प्रस्तावना: भारतीय इतिहास में अमर योद्धा:
भारतवर्ष की भूमि अनगिनत वीरों की जननी रही है, लेकिन कुछ ऐसे भी योद्धा हुए जिन्होंने इतिहास की धारा मोड़ दी। Chhatrapati Shiva Ji Maharaj उन्हीं महानायकों में से एक हैं। जब पूरा देश विदेशी शासन की बेड़ियों में जकड़ा था, तब उन्होंने स्वतंत्र स्वराज्य की कल्पना को यथार्थ रूप में प्रस्तुत किया। उनका जीवन शौर्य, नीति, धार्मिक सहिष्णुता और राष्ट्रप्रेम का अप्रतिम उदाहरण है। उन्होंने सत्ता को जनता की सेवा का माध्यम बनाया और अपने कर्मों से आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित किया।
बाल्यकाल और शिक्षा: एक राष्ट्रनायक की नींव:
Chhatrapati Shiva Ji Maharaj का जन्म 19 फरवरी 1630 को महाराष्ट्र के शिवनेरी दुर्ग में हुआ। उनके पिता शाहजी भोंसले बीजापुर दरबार में एक प्रमुख सेनानायक थे, जबकि माता जीजाबाई धर्मनिष्ठ और वीरता की प्रतिमूर्ति थीं। बालक शिवा को माता जीजाबाई ने रामायण, महाभारत, भगवद्गीता और भारतीय इतिहास की कहानियों से राष्ट्रप्रेम की शिक्षा दी।
उन्होंने बचपन से ही आत्मबल, नेतृत्व कौशल और नीति पर ध्यान केंद्रित किया। घुड़सवारी, तलवारबाजी, धनुर्विद्या, पर्वतीय युद्ध-कला आदि की शिक्षा उन्हें किशोरावस्था में ही प्राप्त हो गई थी। जीजाबाई ने उन्हें आत्मसम्मान और धर्म रक्षा की प्रेरणा दी, जो आगे चलकर Chhatrapati Shiva Ji Maharaj के पूरे जीवन का आधार बनी।
स्वराज्य का स्वप्न: स्वतंत्रता की चेतना का प्रादुर्भाव:
जब भारत पर मुगल और सुल्तानों का प्रभुत्व था, तब स्वतंत्रता की बात करना भी कठिन था। लेकिन Chhatrapati Shiva Ji Maharaj ने मात्र 15 वर्ष की आयु में तोरणा और राजगढ़ किलों पर अधिकार कर अपने इरादे स्पष्ट कर दिए। उन्होंने “हिंदवी स्वराज्य” की संकल्पना प्रस्तुत की, जिसमें सत्ता किसी विदेशी के अधीन न होकर भारतीयों के हाथ में होनी चाहिए।
उनका यह स्वराज्य केवल भौगोलिक विस्तार नहीं था, बल्कि एक वैचारिक क्रांति थी। इसमें न्याय, लोकहित और सांस्कृतिक मूल्यों का समावेश था। Chhatrapati Shiva Ji Maharaj ने यह दिखा दिया कि केवल तलवार से नहीं, नीति और साहस से भी राष्ट्र बनाया जा सकता है।
रणनीति और गुप्तचर प्रणाली: युद्धकला में महारथी:
Chhatrapati Shiva Ji Maharaj एक प्रखर रणनीतिकार थे। उन्होंने पर्वतीय युद्ध-पद्धति को आधार बनाकर मुगलों और बीजापुर के सेनानायकों को बार-बार पराजित किया। उनकी सेना मावळा कहलाती थी, जो कम संख्या में होते हुए भी अत्यधिक चुस्त और निपुण थी। उन्होंने किलों को सैनिक शक्ति का केंद्र बनाया और गुप्तचर तंत्र को अत्यधिक मजबूत किया।
उनका खुफिया नेटवर्क इतना प्रभावी था कि उन्हें हर दुश्मन की गतिविधियों की सटीक जानकारी मिलती थी। यही कारण था कि वे छोटे दल के साथ बड़े-बड़े सेनापतियों को धूल चटा देते थे। उनका युद्ध कौशल “गुरिल्ला युद्धनीति” (छापामार रणनीति) के रूप में आज भी सैन्य शास्त्र में पढ़ाया जाता है।
अफजल खान वध: धैर्य, बुद्धिमत्ता और शक्ति का संगम:
