Kirche(किरचे) उपन्यास भारतीय समाज की संकीर्ण मानसिकता पर करारा प्रहार करता है

Aanchalik khabre
By Aanchalik khabre
7 Min Read
Kirche(किरचे) उपन्यास वाइफ स्वैपिंग की पार्टी पर आधारित
Kirche(किरचे) उपन्यास वाइफ स्वैपिंग की पार्टी पर आधारित

Kirche(किरचे) वाइफ स्वैपिंग की पार्टी और पति-पत्नी की अदला-बदली पर आधारित उपन्यास है

राकेश शंकर भारती मीठी लुभावनी भाषा शैली और कहानी-उपन्यास में ट्विस्ट और सस्पेंस देने में माहिर हैं, इसी कारणवश पाठक आपकी लंबी कहानियाँ और उपन्यास आखिर तक पढ़कर ही दम लेते हैं। आपकी बेबाक निर्भीक लेखन शैली और बुराई में भी रहकर अच्छाई की तलाश करना ही आपकी रचना की खासियत है। आप हिंदी साहित्य में वन डे मैच के साथ-साथ टेस्ट मैच के भी खिलाड़ी हैं।

Pradhan Assistant 5 e1707197682948

दूसरे शब्दों में, यह कह सकते हैं कि आप साहित्य की दुनिया में लंबी पारी खेलने के लिए आये हैं। आपकी रचना पढ़कर ऐसा महसूस होता है कि आपमें साहित्य का असली खजाना छुपा हुआ है और आपके पास विषयों की कमी नहीं है, जो बारी-बारी से पाठकों के सामने पेश होते रहेंगे।

डायमण्ड बुक्स द्वारा प्रकाशित बुक Kirche जिसके लेखक राकेश शंकर भारती है। राकेश शंकर भारती का कहना है कि आज मैं Kirche उपन्यास के माध्यम से एक नये विषय के साथ भारतीय समाज की संकीर्ण मानसिकता पर करारा प्रहार करने जा रहा हूँ। यह उपन्यास कई सालों तक मेरे दिल की गहराई में छूपा रहा। जे. एन. यू. में पढ़ने के दौरान मेरे शोषित तन-मन में आत्मविश्वास का संचालन हुआ और यह उपन्यास भी मेरे दिल की गहराई में परिपक्व होता चला गया।

क्या हम जाति की बुनियाद पर ही अपने समाज की लंबी दीवार बरकरार रखना चाहते हैं? क्या हकीकत में वाइफ स्वैपिंग सिर्फ मौज मस्ती का समझौता है? क्या शादी का खोखलापन है वाइफ स्वैपिंग? जोड़ियाँ तो ऊपर वाले बनाते हैं, इस जहान में तो सिर्फ रस्में निभायी जाती हैं और हम परंपराओं के बोझ तले दबे रहते हैं।

मंडप पर सात फेरे ले लेने के बाद सिर्फ दो जिंदगियों का मेल नहीं होता, एक रिश्ता होता है, कुछ बातें होती हैं, कुछ जज्बात होते हैं, जो जन्मों तक चलते हैं। मैं तो अपने समाज में मानवीय रिश्ते को स्थापित करने का पक्षधर हूँ। इसी उद्देश्य से एक सच्ची घटना को कलात्मक रूप दे रहा हूँ। Kirche एक बहुअयामी उपन्यास है, जो कई मुद्दों को एक साथ लेकर चलता है और कई अवधारणाओं को धराशायी भी करता है।

यह उपन्यास(Kirche) के एक तिहाई भाग में फैला हुआ है और उपन्यास का आरंभ भी इसी वाइफ स्वैपिंग से होता है। ‘Kirche’ उपन्यास बाहरी तौर पर तो पति-पत्नी की अदला-बदली का उपन्यास लगता है, परंतु जब इसे आरंभ से अंत तक पढ़ा जाऐ तो समझ आता है कि यह वाइफ स्वैपिंग कथानक का एक टूल है। नायक जातीय ग्रंथि से ग्रसित होकर एक योजना के तहत वाइफ स्वैपिंग या की-पार्टी को अंजाम देता है।

