Bird Flu :भारत की ऐतिहासिक सफलता बर्ड फ्लू वैक्सीन का विकास

News Desk
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दुनिया भर में खतरनाक संक्रमणों में से एक, एवियन इन्फ्लूएंजा (एच5एन1), जिसे आमतौर पर बर्ड फ्लू के नाम से जाना जाता है, ने कई वर्षों से मानव और पक्षी स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा उत्पन्न किया है। भारत ने इस चुनौती का साहसपूर्वक सामना करते हुए बर्ड फ्लू के लिए एक प्रभावी टीका विकसित किया है। यह उपलब्धि सिर्फ भारत के वैज्ञानिकों के लिए गर्व का विषय नहीं है, बल्कि वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा के क्षेत्र में भी एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। वर्षों की कठोर मेहनत और अनुसंधान के बाद इस टीके का विकास संभव हो पाया है। इस टीके की खोज भारत के संक्रामक रोगों के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान देती है।

बर्ड फ्लू: एक गंभीर खतरा

बर्ड फ्लू एक विषाणुजनित बीमारी है जो मुख्य रूप से पक्षियों में फैलती है। हालांकि, कुछ दुर्लभ मामलों में यह मनुष्यों को भी संक्रमित कर सकती है। एवियन इन्फ्लूएंजा वायरस के कई प्रकार होते हैं, लेकिन इनमें से एच5एन1 सबसे अधिक घातक और चिंताजनक है। इस वायरस की सबसे बड़ी चुनौती इसका तेजी से उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) करने की क्षमता है। उत्परिवर्तन के कारण यह वायरस एक नई महामारी का कारण बन सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, जनवरी 2003 से दिसंबर 2024 तक, 24 देशों में एच5एन1 संक्रमण के कुल 954 मामले दर्ज किए गए, जिनमें से 464 लोगों की मृत्यु हो गई। इसका मतलब यह है कि इस वायरस की मृत्यु दर लगभग 50% है। इस स्तर की उच्च मृत्यु दर इसे अब तक के सबसे खतरनाक वायरसों में से एक बनाती है।

इसके अलावा, एच5एन1 का प्रभाव केवल मानव जीवन तक सीमित नहीं है। यह वायरस पोल्ट्री उद्योग के लिए भी बड़ा खतरा है। 2006 से 2024 तक, भारत में इस वायरस के कारण पोल्ट्री उद्योग को हजारों करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। पोल्ट्री व्यवसाय से जुड़े लाखों लोगों की आजीविका को भी इस बीमारी से खतरा रहता है।

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भारतीय वैज्ञानिकों की सफलता

भारतीय वैज्ञानिकों ने इस वायरस के लिए एक प्रभावी टीका विकसित करने के लिए लंबा और जटिल शोध कार्य किया। यह शोध देश के विभिन्न राज्यों जैसे केरल, महाराष्ट्र, और कर्नाटक में केंद्रित था।

टीके के विकास की प्रक्रिया को तीन प्रमुख चरणों में पूरा किया गया:

केरल में वैज्ञानिकों ने वायरस का संग्रहण करने के लिए भ्रूणयुक्त मुर्गी के अंडे का उपयोग किया। 10 दिन पुराने भ्रूणयुक्त अंडे से वायरस को पृथक करना एक अत्यंत संवेदनशील प्रक्रिया थी। यह चुनौतीपूर्ण कार्य इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि जीवित वायरस को पकड़ना और उसे सुरक्षित तरीके से प्रयोगशाला में संरक्षित करना आसान नहीं था।

महाराष्ट्र में वायरस को निष्क्रिय करने की प्रक्रिया अपनाई गई। वैज्ञानिकों ने इसके लिए बीटा प्रोपियोलैक्टोन नामक एक कार्बनिक यौगिक का उपयोग किया। यह रसायन वायरस के डीएनए और प्रोटीन के साथ प्रतिक्रिया कर उसे निष्क्रिय कर देता है। इस प्रक्रिया का उद्देश्य वायरस को इस रूप में परिवर्तित करना था कि वह मानव शरीर में कोई नुकसान न पहुंचा सके, लेकिन प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय कर सके।

कर्नाटक में इस निष्क्रिय वायरस को जैव-सुरक्षित प्रयोगशाला में ले जाया गया, जहाँ इसके प्रभावों का गहन अध्ययन किया गया। वैज्ञानिकों ने पाया कि यह वायरस एमडीसीके (Madin-Darby Canine Kidney) सेल लाइन में भी तेजी से फैला हुआ था, जो इसकी उच्च संक्रामकता का प्रमाण देता है।

