ओपन माईक के दौर में साहित्य गढ़तीं युवा कवयित्री तनु शर्मा

Aanchalik Khabre
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tanu sharma

जहाँ आजकल ज्यादातर युवा टिक टोक और ओपन माइक में व्यस्त हैं वही तनु शर्मा ने खुद को इस भीड़ से अलग कर साहित्य सृजन (कविता) में खुद की एक अलग पहचान बनाई है. पेश है तनु शर्मा से बातचीत के कुछ अंश-

(1)अपने बारे में कुछ बताये, मसलन आपकी शिक्षा, परिवार, हॉबी..

अपने बारे ने बताने का शौक़ तो तब से है जब से क्लास के पहले दिन टीचर इंट्रोडक्शन लेना शुरू करते थे। बस बैठे बैठे इंतज़ार में रहते थे की जल्द हमारा रोल नंबर आये पीरियड ओवर होने से पहले, तब से भी है जब दोस्तों की स्लैम बुक भरने का रिवाज़ हुआ करता था और आज तक है , वही शौक़ कविताओं में भी झलक ही जाता है। छोटे से शहर चन्दौसी से हैं , ब्राह्मण परिवार, घर में 5 लोगों की संख्या पिताजी भी हमारी तरह अध्यापक हैं , ईश्वर में अटूट विश्वास की डोर से बंधे हम सब में से तीन लोग कामकाजी है अपने अपने दफ्तरों में, एक अभी शिक्षा में लीन हैं और एक घर को घर बनाने की चाकरी मे व्यस्त मतलब की माँ। बचपन में हमें वाद विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लेने का बड़ा शौक़ था कक्षा आठ से ग्रेजुएशन तक हर साल प्राइज जीता है।पिताजी का इसने सबसे बड़ा योगदान रहा वही मैटर लिख के दिया करते थे, कैसे पड़ना है ,बोलना है सब बैठ के सिखाते थे ।ये स्टेज पर बोल पाने जा गुण उन्होंने ही दिया है।

(2)कविता लिखने का ख्याल कैसे आया ?
जैसा की पहले भी मैंने बताया बचपन से कविता पढ़ने व सुनने का शौक था , शायरी याद करना बेहद पसंद था।ज़हन कभी ख्यालों से खाली नही रहा हर वक़्त हर चीज़ को महसूस इतना ज़्यादा कर लेते थे की लगता था की किसी को तो बताए की ये लम्हा सिर्फ गुज़र नहीं रहा बल्कि साँसें ले रहा है , मुस्कुरा रहा है, आंखें भी भरी हैं इसकी, सुनो इसे जियो इसे जो ये नही कह रहा वो समझो , पर समझ नहीं आया कैसे ? क्योंकि सबके पास कहने को बहुत कुछ है पर किसी को सुनने के लिए सब्र के दो कान देने का समय ज़रा भी नहीं ,तो फिर उठायी कागज़ कलम और उतार दीं अपनी सारी कशमकश ,सारे ख़याल ,सारे लम्हें कविताओं के रूप मे। मेरे हिसाब से ज़िन्दगी का हर लम्हा तब तक खूबसूरत नहीं बन सकता जब तक उसे खूबसूरती से महसूस न किया जाए और जो चीज़ इतनी खूबसूरत हो उसे कैसे बीतने दिया जाए तो उसे संजो के रखने के तरीक़े में हमारे पास हैं तो ये कविताएं जिनमे मेरी कलम हर वो लम्हा , हर वो एहसास ,हर वो ख़याल जो अदभुत है क़ैद कर देना चाहती है।

(3)आज के आधुनिक युग में ओपन माइक का रिवाज चल रहा है जिसमे ज्यादातर कॉमेडी
और मॉडर्न शैली की कविताओं का पाठ किया जाता है, इस स्थिति में साहित्यिक
कविता पाठ का विचार कैसे आया ?

आज के ओपन माइक में क्या दौर चल रहा है? लोग क्या सुनना चाहते हैं? हमने इस बात पर शायद कभी गौर किया नही बस खुद का ज़हन उतार दिया कागज़ पर अपनी सोच के टेढ़े मेढ़े आखरों के रूप में। हिंदी साहित्य से पता नही क्यों एक अलग ही लगाव है। स्कूल में जब कबीर के दोहे या उनकी कविता शैली पढ़ते थे तो उन शब्दों का अर्थ न समझते हुए भी मर्म जान लिया करते थे जो हमारे हृदय को झकझोर सा देते।अलंकारों का सौंदर्य जादू सा कर जाते थे कल्पनाओं के पटल पे। आज अपनी हिंदी साहित्य के प्रति रुचि देख के लगता है शायद इसमें सबसे बड़ा योगदान स्कूल में ली गयी हमारी हिंदी की क्लास का है जो उस वक़्त तो बस एक पीरियड के रूप में हर रोज़ आती और चली जाती पर शायद वो अंदर ही अंदर कुछ गढ़ रही थी हममे और छोड़ रही थी अपने अमिट से पदचिह्न।अपनी हिंदी भाषा का तो रूप वैसे भी इतना विशाल इतना सूंदर और आकर्षक है की शब्दो का उच्चारण उनकी लय ,उनकी ताल सीधे हृदय के तारों को झालंकृत कर देती है। इसलिए मेरा मानना भी है की स्कूल में दी हुई शिक्षा शायद हम कभी नही भूलते इसलिए एक शिक्षक बेहद ही मुख्य भूमिका निभाता है शिष्य की मानसिक बनावट में।

(4)अब किसी भी कलमकार के लिए सबसे मुश्किल सवाल, आप क्यों लिखती है ?

