क्या बांग्लादेश फिर पाकिस्तान के जाल में फंस रहा है?

Aanchalik Khabre
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भारत बांग्लादेश संबंध

इतिहास खुद को दोहरा रहा है?

प्रस्तावना: एक कूटनीतिक बदलाव या रणनीतिक खतरे की घंटी?

भारत बांग्लादेश संबंध दशकों से साझेदारी, सहयोग और सांस्कृतिक समरसता की मिसाल रहे हैं। लेकिन हाल ही की घटनाएँ इस साझेदारी के भविष्य पर प्रश्नचिह्न लगा रही हैं। बांग्लादेश पाकिस्तान वीज़ा समझौता एक ऐसा ही संकेत है, जिसने रणनीतिक हलकों में चर्चा को हवा दे दी है।

इतिहास की स्मृति: क्या बांग्लादेश भूल रहा है 1971 की त्रासदी?

1971 में भारत बांग्लादेश संबंध ने एक निर्णायक मोड़ लिया था। पाकिस्तान की सेना द्वारा पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में नरसंहार के बाद, भारत ने न केवल लाखों शरणार्थियों को शरण दी, बल्कि सैन्य हस्तक्षेप कर बांग्लादेश की स्वतंत्रता सुनिश्चित की।

उस समय से लेकर अब तक, भारत बांग्लादेश संबंध एक भावनात्मक और कूटनीतिक नींव पर टिके रहे। शेख हसीना के नेतृत्व में यह सहयोग और मजबूत हुआ।

नया समीकरण: बांग्लादेश पाकिस्तान वीज़ा समझौता

हाल में बांग्लादेश पाकिस्तान वीज़ा समझौता लागू हुआ है, जिसके अंतर्गत दोनों देशों के राजनयिकों को वीज़ा-मुक्त यात्रा की अनुमति दी गई है। इसे पाकिस्तान “मुस्लिम भाईचारे” की ओर कदम बता रहा है, परंतु भारत के लिए यह एक नई रणनीतिक चेतावनी है।

यह समझौता भारत बांग्लादेश संबंध को प्रभावित कर सकता है, खासकर तब जब यह भारत विरोधी तत्वों के लिए मंच बन सकता है।

बदलती राजनीतिक हवाएं: क्या बांग्लादेश रास्ता बदल रहा है?
शेख हसीना के बाद, देश की सत्ता एक नई विचारधारा के हाथों में आई है। मुहम्मद यूनूस, जो कभी एक नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री के रूप में पहचाने जाते थे, अब अमेरिकी और पाकिस्तानी झुकाव के आरोपों से घिरे हैं।

उनकी सरकार द्वारा लिए गए प्रारंभिक निर्णयों में शामिल हैं:

पाकिस्तान से रिश्ते मजबूत करना

बांग्लादेश में कट्टरपंथ की वापसी को राजनीतिक वैधता देना

भारत से संवाद में ठंडापन लाना

इन सभी घटनाओं से स्पष्ट है कि भारत बांग्लादेश संबंध अब एक निर्णायक दौर से गुजर रहे हैं।

भारत बांग्लादेश संबंध: सांस्कृतिक और आर्थिक साझेदारी
भारत बांग्लादेश संबंध केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और आर्थिक स्तर पर भी गहरे जुड़े हैं:

ऐतिहासिक संबंध:

4096 किलोमीटर की साझा सीमा

1971 की मुक्ति संग्राम में भारत की निर्णायक भूमिका

सार्क, बिम्सटेक, और राष्ट्रमंडल जैसे साझा मंचों की सदस्यता

आर्थिक सहयोग:
बांग्लादेश, भारत का दक्षिण एशिया में सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है

2023-24 में व्यापार: 14.01 अरब अमेरिकी डॉलर

भारत से बांग्लादेश को कपास, पेट्रोलियम, इंजीनियरिंग वस्तुएँ निर्यात

भारत को आयात: वस्त्र, जूट उत्पाद, एयरोस्पेस पार्ट्स

सांस्कृतिक समरसता:
साझा भाषा, इतिहास, संगीत, कला

ढाका में इंदिरा गांधी सांस्कृतिक केंद्र जैसे संस्थान

पारिवारिक और धार्मिक संबंधों की गहराई

भारत बांग्लादेश संबंध 2025 तक मजबूत रहने की उम्मीद की गई थी, लेकिन राजनीतिक परिवर्तन ने इस भविष्य को धुंधला कर दिया है।

प्रमुख चुनौतियाँ: भारत के लिए उभरता संकट

भारत बांग्लादेश संबंध के समक्ष अब कई नई चुनौतियाँ खड़ी हैं:

बांग्लादेश में कट्टरपंथ की वापसी

पाकिस्तान और चीन का बढ़ता प्रभाव

भारत के साथ सहयोग में दूरी

तीस्ता जल विवाद और सीमा सुरक्षा मुद्दे

अवैध प्रवास और मानव तस्करी

इन सभी बिंदुओं पर भारत को पुनः अपनी रणनीति पर विचार करना होगा।

भारत की प्रतिक्रिया बांग्लादेश पर: चुप्पी या रणनीति?

अब तक भारत सरकार ने भारत की प्रतिक्रिया बांग्लादेश पर कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है। लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि यह चुप्पी एक रणनीतिक प्रतीक्षा हो सकती है।

भारत की भूमिका सीमित नहीं रही है—बिजली, बंदरगाह, शिक्षा, चिकित्सा और आतंकवाद विरोधी कार्रवाई में भारत ने बांग्लादेश की लगातार मदद की है। यदि यह रिश्ता कमजोर होता है, तो भारत को न केवल सुरक्षा बल्कि व्यापार और क्षेत्रीय संतुलन में भी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

निष्कर्ष: एक चेतावनी और एक अवसर

आज, भारत बांग्लादेश संबंध एक संकटपूर्ण मोड़ पर खड़े हैं। पाकिस्तान और चीन जैसे बाहरी ताकतें बांग्लादेश की राजनीति में पुनः प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रही हैं।

भारत बांग्लादेश संबंध 2025 तक जिस स्थायित्व और प्रगति की ओर बढ़ रहे थे, उसमें अब अनिश्चितता है।

अब यह भारत पर निर्भर है कि वह इस स्थिति को सिर्फ देखे या कूटनीतिक मोर्चे पर सक्रिय और मुखर भूमिका निभाए।

बड़ा सवाल यही है:

क्या भारत बांग्लादेश को इस्लामी कट्टरपंथ और पाकिस्तान के प्रभाव में फिसलने देगा?
या अब समय आ गया है कि भारत बांग्लादेश संबंध को पुनर्स्थापित करने के लिए भारत कोई निर्णायक कदम उठाए?

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