Indian Navy का इतिहास स्वतंत्रता प्राप्ति से भी पुराना

Aanchalik khabre
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Indian Navy का इतिहास
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Indian Navy का विद्रोह और अंग्रेज सरकार का घुटने टेकना एक विलक्षण घटना

सेना का जिंक्र आते ही जो तस्वीरें जेहन में कौंधती हैं वो टैंको में सवार, वायुयानों में उड़ते, पानी के जहाजों पर तैनात चुस्त दुरुस्त नौजवानों की होती है। रोमांच और वीरता की ये तस्वीरें सबसे ज्यादा आकर्षित करती है, युवा मन को। युवाओं को सेना न सिर्फ नौकरी और कैरियर प्रदान करती है, बल्कि रोमांच, देशभक्ति के जीवन से दो चार होने के मौक भी देती है।

युवा ऊर्जा से उबलते नौजवानों के लिये सेना जिंदगी के रोमांचकारी अनुभव को सच बनाने और देश रक्षा में कुछ कर गुजरने का अवसर देता है। यूं तो भारतीय सेना के तीन अंग है।

Indian Navy का इतिहास
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वायुसेना, थलसेना और जलसेना, तीनों ही सेनाओं का महत्व कमोवेश बराबर ही है। किसी भी अंग को कमतर‌ नहीं आंक सकते। बहादुरी के अद्भुत जज़्बात और युद्ध के अत्याधुनिक विशाल संसाधनों के साथ विश्व में भारत की सेना अद्वितीय स्थान रखती है। विश्व विख्यात युद्ध पोत “विराट”, “विकांत” ने भारतीय नौसेना का इतिहास स्वर्णाक्षरों में अंकित होते अपने सामने ही देखा है।

Indian Navy  का इतिहास स्वतंत्रता प्राप्ति से भी पुराना है। भारतीय नौसेना ने 1946 ई. में अपनी नौसैनिक शक्ति पर इतराने वाले ब्रिटेन को भी एक समय नाकों चने चबवा दिये थे। बात उस समय की है जब अंग्रेजों ने आजाद हिंद फौज के सैनिक एवं अधिकारियों को बंदी बना लिया था, और अंग्रेजों ने फौज के सैनिकों पर देश द्रोह का आरोप लगाया, क्योंकि उन्होंने ब्रिटिश भारतीय सेना के प्रति ली गई स्वामी भक्ति की शपथ भंग की थी।

इस मुकदमे की सुनवाई दिल्ली के लाल किले के सैनिक छावनी में स्थित न्यायालय में हुई। भारत की राजनीति में आजाद हिंद फौज के अफसरों पर मुकदमा एक सनसनी खेज घटना थी। इसे सुनकर भारतीय जनता अत्यंत उत्तेजित हो गई। लाल किले में स्थित सैनिक न्यायालय ने तीन अभियुक्तों ढील्लन, सहगल, शाहनवाज को मृत्युदण्ड की सजा दी।

फरवरी 1946 के तीसरे सप्ताह में मुंबई में Indian Navy के विद्रोह के रूप में भड़क उठी

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तब रॉयल इंडियन नेवी के नाविकों ने एक कड़वे घुंट की तरह इसे पी तो लिया, लेकिन वे उसे किसी भी तरह पचा नहीं पाये थे। अपने राष्ट्रीय सम्मान की रक्षा के लिये संकल्प ले चुके थे। प्रायः अधिकारियों के द्वारा होने वाले अपमान तथा अपने प्रति अन्याय, भेदभावपूर्ण व्यवहार के कारण उनमें प्रतिरोध और कुछ कर गुजरने की आग भीतर ही भीतर सुलग रही थी। इसी दौरान फरवरी 1946 के तीसरे सप्ताह में मुंबई में भारतीय नौ सेना के विद्रोह के रूप में भड़क उठी।

वैसे भी अंग्रेज अधिकारियों से Indian Navy के सैनिकों को बहुत सारी शिकायतें थीं ,जिनकी अभिव्यक्ति इस विद्रोह के रूप में हुई। सबसे पहले बंबई डाक पर आल इंडियन नेवी के भारतीय सैनिकों ने अंग्रेजों के दुर्व्यवहार एवं भेदभाव पूर्ण रवैए के विरोध में अपना राशन लेने और परेड पर जाने से इंकार कर दिया। लगभग 3000 नौसैनिक विद्रोह पर उतर आये और अपने यूरोपियन अधिकारियों पर हमला करने लगे।

नौ सैनिक गाड़ियों को जलाने लगे और 19 फरवरी को शहर में आकर उन्होंने भीड़भाड़ वाले फाउंटन इलाके को अपने अधिकार में ले लिया। नौसैनिकों का अनुसरण करते हुए ही मद्रास तथा कलकत्ता के नौसैनिक प्रतिष्ठानों में भी विद्रोह का झंडा बुलंद हो गया।

