माघ पूर्णिमा हिंदू धर्म में एक अत्यंत पावन और शुभ दिन माना जाता है। इसे माघ मास की पूर्णिमा तिथि पर मनाया जाता है और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन संगम, गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में स्नान करने से समस्त पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस अवसर पर देशभर के विभिन्न तीर्थ स्थलों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है, लेकिन प्रयागराज का त्रिवेणी संगम इस दिन विशेष रूप से आस्था का केंद्र बन जाता है।
महाकुंभ में माघ पूर्णिमा स्नान का विशेष महत्व
इस वर्ष माघ पूर्णिमा महाकुंभ के दौरान आ रही है, जिससे इसका महत्व और बढ़ जाता है। प्रयागराज में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पावन संगम में डुबकी लगाने के लिए देश-विदेश से करोड़ों श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, अब तक 48.83 करोड़ से अधिक श्रद्धालु इस पावन अवसर पर स्नान कर चुके हैं। सुबह तड़के से ही श्रद्धालु संगम तट पर एकत्रित होना शुरू हो गए। जैसे-जैसे सूर्य उदय हुआ, वैसे-वैसे स्नान करने वालों की संख्या बढ़ती चली गई। सबसे पहले नागा साधुओं ने स्नान किया, जिसके बाद विभिन्न अखाड़ों और फिर आम श्रद्धालुओं को स्नान की अनुमति दी गई।
प्रयागराज: आस्था का महासंगम
माघ पूर्णिमा के अवसर पर संगम तट पर भक्तों का सैलाब उमड़ा हुआ है। स्नान करने के लिए श्रद्धालु रात से ही लंबी कतारों में लगे हुए हैं। प्रशासन द्वारा सुरक्षा और सुविधाओं के विशेष इंतजाम किए गए हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं वॉर रूम से व्यवस्था की निगरानी कर रहे हैं। संगम जाने वाले मार्गों पर सुरक्षा कड़ी कर दी गई है और पूरे क्षेत्र को नो व्हीकल जोन घोषित किया गया है। कल्पवासियों के वाहन को भी प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई है।
अन्य तीर्थ स्थलों पर भी उमड़ा जनसैलाब
माघ पूर्णिमा के अवसर पर केवल प्रयागराज ही नहीं, बल्कि अयोध्या, वाराणसी, हरिद्वार और अन्य पवित्र स्थलों पर भी श्रद्धालु पवित्र स्नान कर रहे हैं। अयोध्या में सरयू नदी के तट पर श्रद्धालुओं ने डुबकी लगाई, वहीं वाराणसी में गंगा घाटों पर भक्तों की भारी भीड़ देखी गई। महाकुंभ में प्रशासनिक व्यवस्थाएँ महाकुंभ में माघ पूर्णिमा के दिन व्यवस्थाओं को लेकर प्रशासन सतर्क है। हेलीकॉप्टर से संगम तट पर फूलों की वर्षा की जा रही है, जिससे भक्तों का उत्साह चरम पर है। सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए पुलिस और प्रशासनिक अमला लगातार चौकसी बनाए हुए है। पुलिस बलों की तैनाती और ड्रोन कैमरों से पूरे मेले पर नजर रखी जा रही है। इसके अलावा, मेडिकल कैंप, जल आपूर्ति, परिवहन व्यवस्था और स्वच्छता का भी पूरा ध्यान रखा गया है। प्रशासन ने श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए भोजन वितरण केंद्र भी स्थापित किए हैं, जहां प्रसाद और भोजन वितरित किया जा रहा है। महाकुंभ में स्नान करने आए श्रद्धालुओं ने व्यवस्थाओं की सराहना की। दिल्ली से आए एक श्रद्धालु ने बताया, “मैंने सुबह तीन बजे स्नान किया। यहां की व्यवस्थाएं बेहद अच्छी हैं। मौनी अमावस्या के मुकाबले भीड़ थोड़ी कम है, लेकिन भव्यता वही है।” एक अन्य श्रद्धालु मोनिका ने प्रशासन के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा, “सरकार ने बहुत अच्छी व्यवस्था की है। हमें बहुत अच्छा अनुभव हो रहा है। हमने दर्शन और स्नान दोनों कर लिया है।” माघ पूर्णिमा पर दान-पुण्य का महत्व धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, माघ पूर्णिमा पर स्नान और तर्पण के बाद पितरों की प्रसन्नता के लिए अन्न और वस्त्र का दान करना शुभ माना जाता है। विशेष रूप से सफेद वस्त्रों का दान करने से पितरों की कृपा प्राप्त होती है और पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। इस दिन गंगाजल में दूध मिलाकर पीपल के पेड़ पर अर्पित करना चाहिए, क्योंकि पीपल को त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) का वास स्थान माना गया है।
पूजा विधि और महत्त्वपूर्ण उपाय सुबह स्नान करने के बाद सूर्यदेव को अर्घ्य दें। शिवलिंग पर दूध और गंगाजल चढ़ाकर पूजा करें। पीपल के पेड़ के नीचे घी का दीपक जलाएं। निर्धनों को भोजन और वस्त्र दान करें। भगवान विष्णु की पूजा कर तुलसी दल अर्पित करें। माघ पूर्णिमा: पौराणिक कथाएँ माघ पूर्णिमा को लेकर कई पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन देवताओं ने पृथ्वी पर आकर गंगा स्नान किया था। एक अन्य कथा के अनुसार, महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपने जीवन का अंतिम समय इसी दिन चुना था। इस दिन दान और स्नान से आत्मा को शुद्धि और पापों से मुक्ति मिलती है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से माघ स्नान माघ मास में ठंड के बावजूद गंगा स्नान का विशेष महत्व है। वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो ठंडे पानी में स्नान करने से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और रक्त संचार बेहतर होता है। इसके साथ ही गंगाजल में मौजूद औषधीय गुण स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते हैं। माघ पूर्णिमा के साथ ही कल्पवास समाप्त हो जाता है। कल्पवासी इस एक माह के दौरान संयमित जीवन जीते हैं और गंगा तट पर रहकर धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। वे साधना, ध्यान और सत्संग के माध्यम से आध्यात्मिक शुद्धि प्राप्त करते हैं। माघ पूर्णिमा न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर को भी दर्शाती है। महाकुंभ में इस दिन का विशेष महत्व होता है, क्योंकि यह मानव जीवन को शुद्ध करने और ईश्वर के प्रति आस्था को प्रबल करने का अवसर प्रदान करता है। करोड़ों श्रद्धालु जब एक साथ संगम में डुबकी लगाते हैं, तो यह दृश्य न केवल भव्य होता है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की अखंडता और आध्यात्मिक शक्ति का प्रमाण भी देता है। इस प्रकार, माघ पूर्णिमा का यह महापर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और आस्था का महासंगम है, जिसमें प्रत्येक भक्त अपने पापों से मुक्ति पाकर मोक्ष की ओर अग्रसर होता है।