बुंदेलखंड राज्य निर्माण की मांग कोई नई नहीं है, बल्कि यह संघर्ष दशकों से चल रहा है। बुंदेलखंड क्षेत्र, जो उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच बंटा हुआ है, अपनी अलग पहचान और विकास की आवश्यकताओं को लेकर लंबे समय से संघर्षरत है। लेकिन इस संघर्ष के बावजूद, राजनीतिक नेतृत्व की बेरुखी और सांसदों की निष्क्रियता ने जनता को निराश किया है। बुंदेलखंड निर्माण मोर्चा लगातार प्रयासरत है कि इस क्षेत्र को एक स्वतंत्र राज्य का दर्जा मिले, लेकिन अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
बुंदेलखंड राज्य की मांग और सरकार की उदासीनता
बुंदेलखंड राज्य की मांग सिर्फ एक राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि क्षेत्र के विकास, पहचान और आत्मनिर्भरता से जुड़ा प्रश्न है। इस क्षेत्र के लोग वर्षों से गरीबी, बेरोजगारी, सूखा और पिछड़ेपन का दंश झेल रहे हैं। सरकारें आईं और गईं, लेकिन किसी ने इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकाला।
प्रधानमंत्री द्वारा तीन साल पहले इस मुद्दे पर विचार करने का वादा किया गया था, लेकिन वह वादा अभी तक पूरा नहीं हुआ। बुंदेलखंड निर्माण मोर्चा लगातार सरकार से अपील कर रहा है कि इस वादे को पूरा किया जाए और क्षेत्र को अलग राज्य का दर्जा दिया जाए।
सांसदों की निष्क्रियता और जनाक्रोश
बुंदेलखंड क्षेत्र से नौ सांसद संसद में जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं। झांसी, सागर, दमोह, खजुराहो, टीकमगढ़, जालौन, बांदा, हमीरपुर और दतिया के सांसदों से लगातार मांग की गई कि वे प्रधानमंत्री से मुलाकात कर बुंदेलखंड राज्य की मांग को दोहराएं। लेकिन अफसोस की बात है कि किसी भी सांसद ने न तो प्रधानमंत्री से मुलाकात की और न ही पत्र के माध्यम से राज्य निर्माण की मांग को आगे बढ़ाया।
बुंदेलखंड निर्माण मोर्चा ने कई बार इन सांसदों को चेतावनी दी कि यदि वे जनता की आवाज़ नहीं उठाएंगे, तो उन्हें विरोध का सामना करना पड़ेगा। लेकिन सांसदों की चुप्पी से साफ जाहिर होता है कि वे इस मुद्दे को लेकर गंभीर नहीं हैं और जनता की भावनाओं की अनदेखी कर रहे हैं।
बुंदेलखंड निर्माण मोर्चा का आक्रोश और प्रदर्शन
बुंदेलखंड निर्माण मोर्चा ने स्पष्ट रूप से कहा है कि जो नेता जनता की आवाज़ नहीं सुनते, उनका विरोध किया जाएगा। इसी क्रम में मोर्चा ने नौ सांसदों को बुंदेलखंड विरोधी करार देते हुए उनके पुतले जलाने का फैसला किया।
मोर्चा के अध्यक्ष भानू सहाय ने “कसम राम की खाते हैं, बुंदेलखंड राज्य बनवाएंगे” और “जो बुंदेलखंड का नहीं, वो किसी काम का नहीं” जैसे नारों के साथ पूरे बुंदेलखंड क्षेत्र में विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया। झांसी, सागर, दमोह, खजुराहो, टीकमगढ़, जालौन, बांदा, हमीरपुर और दतिया के सांसदों के पुतले कचहरी चौराहे के पास जलाए गए।
इस विरोध प्रदर्शन में हजारों की संख्या में बुंदेलखंड के लोग शामिल हुए। प्रदर्शनकारियों ने सरकार और सांसदों के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। लोगों का गुस्सा इस बात से था कि जब क्षेत्र की जनता अपने अधिकारों की मांग कर रही है, तब सांसद चुप क्यों बैठे हैं?
मोर्चा ने यह भी ऐलान किया कि जब तक प्रधानमंत्री से मुलाकात कर बुंदेलखंड राज्य निर्माण की मांग नहीं की जाती, तब तक हर लोकसभा सत्र के दौरान इन सांसदों का विरोध जारी रहेगा।
बुंदेलखंड राज्य निर्माण की आवश्यकता
बुंदेलखंड क्षेत्र की समस्याओं को देखते हुए इसका एक अलग राज्य बनना जरूरी हो गया है। यह क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है, लेकिन विकास की राह में पिछड़ा हुआ है। राज्य निर्माण के पीछे मुख्य कारण इस प्रकार हैं:
अर्थव्यवस्था और विकास: एक अलग राज्य बनने से बुंदेलखंड को विशेष आर्थिक योजनाओं का लाभ मिलेगा, जिससे क्षेत्र की तरक्की संभव होगी।
प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग: बुंदेलखंड में खनिज संपदा, जल संसाधन और कृषि योग्य भूमि प्रचुर मात्रा में है, लेकिन वर्तमान सरकारें इसका सही उपयोग नहीं कर पा रही हैं।
शिक्षा और रोजगार: नए राज्य के निर्माण से शिक्षा और रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे, जिससे युवाओं का पलायन रुकेगा।
प्रशासनिक सुगमता: एक अलग राज्य बनने से प्रशासनिक कार्यों में तेजी आएगी, जिससे जनता की समस्याओं का समाधान जल्द होगा।
सरकार और सांसदों के लिए संदेश
बुंदेलखंड की जनता ने अब ठान लिया है कि वह अपनी मांग से पीछे नहीं हटेगी। यह आंदोलन सिर्फ एक प्रदर्शन नहीं, बल्कि एक क्रांति है, जो तब तक जारी रहेगी जब तक बुंदेलखंड राज्य नहीं बन जाता। सांसदों को यह समझना होगा कि वे जनता के प्रतिनिधि हैं और उन्हें जनता की मांग को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए।
यदि बुंदेलखंड राज्य की मांग को अनसुना किया जाता रहा, तो यह आंदोलन और भी उग्र हो सकता है। बुंदेलखंड निर्माण मोर्चा ने यह साफ कर दिया है कि सांसदों का यह रवैया अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
बुंदेलखंड राज्य निर्माण का संघर्ष अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है। जनता अब और इंतजार करने के मूड में नहीं है। सरकार और सांसदों को जल्द से जल्द इस मुद्दे पर कदम उठाने होंगे, अन्यथा जनाक्रोश और बढ़ सकता है। बुंदेलखंड निर्माण मोर्चा का यह आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक बुंदेलखंड को अलग राज्य का दर्जा नहीं मिल जाता।