। अर्थात ये रेंजर मंत्री का कृपापात्र भी हो सकता है अब कितना कृपापात्र है यह तो मंत्री महोदय ही बता सकते है। लेकिन यह तो तय है कि मंत्री महोदय गलत कार्य के बिल्कुल खिलाफ है न्याय करना ही उनकी फितरत है। अत: अधिकारियों के कार्यवाही करने पर उन्हें संतोष ही प्राप्त होगा। क्योंकि जंगलों की सुरक्षा सरकार का दायित्व है और वे इस समय सरकार की भूमिका का निर्वहन कर रहे है।

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