Jhansi UP : झाँसी में रेहड़ी-पटरी विक्रेताओं पर पुलिस का अत्याचार, विधवा महिला से बदसलूकी

News Desk
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झाँसी। शहर की सड़कों पर जीवनयापन के लिए संघर्ष कर रहे रेहड़ी-पटरी विक्रेताओं के लिए आजीविका चलाना आसान नहीं रह गया है। खासकर जेल चौराहा से स्टेशन जाने वाली सड़क पर फल एवं सब्जी विक्रेताओं की स्थिति अत्यंत दयनीय बनी हुई है। वे प्रतिदिन सुबह से शाम तक अपनी डलिया में ताजा फल और सब्जियाँ लेकर बैठते हैं, जिससे उन्हें अपनी रोजी-रोटी चलाने में सहायता मिल सके। लेकिन प्रशासन की अनदेखी और पुलिसकर्मियों के दुर्व्यवहार के कारण उनके लिए यह कार्य कठिन होता जा रहा है।

नगर निगम ने दिया स्थान, फिर भी पुलिस का उत्पीड़न जारी

इन छोटे व्यापारियों की शिकायत है कि नगर निगम द्वारा उन्हें प्रतिमाह ₹600 शुल्क लेकर स्थान आवंटित किया गया है, फिर भी स्थानीय प्रशासन और यातायात पुलिस उन्हें परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही। इन विक्रेताओं में बड़ी संख्या में महिलाएँ भी हैं, जो अपने परिवार का पेट पालने के लिए रोज़ाना सड़क किनारे बैठकर फल-सब्जी बेचती हैं।

लेकिन आए दिन उनके सामान को नुकसान पहुँचाया जाता है, उन्हें धमकाया जाता है और कई बार उनकी रेहड़ियाँ जबरन हटा दी जाती हैं। विक्रेताओं का कहना है कि पुलिसकर्मी कभी-कभी उनकी डलिया को लात मारकर फेंक देते हैं और उनसे बदसलूकी करते हैं।

55 वर्षीय विधवा ऊषा देवी के साथ पुलिस का दुर्व्यवहार

ताजा घटना 26 मार्च को दोपहर लगभग 1:30 बजे की है, जब 55 वर्षीय विधवा ऊषा देवी अपनी रोज़ की तरह सब्जी बेच रही थीं। उसी दौरान एक यातायात पुलिसकर्मी वहाँ पहुँचा और अचानक उनकी डलिया को लात मारकर फेंक दिया। देखते ही देखते ऊषा देवी के फल और सब्जियाँ बिखर गईं।

जब ऊषा देवी ने इस अन्याय का विरोध किया, तो पुलिसकर्मी ने न केवल उन्हें गालियाँ दीं बल्कि मोबाइल से उनके गाल पर जोरदार वार कर दिया। इससे उनके जबड़े में चोट आ गई और उनका चेहरा सूज गया।

स्थानीय लोगों ने जब इस घटना को देखा, तो उन्होंने इसका विरोध किया। लेकिन पुलिसकर्मी ने किसी की एक न सुनी और धमकी देते हुए वहाँ से चला गया।

व्यापारियों में आक्रोश, संघर्ष सेवा समिति में पहुंचे विक्रेता

इस घटना के बाद, लगभग आधा दर्जन रेहड़ी-पटरी विक्रेता संघर्ष सेवा समिति के कार्यालय पहुँचे, जहाँ उन्होंने इस मुद्दे को उठाया। उन्होंने बताया कि वे नगर निगम द्वारा अधिकृत स्थान पर अपनी दुकानें लगाते हैं, लेकिन फिर भी यातायात पुलिसकर्मी उन्हें लगातार परेशान कर रहे हैं।

संघर्ष सेवा समिति के डॉ. संदीप ने इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा,
“आज के समय में, जब बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है, सरकार भी लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रयास कर रही है। छोटे व्यवसायों को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाएँ चलाई जा रही हैं, लेकिन कुछ लोग सरकार की छवि को धूमिल करने का काम कर रहे हैं।”

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यह निंदनीय है कि एक विधवा महिला के साथ पुलिसकर्मी ने इस तरह का व्यवहार किया। प्रशासन को इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए और दोषी पुलिसकर्मी पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।”

संघर्ष सेवा समिति में शिकायत लेकर पहुँची महिलाओं ने कहा कि वे बहुत ही कठिन परिस्थितियों में अपना जीवन यापन कर रही हैं। कई महिलाएँ अपने परिवार की इकलौती कमाने वाली सदस्य हैं।

“हम अपनी मेहनत से काम करके पेट पाल रहे हैं। अगर नगर निगम ने हमें जगह दी है, तो पुलिस हमें क्यों परेशान कर रही है? क्या गरीबों के लिए कोई कानून नहीं?”

