प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय सेक्टर-9 में Lohri का पावन पर्व बहुत हर्ष उल्लास के साथ मनाया गया
निसिंग। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय सेक्टर-9 में Lohri का पावन पर्व बहुत हर्ष उल्लास के साथ मनाया गया। इस पर्व पर आए हुए भाई-बहनों ने बहुत खुशी उमंग उत्साह के साथ भगवान परमात्मा शिव की मस्ती में रास किया और सभी ने अग्नि प्रचलित कर उसमें तिल और मूंगफली अग्नि को समर्पित किया।
साथ में यह संकल्प लिया कि हम अपनी कमियों और कमजोरी को इस अग्नि में स्वाहा कर अपने आप को संपन्न और संपूर्ण बनाएंगे। इस पावन अवसर पर बीके निर्मल दीदी ने बताया की Lohri अर्थात तन मन धन सब हरि परमात्मा आपका है मेरा मेरा बहुत कर लिया, व्यर्थ की सब बातें ,अभियान इस अग्नि में हम स्वाहा करते हैं।
मेरा अब कुछ नहीं सब कुछ आपका है यह पुरानी देह ओर यह दुनिया इसका आकर्षण सब समाप्त करते जा रहे हैं। परमात्मा प्यारे बाबा मेरे अंदर के सभी विकार भस्म कर दो और मुझ आत्मा को पवित्र और शुद्ध बना दो। ब्रह्माकुमारी निर्मल दीदी ने यह पवन रहस्य सुनाकर सभी को
Lohri के पावन पर्व की बहुत-बहुत बधाइयां दी और साथ में मकर संक्रांति का भी रहस्य सुनाया
मकर संक्रांति पर प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालुओं का मेला विभिन्न नदियों के घाटों पर लगता है। इस शुभ दिन तिल खिचड़ी का दान करते हैं अभी कलियुग का अंतिम समय चल रहा है। सारी मानवता दुखी-अशांत हैं। हर कोई परिवर्तन के इंतजार मेँ हैं। सारी व्यवस्थाएं व मनुष्य की मनोदशा जीर्ण-शीर्ण हो चुकी हैं।
ऐसे समय मेँ विश्व सृष्टिकर्ता परमात्मा शिव कलियुग सतयुग के संधिकाल अर्थात संगमयुग पर ब्रह्मा के तन मेँ आ चुके हैं। जिस प्रकार भक्ति मार्ग मेँ पुरुषोत्तम मास में दान-पुण्य आदि का महत्व होता है।उसी प्रकार पुरुषोत्तम संगमयुग जिसमें ज्ञान स्नान करके बुराइयों का दान करने से पुण्य का खाता जमा करने वाली हर आत्मा उत्तम पुरुष बन सकती है।
इस दिन खिचड़ी और तिल का दान करते हैं। इसका भाव यह है कि मनुष्य के संस्कारों मेँ आसुरियता की मिलावट हो चुकी है अर्थात उसके संस्कार खिचड़ी हो चुके हैं, जिन्हें परिवर्तन करके अब दिव्य संस्कार धारण करने हैं।इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक मनुष्य को ईर्ष्या-द्वेष आदि संस्कारों को छोडकर संस्कारों का मिलन इस प्रकार करना है, जिस प्रकार खिचड़ी मिलकर एक हो जाती है।
परमात्मा की अभी आज्ञा है कि तिल समान अपनी सूक्ष्म से सूक्ष्म बुराइयों को भी हमें तिलांजलि देना है। जैसे उस गंगा मेँ भाव-कुभाव से ज़ोर जबर्दस्ती से एक दो को नहलाकर खुश होते हैं और शुभ मानते हैं, इसी प्रकार अब हमें ज्ञान गंगा मेँ नहलाकर मुक्ति-जीवनमुक्ति का मार्ग दिखाना है। जैसे जब नयी फसल आती है तो सभी खुशियाँ मनाते हैं।
इसी प्रकार वास्तविक और अविनाशी खुशी प्राप्त होती है, बुराइयों का त्याग करने से। फसल कटाई का समय देशी मास के हिसाब से पौष महीने के अंतिम दिन तथा अंग्रेजी महीने के 12,13, 14 जनवरी को आता है। इस समय एक सूर्य राशि से दूसरी राशि मेँ जाता है।
इसलिए इसे संक्रमण काल कहा जाता है, अर्थात एक दशा से दूसरी दशा मेँ जाने का समय। यह संक्रमण काल उस महान संक्रमण काल का यादगार है जो कलियुग के अंत सतयुग के आरंभ मेँ घटता है। इस संक्रमण काल मेँ ज्ञान सूर्य परमात्मा भी राशि बदलते हैं। वे परमधाम छोड़ कर साकार वतन मेँ अवतरित होते हैं।
जोगिंद्र सिंह, निसिंग
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