देर से आए शोध, लेकिन अब दे रहे हैं चिंताजनक संकेत
परिचय:
जब से स्मार्टफोन और सोशल मीडिया का चलन बढ़ा है, तब से मनोवैज्ञानिक लगातार इस बात को लेकर चिंतित हैं कि कहीं ये तकनीकें बच्चों और किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान तो नहीं पहुँचा रहीं। हालांकि शुरूआती रिसर्च ने कोई साफ नतीजे नहीं दिए थे — इसकी वजह थी छोटे सैंपल, सीमित समय और सतही जांच पद्धतियाँ। लेकिन अब दो हालिया बड़े और दीर्घकालिक (longitudinal) अध्ययन सामने आए हैं, जिन्होंने कुछ महत्वपूर्ण और चिंताजनक बातें उजागर की हैं।
पहला अध्ययन – स्विट्ज़रलैंड के किशोरों पर नजर
शोधकर्ता: शिनशिन झू और सहयोगी, यूनिवर्सिटी ऑफ़ एडिनबर्ग (2023)
सैंपल: 1,500 से अधिक स्विस किशोर
समय अवधि: 11 साल से 17 साल की उम्र तक, अलग-अलग समय पर चार बार डेटा लिया गया
शोध का उद्देश्य:
किशोरों के स्क्रीन टाइम (जैसे टीवी, वीडियो गेम, इंटरनेट सर्फिंग/चैटिंग) के पैटर्न को समझना और देखना कि ये आदतें 20 साल की उम्र तक उनके मानसिक स्वास्थ्य पर क्या असर डालती हैं।
पांच तरह के स्क्रीन उपयोग पैटर्न सामने आए:
कम स्क्रीन उपयोग
बढ़ती हुई इंटरनेट सर्फिंग और चैटिंग
मध्यम स्तर का उपयोग
सिर्फ किशोरावस्था की शुरुआत में अधिक उपयोग
तेजी से बढ़ता वीडियो गेम और चैटिंग का उपयोग
नतीजे:
जो किशोर लगातार और ज्यादा स्क्रीन उपयोग कर रहे थे, उनमें डिप्रेशन, चिंता, आत्महत्या के विचार और खुद को नुकसान पहुँचाने की प्रवृत्तियाँ अधिक पाई गईं।
बढ़ती हुई चैटिंग/इंटरनेट सर्फिंग करने वाले युवाओं में सबसे ज्यादा डिप्रेशन और चिंता देखी गई।
वीडियो गेम और चैटिंग दोनों का बढ़ता उपयोग करने वाले किशोरों में आत्मघाती विचार और आत्म-हानि के लक्षण अधिक थे।
आक्रामकता (aggression) भी उन किशोरों में ज्यादा थी जो तेजी से वीडियो गेम और इंटरनेट पर समय बिता रहे थे।
क्या ये कारण हैं या परिणाम?