विद्रोही नौसैनिकों ने जहाजों को अपने कब्जे में लेकर उन पर तो काबू पा लिया तथा आने वाली स्थिति का मुकाबला करने के लिये तैयार हो गये। फ्लैगशिप नर्मदा साहन बंबई डाक के बीस जहाजों को विद्रोही नौसैनिको ने अपने अधिकार में कर लिया।

तथा इसके अतिरिक्त कंसल बैरक में तोपखाने तथा अधिकांश अस्त्रों को कब्जे मे कर लिया। बंबई और करांची की हडताल अगले दिन अन्य नौसैनिक केन्द्रों कलकत्ता तथा मद्रास में भी फैल गई। सरकार परेशान हो उठीं।

प्रारंभ में अंग्रेज अधिकारी नौसैनिकों के विद्रोह से चिंतित नहीं हुए। बल्कि उन्हें यह विश्वास था कि वह बलपूर्वक इस विद्रोह को दबा देंगे। आप जानते हैं कि अंग्रेज सरकार के पास कितनी शक्ति है। और वह शक्ति का प्रयोग करने में जरा भी नहीं हिचकेगी। चाहे उसकी नौसेना बर्बाद ही क्यों ना हो जाए। 22 फरवरी तक विद्रोही नौ सैनिकों ने मुंबई बंदरगाह में स्थित ब्रिटिश एडमिरल के फ्लैगशिप के साथ ही लगभग सभी जहाज़ों को भी अपने अधिकार में ले लिया।

अब तक मुंबई का यह विद्रोह लगभग पूरी तरह रॉयल इंडियन नेवी को अपनी चपेट में ले लिया था। अब यह मुंबई, कराची, कलकत्ता, मद्रास, कोचिंन, विशाखापट्टनम तथा अंडमान में सभी नौसैनिक प्रतिष्ठान में विद्रोह की घोषणा कर चुके थे। इसी बीच कांग्रेस के वामपंथी लोगों ने नौसैनिक विद्रोहियों के समर्थन में एक आम हड़ताल का आह्वान किया । जो सारे मुंबई में पूर्ण हड़ताल के रूप में फैल गया। और जगह-जगह दंगे भी शुरू हो गए। मद्रास और कलकत्ता में भी कुछ स्थानों पर दंगे हुए।

Indian Navy विद्रोहियों की सहानुभूति में आसफ अली ने केंद्रीय असेंबली में अंग्रेजों की कड़े शब्दों में आलोचना की

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Indian Navy विद्रोहियों की सहानुभूति में आसफ अली ने केंद्रीय असेंबली में 23 फरवरी को बोलते हुए कहा-” अंग्रेज अधिकारी इन नौसैनिकों के लिए जो भी भाषा का प्रयोग करते हैं ,मुझे उसको दोहराते हुए भी लज्जा आती है।

यदि यही व्यवहार किन्हीं दूसरे व्यक्तियों के साथ किया जाए तो प्रारंभ में मुमकिन है कि वे नौसैनिकों की अपेक्षा कहीं ज्यादा हिंसात्मक रूप अपनाएंगे। नौसैनिकों की शिकायतों को कहीं और जगह निश्चित रूप से सहानुभूति पूर्वक सुना जाता। मैं मानता हूं कि सैनिकों को राजनीति से दूर रहना चाहिए। लेकिन दूसरी तरफ उनकी मूलभूत शिकायतों को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता।

कांग्रेस के सोशलिस्ट सदस्य मीनू मसानी ने भी अंग्रेज सरकार को चेतावनी देते हुए घोषणा की हम अंग्रेजों के भारत के ऊपर शासन करने के नैतिक अधिकार को स्वीकार नहीं करते। उनका कानून मानने को हम बाध्य नहीं हैं, क्योंकि हमने उनको कभी भी स्वीकार नहीं किया है।

इसलिए जब कभी भी अपने सैनिक या नागरिक कानून को तोड़ा जाता है तो हम में से हर व्यक्ति की सहानुभूति विद्रोहियों के साथ हो जाती है। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू , सरदार पटेल मोहम्मद अली जिन्ना, मौलाना आजाद तथा दूसरे सभी राष्ट्रीय नेता स्थिति पर नजर रखे हुए थे। लेकिन उन्होंने व्यक्तिगत रूप से अपने को इस विद्रोह से दूर रखा था। क्योंकि वह ऐसा कोई भी कदम उठाना नहीं चाहते थे, जिससे स्थिति के बिगड़ने की संभावना बढ़ जाती।

वह सभी सरकार के साथ भी संपर्क बनाए हुए थे, और बातचीत से कोई हल निकालने का प्रयास कर रहे थे। अंग्रेजी सरकार भी समझौता न करके भयानक युद्ध एवं परिणामों की धमकी पर धमकी दिए जा रही थी। और तो और उसके विध्वंसक युद्धपोत भी इसलिए मुंबई की ओर रवाना हो गए। “पर धन्य है भारत के वीर सपूतों वीर सैनिकों की जो उनके सामने झुके नहीं” अंत तक डटे रहे! अंतत सरकार को ही इन नौ सैनिकों के आगे हार माननी पड़ी।

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