टेक्नोलॉजी के विकास के साथ, हाल के वर्षों में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग बढ़ रहा है और ये आज हमारे जीवन का हिस्सा बन गए हैं। बेशक, प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों ने दुनिया को करीब ला दिया और लोगों के साथ हमारे संवाद करने के तरीके को बदल दिया। लेकिन इसकी लत एक गंभीर विषय है जिस पर हमें ध्यान देने की जरुरत है। 2000 के आसपास पैदा हुई पीढ़ी का Computer, Smart Phone आदि के साथ तुलनात्मक रूप से घनिष्ठ संबंध है।
काफी तेजी से बढ़ रहा है वह है Social media or Digital Gaming
वहीं, एक जटिल कारक जो काफी तेजी से बढ़ रहा है वह है Social media या Digital media पहले तो यह कुछ ही लोगों तक सीमित था। लेकिन अब, लगभग हर किसी की पहुंच Social media तक है। यह छोटे बच्चों तक भी पहुंच गया है, हालांकि यहां अभिभावकों की लापरवाही देखी जा सकती है। अक्सर देखा जाता है कि माता पता को ध्यान ही नहीं रहता कि उनका बच्चा मोबाइल फोन से क्या कर रहा है। एक शोध में कहा गया है कि 16-18 वर्ष की आयु के युवा सोशल मीडिया पर पोस्ट करके, फैंसी खाना खाकर, ट्रेंडिंग जगहों पर जाकर दिखावा करने में लगे हुए हैं। युवाओं के मन में निरंतर गुप्त प्रतिस्पर्धा और ईर्ष्या विकसित हो रही है।
सिर्फ Social media ही नहीं बल्कि आजकल हम Online Video Games का भी विस्तार देख रहे हैं। सामाजिक प्लेटफ़ॉर्म की तरह, Video Gaming में भी विविध प्रकार की शैलियाँ होती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ये वीडियो गेम इस तरह से डिज़ाइन किए गए हैं कि यह बच्चों को आकर्षित करते हैं और नशे की लत की तरह डोपामाइन के स्तर को बढ़ाते हैं। उच्च स्तर की हिंसा वाले ऐसे Video Gaming धीरे-धीरे बच्चों को अधिक आक्रामक बना रहे हैं। मनोवैज्ञानिक प्रभावों के अलावा, ये शारीरिक स्वास्थ्य पर भी असर डाल सकते हैं। अक्सर, हमें यह पता चलता है कि Video Gaming का अत्यधिक उपयोग तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचाता है और युवा लोग इससे संबंधित बीमारियों से पीड़ित होते हैं।
CASA (नेशनल सेंटर ऑन एडिक्शन एंड सब्सटेंस एब्यूज) के अनुसार, जो बच्चे Social media और Video Gaming का अधिक उपयोग करते हैं, उनके गैर-उपयोगकर्ताओं की तुलना में शराबी और नशीली दवाओं के आदी होने की अधिक संभावना है। ये ऑनलाइन गतिविधियां लगातार मानवीय भावनाओं से खिलवाड़ कर रही हैं. पोस्ट, फोटो, वीडियो, गेम के स्रोत अनंत हैं जिसमे खोकर युवा पीढ़ी घंटो स्क्रीन स्क्रॉल करती रहती है. आज ज्यादातर बच्चे ईर्ष्यालु, प्रतिस्पर्धी और थके हुए होते जा रहे हैं। मनोविज्ञान के प्रोफेसर लैरी डी रोसेन इन समस्याओं को “विकार” कहते हैं, उनके अनुसार, जो किशोर अक्सर सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं, उनके व्यवहार में ‘नार्सिसिस्टिक प्रवृत्ति’ दिखाई देती है।
कुछ समय पहले एक खबर आई थी कि भोपाल में एक 14 वर्षीय लड़की के साथ ऑनलाइन गेम खेलने के दौरान दोस्ती करने के बाद तीन लोगों ने कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार किया था। बताते चले की ये ये लोग एक गेम के दौरान दोस्त बने थे. फिर सितंबर 2020 में, लड़की अन्य लड़कों के साथ बाहर घूमने के लिए तैयार हो गई और तब उसे एक खाली फ्लैट में ले जाया गया जहां उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। घटना के बारे में बताने पर उसे धमकी देने के लिए पूरी घटना को फिल्माया गया था। लेकिन सौभाग्य से, उसके माता-पिता ने इस पर ध्यान दिया और उससे पूछताछ की, उसने सब कुछ बता दिया। हालांकि पुलिस ने पहले ही उन आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया था और उन पर भारतीय दंड संहिता की एक अलग धारा के तहत सामूहिक बलात्कार, आपराधिक धमकी और POCSO अधिनियम के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया था।