उन्होंने आरोप लगाया कि जब वे शिकायत करने जाती हैं, तो उनकी कोई सुनवाई नहीं होती। पुलिसकर्मी उन्हें तरह-तरह से धमकाते हैं और झूठे आरोप लगाकर उन्हें वहाँ से भगाने की कोशिश करते हैं।

महिलाओं ने जन सुनवाई पोर्टल पर दर्ज कराई शिकायत
इस घटना से नाराज महिलाओं ने जन सुनवाई पोर्टल पर ऑनलाइन शिकायत दर्ज कराई है। उन्होंने मांग की है कि संबंधित पुलिसकर्मी के खिलाफ कार्रवाई की जाए और भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोका जाए।

“अगर हमारे साथ इस तरह का दुर्व्यवहार जारी रहा, तो हम मजबूर होकर धरना प्रदर्शन करेंगे और प्रशासन को अपनी आवाज सुनने पर मजबूर करेंगे।”

रेहड़ी-पटरी विक्रेताओं की समस्याएँ – एक व्यापक मुद्दा
झाँसी ही नहीं, बल्कि देश के कई शहरों में फुटपाथ पर दुकान लगाने वाले छोटे विक्रेताओं को इसी तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वे न केवल पुलिस के उत्पीड़न के शिकार होते हैं, बल्कि कभी-कभी बड़ी दुकानों के मालिक भी उन्हें हटाने का दबाव बनाते हैं।

कई बार, बिना किसी पूर्व सूचना के, प्रशासन उनकी रेहड़ियाँ ज़ब्त कर लेता है या उन्हें हटा देता है, जिससे उनका पूरा जीवन प्रभावित होता है।

संभावित समाधान और प्रशासन से माँग

इस मामले को देखते हुए निम्नलिखित समाधान सुझाए जा सकते हैं:

पुलिस प्रशासन को प्रशिक्षण दिया जाए – पुलिसकर्मियों को रेहड़ी-पटरी विक्रेताओं के प्रति संवेदनशील बनाया जाए और उनसे सम्मानपूर्वक व्यवहार करने की शिक्षा दी जाए।

नगर निगम और पुलिस के बीच समन्वय – नगर निगम द्वारा दिए गए स्थानों पर बैठे विक्रेताओं को सुरक्षा प्रदान की जाए और पुलिस को निर्देश दिया जाए कि वे उन्हें बेवजह परेशान न करें।

शिकायत निवारण प्रणाली को मजबूत किया जाए – रेहड़ी-पटरी विक्रेताओं के लिए एक अलग हेल्पलाइन शुरू की जाए, जिससे वे अपनी समस्याओं की शिकायत सीधे उच्च अधिकारियों तक पहुँचा सकें।

आर्थिक सुरक्षा प्रदान की जाए – छोटे व्यापारियों को सरकार की योजनाओं से जोड़कर उन्हें वित्तीय सहायता दी जाए, जिससे वे अपना व्यवसाय सुचारू रूप से चला सकें।

झाँसी की इस घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि गरीब और छोटे व्यापारियों के लिए न्याय पाना आसान नहीं है। फुटपाथ पर बैठने वाले ये विक्रेता कोई अपराधी नहीं हैं, बल्कि मेहनत करके अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं। लेकिन आए दिन उन्हें उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।

अब यह देखना होगा कि प्रशासन इस मामले पर क्या कार्रवाई करता है। क्या दोषी पुलिसकर्मी के खिलाफ कोई कदम उठाया जाएगा? या फिर यह मामला अन्य मामलों की तरह फाइलों में दबकर रह जाएगा?

रेहड़ी-पटरी विक्रेताओं को उम्मीद है कि इस बार उन्हें न्याय मिलेगा और भविष्य में उन्हें अपनी रोज़ी-रोटी कमाने में कोई बाधा नहीं आएगी।

 

 

 

 

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