दमोह। विश्व प्रसिद्ध जैन तीर्थ क्षेत्र में आयोजित हो रहे पंच कल्याणक महामहोत्सव के पांचवें दिन तप कल्याणक उत्तर रूप के अवसर पर हजारों हजारों श्रद्धालुओं को दिव्य देशना प्रदान करते हुए कहा कि देव लोग वैसे रिद्धी धारी होते है, मनुष्य भी हो सकते हैं पर जब वो मुनि बन जाते है, अब देव लोग ही ऐसी व्यवस्था करें कि सभी श्रद्धालु इस मण्डप में समाहित हो जाए ताकि सभी शान्ति के साथ 24 भगवान के कल्याणक महोत्सव आनंद पूर्वक देख सकें। वैराग्य का वातावरण निर्मित हो रहा है जो भगवान गोद में थे, पालने में थे,अब राग के बीच बैराग को देखेंगे और आप कृत्य कृत्य करने की भावना रखते हैं। आज मण्डप में ही आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की आहार चर्या हुई, नवधा भक्ति भाव से सभी ब्रह्मचारी भाईयो को आहार देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और सभी को दीक्षा गुरुदेव के द्वारा प्रदान की गई। कुण्डलपुर महामहोत्सव के पांचवे दिन तपकल्याणक के अवसर पर हजारों श्रद्धालुओं की ऐतिहासिक उपस्थिति में भगवान के तप कल्याणक को मनाया गया, बाल ब्रह्मचारी विनय भैया के निर्देशन में हो रहे इस पूरे महायज्ञ में आज कल्पवृक्ष युग खत्म हुआ, व्यक्ति को रहन-सहन, देश-काल खान-पान हेतु कर्म युग का सहारा लेना पड़ेगा, आज के दिन लोगों को रहन सहन भाषा खेती सुरक्षा नृत्य संगीत आदि विभिन्न चीजों की जानकारी आम आदमी को दी गई। अब उसे कर्म करके ही फल की प्राप्ति होगी समस्त प्रजा को असी, मसी, कृषि, और वाणिज्य का ज्ञान महाराज आदि कुमार द्वारा किया गया। महाराज आदि कुमार ने न्याय व्यवस्था स्वाभिमान शिक्षा आदि कई व्यवस्थाओं में लोगों को पारंगत कराया महाराज आदि कुमार के दरबार में राजकुमारी ब्राह्मणी और राजकुमारी सुंदरी का पदार्पण हुआ महाराजा आदिकुमार ने उन्हें वीजाक्षर और अंक लिपि सहित विभिन्न ज्ञान दिए, तदोपरांत राज दरबार में नीलांजना नृत्य हुआ नीलांजना के जन्म मरण तदोपरांत पुनर्जन्म को देखने के उपरांत महाराज आदिकुमार का वैराग्य हुआ, संत शिरोमणि आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के मगंल सनिध्य में दीक्षाये संपन्न हुई, इन चेतन कृतियों को दी जानें वाली दीक्षा महोत्सव को देखने देश के कोने कोने से अपार जन समूह उपास्थित हुआ, पूरा मण्डप और सम्पूर्ण कुण्डलपुर क्षेत्र में भक्तों का जनसैलाव उमड़ पड़ा। इस संपूर्ण आयोजन के साक्षी बने निर्यापक मुनि समय सागर जी, निर्यापक मुनि श्री योग सागर जी, निर्यापक मुनि पुंगव श्री सुधा सागर जी, मुनि श्री समता सागर, मुनि श्री अभय सागर, मुनि श्री प्रसाद सागर, मुनि श्री वीरसागर जी, मुनि श्री प्रशांत सागर, मुनि श्री संभव सागर जी, पूज्य सागर जी, मुनि श्री विमल सागर जी, मुनि श्री अनंत सागर जी, मुनि श्री धर्म सागर जी, मुनि श्रीअजीत सागर, मुनि श्री प्रणब सागर, मुनि श्री प्रभात सागर जी, मुनि श्री चंद्र सागर जी जिन्होंने चौबीसों कुमारों को मुनि दीक्षा प्रदान की। चौबीसों मुनियों के नामकरण हुए, आदि कुमार अब मुनिश्री आदि कुमार कहलाएंगे, इसी समय आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के द्वारा अट्ठारह ब्रह्मचारीयों को क्षुल्लक दीक्षा प्रदान की गई, इनमें सबसे पहले ब्रह्मचारी राहुल भैया औचित्य सागर, दूसरे ब्रा राजेश भैया गहन सागर जी, तीसरे ब्रा भूपेंद्र भैया सुधार सागरजी, चौथे ब्रा सुमित भैया मंथन सागर जी,पांचवे ब्रा मयूर भैया केवल्य सागर जी, छठवें ब्रा ईशु भैया मनय सागर जी, सातवे ब्रा सचिन भैया मनन सागर जी आठवें ब्रा मानस भैया शुद्रढ़ सागर जी, ब्रा मानस भैया अपार सागर जी, दसवें ब्रा प्रांशुल भैया समकित सागरजी, अविचल भैया विचार सागर 12 ब्रा राजा भैया मगन सागर जी, 13 ब्रा अमित भैया तन्मय सागर जी,14 ब्रा मयूर भैया उचित सागरजी, 15 ब्रा अर्पित भैया कथा सागर जी,16 ब्रा चंचल भैया उत्साह सागर जी, सत्रह ब्रा कार्तिक भैया अमाप सागर जी,18 ब्रा सौरभ भैया निलयल सागर जी को दीक्षा प्रदान की गई। आज ही176 दीदी ने आजीवन ब्रह्मचारी ब्रत धारण करने का संकल्प लिया।
छह मुनियों को प्रदान किया गया निर्यापक पद
आचार्य श्री ने संघ के 6 मुनियों को निर्यापक पद प्रदान किया इनमें मुनि श्री समता सागर जी, मुनि श्री प्रशांत सागर जी, मुनि श्री प्रसाद सागर जी, मुनि श्री अभय सागर जी, मुनि श्री संभव थे सागर जी एवं मुनि श्रीवीर सागर जी हैं ज्ञातव्य हो इससे पहले चार मुनि निर्यापक पद से सुशोभित थे।
सादर प्रकाशनार्थ प्रेषक
ब्यूरो चीफ महोदय जी महेन्द्र जैन सोमखेड़ा