Delhi News | इंद्रपुरी में पोंगल की धूम: जब दिल्ली बनी दक्षिण की धरती! | Pongal Festival

News Desk
6 Min Read
jm

इंद्रपुरी में पोंगल की धूम: जब दिल्ली बनी दक्षिण की धरती!
त्रिशूल के आर-पार भक्ति का जुनून: पोंगल महापर्व का अद्भुत नज़ारा!
दिल्ली में दक्षिण का जलवा: इंद्रपुरी में पोंगल का महाकुंभ!
गाल के आर-पार 12 फुट का त्रिशूल: श्रद्धा या साहस?
आस्था, भक्ति और परंपरा का महामिलन: इंद्रपुरी में पोंगल पर्व
जब त्रिशूल ने चीर दीं हदें: पोंगल पर्व में भक्ति का चरम!
दिल्ली में द्रविड़ धड़कन: पोंगल का पर्व और भक्ति की पराकाष्ठा
इंद्रपुरी में पोंगल का जश्न: जब दिल्ली की गलियों में गूंजा दक्षिण का रंग!
त्रिशूल, आस्था और समर्पण: पोंगल पर्व का अद्भुत नजारा!
भक्ति की परीक्षा या आस्था का अडिग विश्वास: पोंगल पर्व में त्रिशूल अनुष्ठान
इंद्रपुरी में गूंजा दक्षिण का महापर्व पोंगल

आस्था की पराकाष्ठा
दिल्ली का इंद्रपुरी इलाका… जहाँ आमतौर पर उत्तर भारतीय रंग-रूप में सजी गलियाँ होती हैं, वहाँ इस बार माहौल कुछ अलग था। चारों तरफ रंग-बिरंगी तोरणें, केले के पत्तों से सजी मंदिर की दीवारें, और हवा में घुली मीठी गुड़ और चावल की खुशबू। यह कोई साधारण दिन नहीं था। दक्षिण भारतीय समुदाय ने अपनी परंपरा और आस्था का प्रतीक पोंगल पर्व यहाँ पूरी श्रद्धा और धूमधाम से मनाया।

पोंगल: पर्व से परे एक आस्था
पोंगल… यह केवल त्योहार नहीं, बल्कि आस्था और समर्पण की पराकाष्ठा है। यह वह समय है जब लोग प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। दक्षिण भारत में तो पोंगल जनवरी के महीने में मनाया जाता है, पर दिल्ली के इस हिस्से में मार्च का महीना भी इस पर्व की उमंग से भर जाता है।

सात दिन का पवित्र अनुष्ठान
पोंगल के इस महापर्व को यहाँ पूरे सात दिनों तक मनाया जाता है। मंदिर के प्रांगण में हर दिन नए रीति-रिवाज और परंपराओं का निर्वहन होता है। महिलाएँ पारंपरिक साड़ियाँ पहने, माथे पर कुमकुम की बिंदी लगाए, देवी के चरणों में गुड़ और चावल का प्रसाद चढ़ाती हैं।

त्रिशूल के आर-पार: श्रद्धा की अग्निपरीक्षा
लेकिन इस पर्व का सबसे अद्भुत और रोमांचक दृश्य तब देखने को मिला जब श्रद्धालुओं ने गाल के आर-पार 12 फुट का त्रिशूल लगाया। यह न केवल साहस का प्रतीक था, बल्कि भक्ति की चरम सीमा को दर्शाता था। मंदिर के प्रधान थांगवेल ने बताया कि इस विशेष अनुष्ठान का महत्व उन भक्तों के लिए है जिनकी मनोकामना पूर्ण होती है।

“जब देवी माँ हमारी प्रार्थना सुन लेती हैं और वरदान देती हैं, तो हम इस त्रिशूल को अपने गाल के आर-पार करके कृतज्ञता व्यक्त करते हैं,” थांगवेल ने भावुक स्वर में कहा।

माता श्री देवी मारिअम्मान: आस्था का केंद्र
यह पर्व देवी श्री देवी मारिअम्मान को समर्पित है, जिन्हें शीतला माता का रूप माना जाता है। माना जाता है कि माता न केवल बीमारियों का नाश करती हैं, बल्कि अपने भक्तों की हर मनोकामना भी पूरी करती हैं। भक्तजन देवी माँ के चरणों में नतमस्तक होकर अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।

मन्नत की पूर्णता का प्रतीक
सचिव पी. मुरगेश ने बताया कि जिनकी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं, वे पुरुष इस त्रिशूल को गाल के आर-पार कर माता के समक्ष शीश झुकाते हैं। इस दृश्य को देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। किसी को दर्द की चिंता नहीं, किसी को भय नहीं। बस एक ही भावना – माँ के प्रति समर्पण।

अनीता और गायत्री का अनुभव
अनीता और गायत्री, जो इस पर्व में विशेष रूप से सम्मिलित हुईं, ने बताया कि सात दिनों तक मंदिर में रहकर उन्होंने केवल गुड़ और चावल का भोजन ग्रहण किया। उनका मानना है कि इस व्रत से शरीर और मन दोनों शुद्ध हो जाते हैं।

“यहाँ आकर महसूस होता है कि भक्ति का असली अर्थ क्या है। पोंगल केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि आत्मा की पवित्रता का प्रतीक है,” गायत्री ने कहा।

आस्था और एकता का संगम
दिल्ली जैसे महानगर में, जहाँ विभिन्न संस्कृतियाँ एक साथ मिलती हैं, पोंगल का यह पर्व एकता का प्रतीक बन गया है। स्थानीय लोग भी इस पर्व में सम्मिलित होते हैं और दक्षिण भारतीय परंपराओं से रूबरू होते हैं।

परंपरा का निर्वाह और आधुनिकता का संगम
दिल्ली की भागदौड़ भरी जिंदगी में ऐसे आयोजन एक नई ऊर्जा का संचार करते हैं। जहाँ एक तरफ लोग आधुनिकता की दौड़ में लगे रहते हैं, वहीं दूसरी ओर यह पर्व उन्हें उनकी जड़ों से जोड़ता है।

श्रद्धा का समर्पण और बलिदान
पोंगल के इस महापर्व में लोग अपनी इच्छाओं को देवी माँ के समक्ष समर्पित करते हैं। त्रिशूल के आर-पार होने का यह दृश्य न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि मन की दृढ़ता और विश्वास का प्रमाण भी है।

उत्सव के समापन का दृश्य
सातवें दिन, जब पोंगल का पर्व समापन की ओर बढ़ता है, तो पूरे मंदिर परिसर में दीपों की पंक्तियाँ जल उठती हैं। चारों तरफ मंत्रोच्चार गूंजने लगता है। लोग अपने हाथ जोड़कर माँ के चरणों में नतमस्तक होते हैं। वातावरण में सजीवता और भक्ति की गूँज रहती है।

दिल्ली में दक्षिण का रंग
इस पर्व ने यह साबित कर दिया कि चाहे जगह कोई भी हो, जब आस्था प्रबल हो, तो परंपरा का हर रंग जीवंत हो उठता है। इंद्रपुरी का यह पोंगल पर्व न केवल दक्षिण भारतीय समुदाय के लिए, बल्कि पूरे दिल्ली के लिए एक प्रेरणा बन गया।

 

Share This Article
Leave a Comment