टीका निर्माण में एम-आरएनए (Messenger RNA) तकनीक की महत्वपूर्ण भूमिका रही। यह वही तकनीक है जिसका उपयोग कोविड-19 के टीकों के निर्माण में किया गया था। एम-आरएनए तकनीक एक क्रांतिकारी चिकित्सा तकनीक है, जिसमें वैज्ञानिक आनुवंशिक कोड बनाकर शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को वायरस से लड़ने के लिए प्रशिक्षित करते हैं।

एम-आरएनए तकनीक का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह टीका तेज़ी से तैयार किया जा सकता है। पारंपरिक टीका निर्माण में वर्षों का समय लग सकता है, लेकिन एम-आरएनए तकनीक इसे महीनों में संभव बनाती है। कोविड-19 महामारी के दौरान इस तकनीक की सफलता ने वैज्ञानिकों को बर्ड फ्लू के टीके के विकास में भी इसे अपनाने के लिए प्रेरित किया।

हालांकि भारत में अब तक मानवों में एच5एन1 संक्रमण के मामले नहीं देखे गए हैं, फिर भी इसका खतरा बना हुआ है। देश के पोल्ट्री फार्म और पक्षी बाजारों में इसका प्रसार हमेशा एक चिंता का विषय रहा है। यदि इस वायरस में कोई महत्वपूर्ण उत्परिवर्तन होता है, तो यह इंसानों में भी तेजी से फैल सकता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस वायरस ने इंसानों के बीच फैलने की क्षमता विकसित कर ली, तो यह कोरोना वायरस जैसी महामारी का रूप ले सकता है। चूंकि इसकी मृत्यु दर बहुत अधिक है, इसलिए इसका प्रसार स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है।

भारतीय वैज्ञानिकों ने टीके का प्रारंभिक चरण सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। अब इस टीके का परीक्षण पशुओं पर किया जा रहा है। आईसीएमआर (भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद) ने कहा है कि यदि यह टीका पशुओं पर सफल रहता है, तो इसे मानवों के लिए भी उपलब्ध कराया जाएगा।

मानव परीक्षण: सफल पशु परीक्षणों के बाद इस टीके का मानवों पर परीक्षण किया जाएगा।
उत्पादन और वितरण: सफल परीक्षणों के बाद, इस टीके का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाएगा।
वैश्विक सहयोग: भारत इस टीके को अन्य देशों के साथ भी साझा कर सकता है, विशेष रूप से उन देशों में जहाँ एच5एन1 के मामले अधिक हैं।
वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा में भारत की भूमिका
बर्ड फ्लू के टीके का विकास वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा में भारत की बढ़ती भूमिका को दर्शाता है। यह उपलब्धि न केवल देश के वैज्ञानिकों की मेहनत और दृढ़ संकल्प को दर्शाती है, बल्कि यह भी साबित करती है कि भारत अब वैश्विक महामारी की चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार है।

यह टीका भारत के पोल्ट्री उद्योग के लिए भी राहत लेकर आएगा। टीके के व्यापक उपयोग से पोल्ट्री फार्म और पक्षी बाजारों में वायरस के प्रसार को रोका जा सकेगा, जिससे उद्योग को होने वाले आर्थिक नुकसान को कम किया जा सकेगा।

भारत द्वारा विकसित बर्ड फ्लू का यह टीका न केवल वैज्ञानिक क्षेत्र में एक बड़ी सफलता है, बल्कि यह मानवता के लिए एक महत्वपूर्ण कदम भी है। यह भविष्य में संभावित महामारी को रोकने में सहायक होगा और मानव जीवन की रक्षा करेगा।

भारत के वैज्ञानिकों की यह उपलब्धि देश को वैश्विक स्वास्थ्य क्षेत्र में एक नई पहचान दिलाएगी। यदि इस टीके को समय पर लागू किया गया, तो यह न केवल भारत बल्कि दुनिया भर में लाखों लोगों को बर्ड फ्लू से बचा सकता है।

भारत अब पूरी तरह से इस चुनौती के समाधान की दिशा में आगे बढ़ रहा है और यह दिखा रहा है कि वैज्ञानिक नवाचारों के माध्यम से कोई भी संकट दूर किया जा सकता है।

 

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