Jagannath Temple के ऊपर से नहीं गुजरते हवाई जहाज

Aanchalik khabre
By Aanchalik khabre
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Jagannath Temple में दर्शन करने आते हैं लाखों श्रद्धालु
Jagannath Temple में दर्शन करने आते हैं लाखों श्रद्धालु

Jagannath Temple को हिंदुओं के चार धामों में से एक माना जाता है, दर्शन करने के लिए आते हैं हर साल लाखों श्रद्धालु

निसिंग। निसिंग से समाजसेवी सतीश गोयल के नेतृत्व में श्रद्धालुओं की बस मां काली के दर्शन करने के बाद उड़ीसा के। कोणार्क सूर्य मंदिर और Jagannath Temple में श्रद्धालुओं ने दर्शन किए।ओडिशा में स्थित प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर 772 साल पुराना है। बलुआ पत्थर और ग्रेनाइट से बने इस मंदिर को देखने के लिए दुनियाभर से सैलानी आते हैं।

इस मंदिर का निर्माण इस तरह से किया गया है कि सूर्य की पहली किरण मंदिर के प्रवेश द्वार पर पड़ती है। बता दें कि Jagannath Temple को हिंदुओं के चार धामों में से एक माना जाता है। लकड़ी की मूर्तियों वाला यह देश का अनोखा मंदिर है। यहां हर साल लाखों श्रद्धालु पूरी दुनिया से भगवान के दर्शन के लिए आते हैं।

Jagannath Temple में दर्शन करने आते हैं लाखों श्रद्धालु
Jagannath Temple में दर्शन करने आते हैं लाखों श्रद्धालु

पुरी के इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बालभद्र और बहन सुभद्रा की लकड़ी की मूर्तियां हैं। यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है। Jagannath Temple की स्थापना मालवा के राजा इंद्रदयुम्न ने किया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा को एक बार सपने में भगवान जगन्नाथ के दर्शन हुए थे।

सपने में भगवान से अपनी एक मूर्ति को नीलांचल पर्वत की गुफा से ढूंढकर लाने और उस मूर्ति को मंदिर बनवाकर स्थापित करने को कहा था। इस मूर्ति को भगवान ने नीलमाधव बताया बताया था। इसके बाद राजा अपने सेवक के साथ नीलांचल पर्वत की गुफा में भगवान की मूर्ति ढूंढने निकल पड़े । उन सेवको में से एक ब्राह्मण था जिसका नाम विद्यापति था।

विद्यापति को सबर कबीले के लोगों के बारे पता था जो नीलमाधव की पूजा करते हैं। इसके साथ ही वो ये भी जानता था कि सबर कबीले के लोग नीलमाधव की प्रतिमा को गुफा के अंदर छिपा कर रखते हैं। इस कबीले का मुखिया विश्ववसु भगवान का उपासक था। वह किसी भी हाल में भगवान की मूर्ति देने को तैयार नहीं होता।

इस कारण विद्यापति ने चालाकी से मुखिया की बेटी से विवाह कर लिया। और अपनी पत्नी के सहारे विद्यापति उस गुफा तक पहुंचने में कामयाब हो गए जहां भगवान नीलमाधव की मूर्ति रखी गई थी। विद्यापति ने भगवान नीलमाधव की मूर्ति को चुरा लिया और राजा को सौंप दिया। लेकिन भगवान की मूर्ति के चोरी होने से विश्ववसु को बहुत दुख हुआ।

इस कारण भगवान को भी काफी दुख हुआ कि उनका उपासक दुखी है।इस वजह से नीलमाधव वापस गुफा में लौट गए और राजा इंद्रदयुम्न से वादा किया कि वह एक दिन उनके पास जरूर लौंटेंगे लेकिन राजा उनके लिए एक मंदिर बनवा दें। इसके बाद राजा ने मंदिर बनवाकर भगवान से विराजमान होने के लिए कहा लेकिन तभी भगवान ने कहा कि द्वारका से तैरकर पुरी की तरफ आ रहे बड़े से पेड़ के टुकडे़ को लेकर आओ। इससे तुम मेरी मूर्ति बनाओ।

राजा और उनके लोग फौरन पेड़ के टुकड़े के तलाश में निकल पड़े। लकडी का टुकड़ा उन्हें मिल गया लेकिन वो उठाकर लाने में असक्षम थे। तभी राजा को कबीले का मुखिया विश्ववसु याद आया। राजा ने विश्ववसु की सहायता ली। विश्ववसु लकड़ी को उठाकर मंदिर तक ले आए और फिर भगवान की मूर्ति बनाई गई।

Jagannath Temple का सबसे बड़ा रहस्य यह है कि, इसके शिखर पर स्थित झंडा हमेशा हवा की विपरीत दिशा में लहराता है

Jagannath Temple का सबसे बड़ा रहस्य यह है कि, इसके शिखर पर स्थित झंडा हमेशा हवा की विपरीत दिशा में लहराता है। ऐसा क्यों होता हैं यह रहस्य आज तक कोई नहीं जान पाया है। मंदिर में जाने के लिए चार गेट है, जिसमें एक सिंह द्वार है और इस गेट को रहस्यमयी माना जाता है। Jagannath Temple के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र लगा है, जिसके बारे में कहा जाता है कि, उसे किसी भी दिशा से खड़े होकर देखें, ऐसा लगता है कि चक्र का मुंह आपकी ही तरफ है।

इसी तरह मंदिर के शिखर की छाया हमेशा अदृश्य ही रहती है। उसे जमीन पर कभी कोई नहीं देख पाता है।कहते हैं Jagannath Temple के पास समुद्र है, लेकिन मंदिर के अंदर समुद्र की लहरों की आवाज किसी को भी सुनाई नहीं देती है। लेकिन आप जैसे ही मंदिर से बाहर कदम निकालेंगे, आपको समुद्र के लहरों की आवाज स्पष्ट सुनाई देने लगेगी।

आमतौर पर हर मंदिर या इमारत के ऊपर से पक्षी गुजरते रहते हैं या उसके शिखर पर बैठ जाते हैं लेकिन Jagannath Temple इस मामले में सबसे रहस्यमय है, क्योंकि इसके ऊपर से कोई भी पक्षी कभी नहीं गुजरता है। इतना ही नहीं मंदिर के ऊपर से हवाई जहाज भी नहीं उड़ते हैं।इस मंदिर की रसोई सबसे खास है।

यहां भक्तों के लिए प्रसाद पकाने के लिए सात बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं। हैरानी की बात ये है कि सबसे ऊपर रखे बर्तन में ही प्रसाद सबसे पहले पकता है। फिर नीचे की तरफ एक के बाद एक बर्तन में रखा प्रसाद पकता जाता है। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि, यहां हर दिन बनने वाला प्रसाद भक्तों के बीच कभी कम नहीं पड़ता है। कोई भक्त प्रसाद के बिना नही जाता है, लेकिन जैसे ही मंदिर का द्वार बंद होता है, वैसे ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है।

जोगिंद्र सिंह, निसिंग

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