बीजापुर सुल्तान ने जब अफजल खान जैसे विशाल और क्रूर सेनानायक को शिवाजी का अंत करने भेजा, तब यह युगांतरकारी घटना बन गई। अफजल खान ने कपटपूर्वक मिलन की योजना बनाई, परंतु Chhatrapati Shiva Ji Maharaj ने कमर के नीचे कवच और बाघनख पहनकर उससे भेंट की।
जब अफजल ने शिवाजी पर वार किया, तब उन्होंने बाघनख से उसकी अंतड़ियाँ निकाल दीं। यह घटना केवल एक योद्धा की जीत नहीं थी, बल्कि एक नीति और साहस का प्रतीक बनी जिसने समूचे बीजापुर को झकझोर दिया और पूरे भारत में उनकी वीरता की चर्चा फैल गई।
मुगलों के विरुद्ध संघर्ष: औरंगजेब की सत्ता को चुनौती:
जब मुगल बादशाह औरंगजेब ने दक्षिण भारत पर कब्जा करने की योजना बनाई, तब उसे सबसे बड़ा प्रतिरोध Chhatrapati Shiva Ji Maharaj से मिला। उन्होंने शाइस्ता खान को पुणे में हराया, औरंगजेब के सैनिकों को चौंकाने वाले हमले किए और उनकी सत्ता की नींव हिला दी।
मुगल दरबार में डर फैल गया कि शिवाजी को हराना नामुमकिन है। वे केवल एक योद्धा नहीं, बल्कि विचार और चेतना थे जो मुगलों की अत्याचारकारी नीतियों के विरुद्ध खड़ी थी। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि बल से बड़ी नीति और संकल्प होता है।
आगरा से पलायन: चतुराई का अद्भुत उदाहरण:
1666 में औरंगजेब ने Chhatrapati Shiva Ji Maharaj को आगरा बुलाया और धोखे से उन्हें कैद कर लिया गया। परंतु उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने मिठाइयों के टोकरों में छिपकर अपने पुत्र संभाजी के साथ आगरा से सफल पलायन किया। यह घटना पूरे मुगल साम्राज्य की प्रतिष्ठा के लिए बड़ा झटका साबित हुई।
उनकी इस बुद्धिमत्ता ने यह दिखाया कि बंदीगृह भी उन्हें रोक नहीं सकता। यह पलायन केवल एक राजा का भागना नहीं था, यह एक क्रांतिकारी की नई शुरुआत थी।
राज्याभिषेक: हिंदवी स्वराज्य की स्थापना का ऐतिहासिक क्षण:
6 जून 1674 को रायगढ़ दुर्ग में वैदिक विधि से Chhatrapati Shiva Ji Maharaj का राज्याभिषेक हुआ। उन्हें “छत्रपति” की उपाधि दी गई और स्वराज्य की आधिकारिक स्थापना हुई। उन्होंने अपने राज्य में धर्मनिरपेक्षता, न्यायप्रियता और लोकहित को प्राथमिकता दी।
इस राज्याभिषेक ने न केवल भारत में नई राजनैतिक चेतना को जन्म दिया, बल्कि विदेशों में भी भारत के जागरण का संदेश दिया। यह हिंदुओं के लिए गौरव का क्षण था, जब 300 वर्षों बाद एक स्वदेशी राजा ने वैदिक पद्धति से राज्यगद्दी संभाली।
प्रशासनिक दक्षता और न्याय व्यवस्था:
Chhatrapati Shiva Ji Maharaj के शासन की सबसे बड़ी विशेषता थी—प्रशासन की पारदर्शिता। उन्होंने किसान, व्यापारी, सैनिक और सामान्य नागरिक – सभी के अधिकारों का संरक्षण किया। ज़मींदारों की मनमानी पर रोक लगाई और भ्रष्टाचार के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की।
उन्होंने वतनदारी व्यवस्था, भूमि सर्वेक्षण, कड़ी न्याय प्रणाली और नियमित सैनिक वेतन जैसी व्यवस्थाएं लागू कीं, जो उस काल में क्रांतिकारी थीं। उनका प्रशासन आज के लोकतंत्र के कई आधारभूत सिद्धांतों की नींव रहा।
