Amroha UP भगवा वस्त्र में ईदगाह पहुंचे कांग्रेस प्रदेश महासचिव, पुष्प वर्षा कर नमाजियों को दी Eid 2025 की बधाई

News Desk
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भगवा वस्त्र में ईदगाह पहुंचे कांग्रेस प्रदेश महासचिव सचिन चौधरी, पुष्प वर्षा कर नमाजियों को दी ईद की बधाई
अमरोहा में सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल, कांग्रेस नेता के अनोखे अंदाज ने खींचा लोगों का ध्यान

अमरोहा। ईद के मौके पर जहां पूरे देश में खुशी और उल्लास का माहौल था, वहीं उत्तर प्रदेश के अमरोहा शहर में एक अनोखा नज़ारा देखने को मिला। कांग्रेस के प्रदेश महासचिव सचिन चौधरी भगवा वस्त्र धारण कर ईदगाह पहुंचे और नमाज अदा कर लौट रहे मुस्लिम समाज के लोगों का पुष्प वर्षा कर स्वागत किया। इस दृश्य ने हर किसी का ध्यान आकर्षित कर लिया।

ईदगाह से नमाज अदा कर लौट रहे लोगों ने जब सचिन चौधरी को इस अंदाज में देखा तो कुछ क्षणों के लिए हैरान रह गए, लेकिन अगले ही पल माहौल उत्साह से भर गया। सचिन चौधरी ने मुस्लिम समुदाय के लोगों को गले लगाकर ईद की शुभकामनाएं दीं और इस दौरान एक खास शेर भी पढ़ा –

सदा न रहा है जमाना किसी का, नहीं चाहिए दिल दुखाना किसी का।

उनकी इस अनूठी पहल ने पूरे क्षेत्र में चर्चाओं का दौर छेड़ दिया। लोग इस दृश्य को सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल मान रहे हैं।

सचिन चौधरी का अनोखा अंदाज: भगवा वस्त्र और पुष्प वर्षा

रविवार सुबह जब पूरा शहर ईद के जश्न में डूबा था, उसी समय अमरोहा की प्रमुख ईदगाह के बाहर एक असाधारण दृश्य देखने को मिला। सचिन चौधरी और उनके साथ कांग्रेस कार्यकर्ताओं की एक टीम, भगवा वस्त्र पहने, ईदगाह के बाहर खड़ी थी। जैसे ही नमाज अदा कर लोग बाहर निकले, सचिन चौधरी और उनकी टीम ने उन पर फूलों की वर्षा कर दी।

लोगों के चेहरों पर आश्चर्य और खुशी दोनों झलक रहे थे। कुछ ने हाथ जोड़कर इस अनूठे स्वागत का जवाब दिया, तो कुछ ने मुस्कुराते हुए गले मिलकर ईद की मुबारकबाद दी।

सांप्रदायिक सौहार्द्र का संदेश

सचिन चौधरी ने कहा,
त्योहार सिर्फ एक धर्म तक सीमित नहीं होते। ये सबको जोड़ने का काम करते हैं। आज ईद का पावन अवसर है, और मैं इसे अपने मुस्लिम भाइयों के साथ मिलकर मनाना चाहता हूं। मेरा मानना है कि अगर हम एक-दूसरे की खुशियों में शामिल होंगे, तो नफरतें अपने आप खत्म हो जाएंगी।

उन्होंने आगे कहा कि भगवा सिर्फ एक रंग नहीं, बल्कि संस्कृति और परंपरा का प्रतीक है। यह हिंदू-मुस्लिम एकता का संदेश भी दे सकता है, बशर्ते हम इसे सही नजरिए से देखें।

राजनीतिक गलियारों में हलचल, लोग दे रहे मिलीजुली प्रतिक्रिया

इस पूरे घटनाक्रम के बाद राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है। कुछ लोग इसे कांग्रेस की रणनीति मान रहे हैं, जबकि अन्य इसे सचिन चौधरी की व्यक्तिगत सोच और उनकी सौहार्द्र नीति का हिस्सा बता रहे हैं।

समर्थकों ने किया तारीफ

कुछ कांग्रेस समर्थकों का कहना है कि यह सचिन चौधरी की सच्ची धर्मनिरपेक्षता को दर्शाता है। वे हर समुदाय के लोगों को जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं, और उनका यह कदम एकता और भाईचारे का उदाहरण है। हालांकि, आम जनता में इस पहल को लेकर मिलीजुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। कुछ लोग इसे सच्चे सांप्रदायिक सौहार्द्र का प्रतीक मान रहे हैं, जबकि कुछ इसे राजनीतिक रणनीति कहकर खारिज कर रहे हैं।

सचिन चौधरी का बयान: हमें एकता की ज़रूरत है, नफरत की नहीं

इस पूरे घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए सचिन चौधरी ने कहा,
भारत विविधताओं से भरा देश है। हमें एक-दूसरे की परंपराओं और मान्यताओं का सम्मान करना चाहिए। धर्म के नाम पर हमें अलग नहीं होना चाहिए, बल्कि साथ आकर जश्न मनाना चाहिए। मैं चाहता हूं कि हिंदू-मुस्लिम एकता का संदेश हर कोने में पहुंचे।

उन्होंने आगे कहा कि अपराध, अशिक्षा और बेरोजगारी असली दुश्मन हैं, और हमें इनसे लड़ना चाहिए न कि एक-दूसरे से।

हमारा मकसद समाज को जोड़ना है, तोड़ना नहीं। मैं सभी धर्मों का सम्मान करता हूं और हर खुशी में शामिल होने को तैयार हूं।

क्या यह पहल सच में बदलाव लाएगी?

सचिन चौधरी का यह कदम सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल बनेगा या सिर्फ एक राजनीतिक घटना बनकर रह जाएगा, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

लेकिन इतना जरूर है कि यह पहल चर्चाओं में आ गई है और इससे धर्म और राजनीति के आपसी संबंधों पर एक नई बहस छिड़ गई है।

अंत में बड़ा सवाल: क्या यह पहल राजनीतिक रणनीति थी या सच्ची एकता का संदेश?

सचिन चौधरी की इस अनोखी पहल ने समाज में एक चर्चा जरूर छेड़ दी है। कुछ लोग इसे सच्चा भाईचारा मान रहे हैं, जबकि कुछ इसे राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास कह रहे हैं।
लेकिन एक बात तो तय है – इस पहल ने एकता और सौहार्द्र का एक संदेश जरूर दिया है, जिसे लोग लंबे समय तक याद रखेंगे।
अब सवाल यह है कि क्या राजनीति वाकई समाज को जोड़ सकती है, या फिर यह सिर्फ एक खेल भर है?
आपका क्या विचार है? क्या यह सही मायने में सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल थी, या फिर राजनीति का एक नया रूप?

 

 

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