ये सच में बेहद मुश्किल प्रश्न है की हम क्यों लिखते हैं। अगर कम से कम शब्दों में कहे तो “सुकून पाने के लिए”। जब ज़हन शब्दों में उतर आता है तो जो संतोष रूह को मिलता है वो खास है और हमारे लिए हमारा सच भी।

(5) आपके द्वारा लिखी हुई पहली कविता कौन सी है ?

मेरी लिखी पहली कविता का नाम था “स्वयंवर” जो की उस उम्र में लिखी थी जब ये भी खबर नही थी की कविता लिखने का वास्तविक अर्थ होता क्या है , अलंकार क्या होते हैं और क्या होता है भावों को माला में पिरोना ,की जो पढ़े बस एक सांस में सिमरता चला जाए। कविता सुनने और पढ़ने का शौक बचपन से था शायद उसी शौक में वो कविता लिखी थी। उस वक़्त ये अंदाज़ा नहीं था की ये कविता का दौर आगे अभी और बाकी होगा। पर ये कविता जोकि बचपने में लिखी गयी थी थोड़ी बचकानी थी तो उसे कभी कही पड़ा नहीं है। पहली कविता जो एक ओपन माइक में पढ़ी वो थी “अभी शेष है” जो की एक नारी के यौवन और उसकी दृढता के संदर्भ में लिखी और इसी कविता से मैंने लिखना शुरू कर दिया।

(6)खुद की लिखी हुई कोई मनपसंद कविता ?

 खुद की लिखी हुई कविता ” हर सांवली सी शाम को तुम श्याम बन जाना पिया” हमारी सबसे पसंद कविताओं में से एक है क्योंकि ये केशव के नाम जो है।

(7)कविता में क्या कुछ नया करने का विचार है?

कविता में क्या नया करना है ये तो खबर नहीं , शायद ये भी नही पता अभी की क्या वो ज़हर है जो हर वक्त हमें कुछ ऐसा लिखने को कहता है जो किसी संघर्ष में है, किसी सफर में है ।बस शायद कुछ ऐसा लिखना है जो नवीन हो मतलब अगर चाँद को लेख में शामिल करें तो ऐसे जैसे पहले किसी ने चाँद को उस तरह न देखा हो, उस तरह न सोचा हो ,कुछ ऐसा जैसा पहले किसी ने महसूस न करवाया हो क्योंकि अगर वही लिखा जो लिखा जा चुका है बस शब्दों की हेर फेर से तो लिखने का क्या अर्थ पर ये बेहद ही कठिन भी लगता है क्योंकि जब बड़े बड़े कवियों को लेखकों को पड़ते हैं उन्हें सुनते हैं तो लगता है जैसे सब कुछ तो लिखा जा चुका है वो भी इतनी वरिकियों से की शायद हमें तो उन्हें सोच पाना कभी नमुमकिन सा है। बिल्कुल वही नामुमकिन लिखने का ख़याल है हमारा। देखते हैं की आगे ये ख़याल कहाँ ले जाता है हमें।

(8)किसी दूसरे की लिखी हुई कोई कविता जो आपको बहुत पसंद हो?

हरिवंश राय बच्चन जी की कविता “रात आधी खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था प्यार तुमने” हमारी सबसे पसंददीदा कविता में से एक है। इसे हम बार बार सुन सकते है । शब्दों का चयन उस व्यथा को व्यक्त करने के लिए एक दम मोह लेता है।

(9)आपका फेवरेट कवी या कवियित्री कौन है?

ये सबसे ही मुश्किल सवाल है की कौन सबसे ज़्यादा पसंद है क्योंकि अभी ज्यादा किसी को पढ़ नहीं पाएं हैं और दूसरी बात जितनों को पढ़ा है सब बेहद ही कमाल। अंजुम रहबर जी , पाश, अमृता प्रीतम, गुलज़ार, पीयूष मिश्रा, कुमार विश्वास, राहत इंदौरी जी, जॉन एलिया आदि कुछ नाम है जिन्हें अभी तक थोड़ा बहुत पढ़ा है।

(10)आज के समय में कविता की स्थिति के बारे में आप क्या कहना चाहेंगी ?

अभी इस सवाल पे टिप्पड़ी करने के योग्य खुद को नही समझ सकते क्योंकि ख़ुद भी लिखना बस अभी हाल पिलहाल में ही शुरू किया है जो की इतना सधा हुआ भी नही है। तो ये कहना हमारे लिए ज़रा मुश्किल है की कविताओं की स्थिति कैसी है। बस हर वो कविता जो हृदय के भीतर प्रवेश करते वक़्त संकोच न करे वो सच है।

(11)क्या आपको कविता के लिए कोई रिवॉर्ड या अवार्ड मिला ?

कविता में हमें अभी तक दो बार प्रथम पुरस्कार मिला है। पहली बार GLA यूनिवर्सिटी में आयोजित काफ़िला कवियों का प्रतियोगिता में और दूसरा लखनऊ में आयोजित एक ओपन माइक जो की प्रतियोगिता के रूप में था “कही अनकही” cafe by default द्वारा में जिसमे नीलेश मिश्रा जी ने परखने का कार्य भार संभाला।

आंचलिक ख़बरें को अपना अनमोल समय देने के लिए आपका धन्यवाद्… कामना करते हैं की आप यूँही साहित्य सृजन में लगी रहें…

[साक्षात्कार]
संतोष “प्यासा”

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