धर्मनिरपेक्षता: सभी धर्मों का सम्मान:
हालाँकि Chhatrapati Shiva Ji Maharaj हिंदू राजा थे, लेकिन उन्होंने कभी धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया। मुस्लिम सैनिक, अधिकारी और सूफी संत उनके दरबार में सम्मानित स्थान पर थे। उन्होंने किसी भी मस्जिद, मकबरे या धार्मिक स्थल को क्षति नहीं पहुँचाई।
उन्होंने यह सिद्ध किया कि एक सच्चा राजा अपने राज्य के प्रत्येक धर्म और समुदाय का रक्षक होता है। यही कारण है कि वे सभी वर्गों में समान रूप से लोकप्रिय रहे।
नौसेना की स्थापना: समुद्री शक्ति का प्रयोग:
भारतवर्ष में यह पहला अवसर था जब किसी राजा ने संगठित नौसेना का निर्माण किया। Chhatrapati Shiva Ji Maharaj ने सिंधुदुर्ग, विजयदुर्ग और जंजीरा जैसे समुद्री किलों को बनवाकर अरब सागर में व्यापार और सैन्य शक्ति को मजबूती दी।
यह कदम केवल व्यापारिक हितों के लिए नहीं था, बल्कि पुर्तगालियों, डच और अंग्रेजों के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए भी था। उन्होंने समुद्री सीमाओं को संरक्षित कर स्वतंत्र भारत के भविष्य की नींव रखी।
नारी सम्मान और सुरक्षा की मिसाल:
Chhatrapati Shiva Ji Maharaj नारी सम्मान के प्रति अत्यंत संवेदनशील थे। युद्ध के दौरान भी यदि कोई महिला पकड़ी जाती, तो उसे ससम्मान उसके घर पहुँचाया जाता। उन्होंने बलात्कार और स्त्री अपमान के लिए कठोर दंड की व्यवस्था की।
उनका यह दृष्टिकोण उस युग में क्रांतिकारी था, जब महिलाएँ उपेक्षित और असुरक्षित थीं। उन्होंने नारी को केवल सम्मान दिया, बल्कि शक्ति का रूप मानकर उसके विकास के लिए उचित वातावरण भी प्रदान किया।
मृत्यु और विरासत:
3 अप्रैल 1680 को Chhatrapati Shiva Ji Maharaj का देहांत हुआ। लेकिन उनकी मृत्यु केवल शारीरिक थी; उनका विचार, साहस और स्वराज्य का सपना आज भी जीवित है। उनकी मृत्यु के पश्चात पुत्र संभाजी ने नेतृत्व संभाला, लेकिन मुगलों से संघर्ष लगातार जारी रहा।
उनकी विचारधारा ने आगे चलकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को भी दिशा दी। बाल गंगाधर तिलक, नेताजी सुभाषचंद्र बोस और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों ने उन्हें प्रेरणा स्रोत माना।
आज की पीढ़ी के लिए संदेश:
आज जब हम एक स्वतंत्र भारत में जी रहे हैं, तो यह संभव हो सका है क्योंकि किसी समय Chhatrapati Shiva Ji Maharaj ने विदेशी सत्ता के खिलाफ आवाज उठाई थी। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि कोई भी शक्ति, कितनी भी बड़ी क्यों न हो, अगर हम संगठित, नीति-समर्पित और राष्ट्रप्रेमी हैं, तो हम उसे पराजित कर सकते हैं।
निष्कर्ष: Chhatrapati Shiva Ji Maharaj – केवल राजा नहीं, विचार हैं:
Chhatrapati Shiva Ji Maharaj का नाम आज भी युवाओं के मन में जोश, साहस और आत्मबल का संचार करता है। वे केवल तलवार के धनी नहीं, बल्कि विचारों के राजा थे। उनकी जीवन यात्रा, उनकी प्रशासनिक दृष्टि, और उनका स्वराज्य – ये सब मिलकर उन्हें भारत का एक अद्वितीय नायक बनाते हैं।