आज माता-पिता के मन में यह सवाल है कि बच्चों को ऑनलाइन खतरों से कैसे बचाया जाए। भोपाल में आरंभ और चाइल्डलाइन की निदेशक अर्चना सहाय ने माता-पिता को सावधान करते हुए कहा, “माता-पिता को बहुत सावधान रहने की जरूरत है। उन्हें समझना चाहिए कि उनके बच्चे क्या कर रहे हैं. कोरोना के कारण ऑनलाइन कक्षाएं चल रही थी । स्कूल बंद थे, बच्चों को बाहर निकलने का मौका नहीं मिल रहा था. इस दौरान मोबाइल की लत और ज्यादा बढ़ गई. माता-पिता को इस बात से सावधान रहना चाहिए कि उनका बच्चा क्या कर रहा है। अभिवावक को बच्चो के साथ बैठना चाहिए. और घर में कुछ ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए ताकि बच्चे उनके साथ जो भी हो रहा हो उसे साझा कर सकें। अगर वे साझा नहीं करते हैं, तो इसका मतलब है कि कुछ तो है.” जैसे-जैसे बच्चों को दरवाजों के पीछे बंद किया जा रहा है, ऑनलाइन चैट, यौन शोषण के साथ-साथ स्क्रीन टाइम भी बढ़ गया है.
बढ़ती टेक्नोलॉजी और डिजिटल उपकरणों पर आश्रित होना मानव विकास को प्रभावित कर रहा है। इसकी आसान पहुंच और त्वरित जानकारी से आलस्य तो आता ही है साथ ही चरित्र पर भी इसका भारी प्रभाव पड़ता है, और असुरक्षा की भावना पैदा होती है। अधिकांश किशोर केवल कुछ “लाइक” के लिए खुद को प्रतिस्पर्धा में शामिल कर रहे हैं। शारीरिक स्वास्थ्य से जुड़ी एक और समस्या यह है कि किशोर गर्दन, सिर और पीठ दर्द से जूझ रहे हैं।
नॉर्वे के बर्गेन विश्वविद्यालय के पीएच.डी. सेसिली शॉ एंड्रियासेन ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, “अत्यधिक गेमिंग में संलग्न होना अप्रिय भावनाओं को कम करने और बेचैन शरीर को शांत करने के प्रयास में मानसिक विकारों से बचने या उनसे निपटने के लिए एक उपाय के रूप में कार्य कर सकता है। शोध में कहा गया है कि पुरुष वीडियो गेम के अधिक आदी हैं, और महिलाएं सोशल मीडिया से जुड़ी हुई हैं।
Gaming विकार को Gaming व्यवहार के एक पैटर्न (Social Media or Video Gaming) के रूप में परिभाषित किया गया
डब्ल्यू.एच.ओ. के अनुसार, “Gaming विकार को Gaming व्यवहार के एक पैटर्न (Social Media या Video Gaming) के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसमें Gaming पर बिगड़ा हुआ नियंत्रण, अन्य गतिविधियों पर गेमिंग को दी जाने वाली प्राथमिकता को इस हद तक बढ़ाना कि Gaming को अन्य रुचियों और दैनिक गतिविधियों पर प्राथमिकता दी जाए, और नकारात्मक परिणामों की घटना के बावजूद गेमिंग को जारी रखना या बढ़ाना।” जब किसी व्यक्ति को खुश रहने के लिए गेम खेलने की ज़रूरत होती है या जब वह नहीं खेल रहा होता है तो दुखी महसूस करता है, यह दर्शाता है कि उसे शराब और नशीली दवाओं की लत के समान विकार हो सकता है।
हाल ही में गैर सरकारी संगठन, क्लीनिक और विभिन्न संगठन इन ऑनलाइन गतिविधियों की आदी युवा पीढ़ी को परामर्श प्रदान करके सराहनीय सेवाएँ दे रहे हैं। यहां अभिभावकों को अधिक सावधान रहने की जरूरत है। माता-पिता को इस पर नजर रखनी चाहिए कि उनके कहीं उनके बच्चे गैजेट्स का दुरुपयोग नहीं कर रहे हैं, और जितना संभव हो सके उनके उपयोग को कम करने का प्रयास करें।
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