Rampur UP : रामपुर में जमीनी फर्जीवाड़ा: मृतक को जिंदा दिखाकर चार एकड़ जमीन पर कब्जे का प्रयास

News Desk
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उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां मृतक को जिंदा दर्शाकर उसकी चार एकड़ जमीन को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर हड़पने का प्रयास किया गया। यह मामला पिछले चार दशकों से चला आ रहा था, लेकिन अब जाकर पीड़ित हरजीत सिंह को न्याय मिला है। पुलिस ने इस फर्जीवाड़े में शामिल एक आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है, जिससे यह मामला एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है।

यह पूरा मामला कोतवाली बिलासपुर क्षेत्र के अलवा नगला गांव का है, जहां पीड़ित हरजीत सिंह पुत्र जमीत सिंह ने 2016 में अपने तहेरे भाई बलवीर सिंह और उसके पुत्र हरजिंदर सिंह के खिलाफ धोखाधड़ी और दस्तावेजों की हेराफेरी के आरोप में मुकदमा दर्ज कराया था।

पुलिस जांच में सामने आया कि हरजीत सिंह के सगे भाई परमजीत सिंह की मृत्यु वर्ष 1976 में हो गई थी। लेकिन, उनके नाम की चार एकड़ जमीन पर कब्जा करने के लिए बलवीर सिंह ने उन्हें जिंदा दिखाते हुए 1986 में फर्जी दस्तावेज तैयार किए। इन दस्तावेजों के आधार पर उन्होंने अपने बेटे हरजिंदर सिंह के नाम विरासत दर्ज करवा ली। इस फर्जीवाड़े का खुलासा तब हुआ जब पीड़ित हरजीत सिंह को अपनी जमीन के कागजातों में गड़बड़ी का पता चला और उन्होंने न्याय के लिए अदालतों के चक्कर काटने शुरू कर दिए।

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40 साल तक न्याय की लड़ाई

हरजीत सिंह के लिए यह एक लंबी और कठिन लड़ाई थी। चार दशक से वह अपनी पुश्तैनी जमीन वापस पाने के लिए संघर्ष कर रहे थे, लेकिन विभिन्न कानूनी पेचीदगियों और प्रशासनिक लापरवाहियों के कारण उन्हें बार-बार निराशा ही हाथ लगी।

2016 में उन्होंने इस मामले को लेकर बिलासपुर कोतवाली में एफआईआर दर्ज करवाई। मुकदमा भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 420 (धोखाधड़ी), 467 (जालसाजी), 468 (धोखाधड़ी के लिए फर्जी दस्तावेज बनाना), और 471 (फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल) के तहत दर्ज किया गया था। इस मामले में पुलिस ने जांच शुरू की और जब फर्जीवाड़े के स्पष्ट प्रमाण मिले, तब जाकर आरोपी के खिलाफ सख्त कार्रवाई का रास्ता साफ हुआ।

पुलिस जांच में हुआ बड़ा खुलासा

बिलासपुर कोतवाली पुलिस की जांच में यह सामने आया कि बलवीर सिंह ने अपने बेटे हरजिंदर सिंह के नाम विरासत दर्ज करवाने के लिए मृतक परमजीत सिंह को जिंदा दिखाते हुए फर्जी दस्तावेज तैयार किए थे। यह फर्जीवाड़ा 1986 में किया गया, लेकिन कई वर्षों तक इस पर किसी की नज़र नहीं गई।

हरजीत सिंह को जब इस धोखाधड़ी का पता चला, तो उन्होंने इसे अदालत में चुनौती दी, लेकिन न्याय की प्रक्रिया इतनी लंबी चली कि उन्हें 40 साल तक इंतजार करना पड़ा।

अब जाकर पुलिस ने इस मामले में सख्त कदम उठाया और आरोपी हरजिंदर सिंह को गिरफ्तार कर लिया। बिलासपुर कोतवाली पुलिस ने आरोपी को हिरासत में लेकर जेल भेज दिया है।

इस पूरे मामले पर रामपुर के एडिशनल एसपी अतुल कुमार श्रीवास्तव ने कहा,
“यह एक गंभीर मामला है, जिसमें मृतक को जिंदा दिखाकर फर्जी दस्तावेजों के माध्यम से जमीन का कब्जा लिया गया था। हमने मामले की गहन जांच की और अब आरोपी को गिरफ्तार कर कानूनी कार्रवाई की जा रही है। न्याय की प्रक्रिया तेजी से पूरी की जाएगी।”

यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि कैसे दस्तावेजों की जालसाजी करके लोगों की जमीनों पर कब्जा किया जाता है। ऐसे कई मामले देशभर में देखने को मिलते हैं, जहां धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार के कारण असली हकदारों को उनकी संपत्ति से वंचित कर दिया जाता है।

ज़मीन से जुड़े विवाद अक्सर लंबी कानूनी प्रक्रियाओं में उलझ जाते हैं, जिससे वास्तविक मालिकों को न्याय पाने में दशकों लग जाते हैं।
प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार
इस तरह के मामलों में प्रशासन की भूमिका भी सवालों के घेरे में आती है। अगर जांच समय पर होती, तो हरजीत सिंह को चार दशक तक इंतजार न करना पड़ता।
अब जब आरोपी हरजिंदर सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया है, तो मामले में आगे की कार्रवाई की जाएगी। पीड़ित हरजीत सिंह को उनकी जमीन वापस मिलेगी या नहीं, यह अदालत के फैसले पर निर्भर करेगा।

वहीं, पुलिस इस बात की भी जांच कर रही है कि क्या इस फर्जीवाड़े में अन्य लोग भी शामिल थे। बलवीर सिंह, जिसने इस धोखाधड़ी की साजिश रची थी, उसकी भूमिका की भी दोबारा जांच की जा सकती है।

रामपुर का यह मामला दिखाता है कि न्याय में देर हो सकती है, लेकिन अंधेर नहीं। 40 साल बाद ही सही, लेकिन हरजीत सिंह को इंसाफ मिलने की राह खुल गई है। यह घटना एक महत्वपूर्ण मिसाल है कि अगर पीड़ित हार न माने और कानूनी लड़ाई जारी रखे, तो देर-सवेर न्याय जरूर मिलता है।

इस मामले में आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है, लेकिन यह भी जरूरी है कि प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार हो, जिससे भविष्य में इस तरह के जमीनी फर्जीवाड़े न हों और लोगों को उनके अधिकार समय पर मिल सकें।

 

 

 

 

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