यह अभी तक तय नहीं हो पाया है कि ज्यादा स्क्रीन टाइम मानसिक समस्याएँ पैदा करता है, या फिर जिन बच्चों को पहले से समस्याएँ होती हैं वे स्क्रीन की ओर ज्यादा आकर्षित होते हैं।
हो सकता है कोई तीसरा कारण (जैसे व्यक्तित्व, घर का माहौल, तनाव) इन दोनों बातों को जोड़ रहा हो।
फिर भी एक बात साफ है:
यदि कोई बच्चा या किशोर लगातार स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताता है, तो यह एक संकेत हो सकता है कि उसे मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी मदद की जरूरत है।
दूसरा अध्ययन – अमेरिका के बच्चों और किशोरों पर अध्ययन
शोधकर्ता: यून्यु जिआओ और सहयोगी, कॉर्नेल यूनिवर्सिटी (2025)
सैंपल: 4,285 अमेरिकी बच्चे (औसत उम्र 10 साल)
समय अवधि: 4 साल तक लगातार अध्ययन
शोध का उद्देश्य:
यह पता लगाना कि क्या सोशल मीडिया, मोबाइल फोन और वीडियो गेम का “आदी जैसा” व्यवहार बच्चों और किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है।
सोशल मीडिया उपयोग के तीन पैटर्न:
हाई पीकिंग (9.6%) – 13 साल तक बहुत ज्यादा, फिर कम हुआ
बढ़ता हुआ उपयोग (31.3%) – शुरू से ही ज्यादा, और लगातार बढ़ता गया
कम उपयोग (59%) – शुरुआत से ही कम और स्थिर
मोबाइल फोन उपयोग के तीन पैटर्न:
हमेशा उच्च (49.2%)
धीरे-धीरे बढ़ता हुआ (24.6%)
कम और स्थिर (26.2%)
वीडियो गेम के दो पैटर्न:
उच्च उपयोग (41.1%)
कम उपयोग (58.9%)
नतीजे:
ज्यादा और बढ़ता हुआ उपयोग (चाहे वो सोशल मीडिया हो, मोबाइल या गेम) से आत्महत्या जैसे विचार और मानसिक समस्याएँ अधिक देखी गईं।
वीडियो गेम का अधिक उपयोग करने वाले बच्चों में भीतर ही भीतर दबा तनाव और दुख (internalizing symptoms) ज्यादा था।
वहीं सोशल मीडिया का बढ़ता उपयोग करने वाले बच्चों में बाहरी व्यवहार की समस्याएँ (जैसे झगड़ालू होना, गुस्सा आना) ज्यादा थी।
शुरुआत में कितना स्क्रीन टाइम था, इसका असर नहीं दिखा, बल्कि यह देखा गया कि समय के साथ इस्तेमाल कैसे बढ़ा – यही ज्यादा महत्वपूर्ण था।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य:
सोशल मीडिया में ज्यादा समय बिताने वाले बच्चों में लड़कियाँ ज्यादा थीं, जबकि गेमिंग में लड़के आगे थे।
जिन बच्चों का स्क्रीन टाइम ज्यादा था, वे आमतौर पर कम आय वाले, कम पढ़े-लिखे परिवारों से थे और अधिकतर अश्वेत या हिस्पैनिक समुदाय से आते थे।
अंतिम निष्कर्ष:
इन दोनों अध्ययनों से यह साफ हो जाता है कि बच्चों और किशोरों में बढ़ती हुई स्क्रीन की लत मानसिक समस्याओं का एक बड़ा संकेत हो सकती है।
हालांकि अब तक यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं है कि स्क्रीन टाइम मानसिक बीमारियाँ पैदा करता है या नहीं, लेकिन यह जरूर कहा जा सकता है कि यह एक चेतावनी संकेत जरूर है।
क्या करना चाहिए?
माता-पिता और शिक्षक स्क्रीन के पैटर्न पर नजर रखें, केवल समय नहीं, बल्कि किस तरह का उपयोग हो रहा है – यह भी देखें।
जिन बच्चों का स्क्रीन टाइम तेजी से बढ़ रहा हो, उन्हें समय रहते काउंसलिंग या भावनात्मक मदद देना फायदेमंद हो सकता है।
परिवार, स्कूल और समाज को मिलकर ऐसे वातावरण तैयार करने होंगे, जहाँ बच्चे तकनीक से जुड़ें, लेकिन संतुलित रूप से।
समापन:
आज की दुनिया में स्क्रीन से पूरी तरह बचना शायद मुमकिन नहीं, लेकिन समझदारी से इसका उपयोग करना जरूरी है। ये अध्ययन हमें यही चेतावनी दे रहे हैं कि अगर हमने समय रहते बच्चों के डिजिटल व्यवहार को नहीं समझा, तो मानसिक स्वास्थ्य का संकट और गहराता जाएगा।
इसलिए जरूरी है कि बच्चों के स्क्रीन उपयोग को सिर्फ कंट्रोल नहीं, बल्कि समझदारी से गाइड किया जाए — ताकि वो एक स्वस्थ, खुशहाल और संतुलित जीवन की ओर बढ़ सकें।