उपन्यास(Kirche) का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू पितृसत्तात्मक समाज द्वारा स्वतंत्रता की आड़ में स्त्री का शोषण है

aanchalikkhabre.com Kirche Novel 1

नायक मोहित की जातीयता को लेकर जो विचार हैं, अनुभव हैं वह लेखक से मेल खाते हैं। मोहित ने अपने जीवन में जो कठिनाइयाँ झेलीं या जाति के नाम पर समाज ने उसे जो प्रताड़नाएँ दीं वे लेखक के वास्तविक जीवन से मेल खाती हैं। लेखक उन प्रताड़नाओं को सीढ़ी बनाकर ऊपर चढ़ता चला गया, परंतु नायक मोहित की भाँति लेखक के मन में पीड़ा सदा बनी रही कि समाज ने जाति के आधार पर उसे निकृष्ट घोषित कर दिया, जबकि वह प्रतिभा में किसी से कम नहीं था। यह पीड़ा मोहित के भीतर हीनता ग्रंथि बनकर बैठ गयी और इसी ग्रंथि ने प्रतिशोध को जन्म दिया। इस प्रतिशोध ने दोस्त, प्रेमिका, पत्नी, बेटे को सभी को निगल लिया।

उपन्यास(Kirche) का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू पितृसत्तात्मक समाज द्वारा स्वतंत्रता की आड़ में स्त्री का शोषण है। स्त्री को देह मुक्ति के झूठे झाँसे में फँसाकर उसे ठगने की कोशिश है। लेखक और उपन्यास के सभी पुरुष पात्र पितृसत्तात्मक नियमों को जीते हुए स्त्री पात्रों को ठगते दिखाई देते हैं। यहाँ लेखक इसलिए कहा क्योंकि उपन्यास पढ़ते हुए लेखक कुछ वाक्य बार-बार लिखता है जैसे ‘एक ही तरह की सब्जी हर रोज खाने से भी मन ऊब जाता है। ‘या फिर’ एक ही तरह की दाल बार-बार खायी जाऐ तो मुँह का स्वाद बिगड़ जाता है।‘ यह वाक्य पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका के संदर्भ में लिखे गये हैं।

इन्हें एक दो बार तो अनदेखा किया जा सकता है, परंतु इनका बार-बार आना लेखक की सहमती को दर्शाता हैं। लेखक उपन्यास में जिस कपल स्वैपिंग या की-पार्टी की बात करते हैं उसमें कोई भी स्त्री पात्र सहर्ष स्वीकृति नहीं देता। पुरुष अपनी उच्छृंखलता के लिए स्त्री पात्र को विवश करते हैं कि वह भी उसमें शामिल हो। पितृसत्तात्मक समाज की तानाशाही इतनी कि जिस की पार्टी को स्त्री स्वतंत्रता से जोड़कर देखा जा रहा है वास्तव में उस पार्टी में भी स्त्री इच्छा कोई महत्व नहीं रखती।

इस उपन्यास(Kirche) का एक महत्वपूर्ण आयाम है की-पार्टी या वाइफ स्वैपिंग। वास्तव में यह उपन्यास में लगाया गया एक तड़का है। जिस तरह फिल्मों को हॉट सीन, डांस नं. के साथ मसालेदार बनाया जाता है ठीक उसी तरह लेखक ने वाइफ स्वैपिंग या की-पार्टी का विस्तार से वर्णन किया है। लेखक ने मूल गंभीर मुद्दे और सामाजिक चुनौतियों को और अधिक नवीनता और नये विषय देकर समाज की समस्याओं को नये अंदाज और शैली में बताने की कोशिश की है। नये शैली में नये और पुराने विषयों का संयोजन करके यूनिक उपन्यास लिखे जाने के कारण यह उपन्यास मील का पत्थर साबित होगा।

लेखकः राकेश शंकर भारती,

प्रकाशकः डायमंड पॉकट बुक्स, पृष्ठ 192

 

See Our Social Media Pages

YouTube:@Aanchalikkhabre

Facebook:@Aanchalikkhabre

Twitter:@Aanchalikkhabre

 

इसे भी पढ़ें – Mona Ashok Verma की कविताएं निराशा में आशा की किरण का काम करती है

TAGGED:
Share This Article
Leave a comment