Supreme Court का बड़ा फैसला: दिव्यांगों का मजाक उड़ाना अब महंगा पड़ेगा

Aanchalik Khabre
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Supreme Court ने एक अहम फैसले में सोशल
मीडिया इन्फ्लुएंसर्स और कॉमेडियन्स को सख्त चेतावनी दी है। कोर्ट ने साफ कहा है
कि दिव्यांगजनों (विकलांगों) का मजाक उड़ाना अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

इस मामले की शुरुआत स्टैंडअप कॉमेडियन समय रैना
से हुई,
जिन पर यह आरोप है कि उन्होंने अपने कुछ
वीडियो में शारीरिक रूप से असमर्थ लोगों का मजाक उड़ाया था। खास तौर पर
, एक गंभीर बीमारी ‘स्पाइनल
मस्क्युलर एट्रोफी
से पीड़ित लोगों पर की गई टिप्पणी को लेकर मामला अदालत पहुंचा।


Divyaang Article

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?

सुप्रीम कोर्ट ने समय रैना समेत सभी सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स को निर्देश दिए हैं कि अगर उन्होंने किसी भी रूप में दिव्यांगों को लेकर आपत्तिजनक बातें कहीं हैं, तो उन्हें सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी होगी।

कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि भविष्य में इस तरह का कोई कंटेंट पाया गया, तो ऐसे कंटेंट क्रिएटर्स पर आर्थिक जुर्माना लगाया जाएगा और कानूनी कार्रवाई भी की जा सकती है।

सरकार को गाइडलाइंस बनाने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को भी आदेश दिया है कि वह सोशल मीडिया पर कंटेंट को लेकर स्पष्ट गाइडलाइंस बनाए।

इन गाइडलाइंस में यह सुनिश्चित किया जाए कि सोशल मीडिया पर दिव्यांगों, महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों का मजाक न उड़ाया जाए और न ही उन्हें किसी भी तरह से नीचा दिखाया जाए।

कोर्ट ने ये भी कहा कि गाइडलाइंस बनाते समय सभी संबंधित पक्षों की राय ली जाए और जल्दबाजी में कोई फैसला न हो।

"फ्रीडम ऑफ स्पीच" की भी तय होगी सीमा

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Speech) का मतलब यह नहीं है कि कोई भी किसी की भावनाएं आहत करे, खासकर जब कंटेंट से व्यावसायिक लाभ जुड़ा हो।

इसलिए, कंटेंट क्रिएटर्स को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी और सोच-समझकर कंटेंट बनाना होगा।

समय रैना की माफी पर कोर्ट की नाराजगी

कोर्ट ने समय रैना की माफी पर नाराजगी जाहिर की। कोर्ट ने कहा कि रैना ने पहले खुद को सही ठहराने की कोशिश की और फिर माफी मांगी, जो दिखावटी लगती है।

अब कोर्ट ने सभी संबंधित इन्फ्लुएंसर्स को कहा है कि वे एक हलफनामा (affidavit) दाखिल करें जिसमें यह बताया जाए कि वे अपने प्लेटफॉर्म का उपयोग दिव्यांगजनों के अधिकारों के लिए जागरूकता फैलाने में कैसे करेंगे।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक सकारात्मक कदम है, जो यह दिखाता है कि डिजिटल दुनिया में भी मानवता और संवेदनशीलता जरूरी है। सोशल मीडिया एक बड़ा मंच है, और जो लोग लाखों लोगों को प्रभावित करते हैं, उन्हें अपनी बातों की जिम्मेदारी लेनी होगी।

अब देखने वाली बात यह होगी कि सरकार गाइडलाइंस कब तक लाती है और कंटेंट क्रिएटर्स किस तरह से अपने व्यवहार में बदलाव लाते हैं।

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