US Immigration : अमेरिकन ड्रीम या बर्बादी? | 104 भारतीयों की दर्दनाक वापसी

News Desk
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यह कहानी उस सपने की है, जो ‘अमेरिकन ड्रीम’ कहलाता है—एक बेहतर जिंदगी की तलाश में निकले लोगों की उम्मीदों और संघर्षों की दास्तान। लेकिन यह सपना एक क्रूर हकीकत में तब्दील हो चुका है। बुधवार को अमृतसर एयरपोर्ट पर लैंड हुए अमेरिकी मालवाहक विमान C-17 में सवार लोग इसी टूटे हुए सपने के किरदार थे—104 भारतीय, जो कभी अमेरिका की चकाचौंध भरी दुनिया में अपनी किस्मत आजमाने गए थे, लेकिन उन्हें पहचान से रहित, अवैध और गैरकानूनी घोषित कर दिया गया। हथकड़ियों और बेड़ियों में जकड़े इन लोगों की आंखों में गुस्सा, जिल्लत और बेबसी थी। यह कहानी जसपाल, हरविंदर, निकिता, केतुल पटेल जैसे अनगिनत लोगों की है, जिन्होंने सिर्फ एक सपना देखा था—बेहतर जीवन का। लेकिन यह सपना अमेरिका की बदली हुई नीतियों, ट्रंप प्रशासन के राष्ट्रवादी एजेंडे और ‘अमेरिका फर्स्ट’ की सोच की बलि चढ़ गया।

गुरुदासपुर के हरदोवाल गांव के जसपाल का अमेरिका जाने का सफर जुलाई 2024 में शुरू हुआ था। दिल्ली से अमेरिका पहुंचने में जहां सीधी उड़ान से 25-30 घंटे लगते हैं, वहीं जसपाल को इस सफर में पूरे छह महीने लगे—करीब 4400 घंटे। लेकिन मंज़िल वह नहीं थी, जिसकी उसने कल्पना की थी। अमृतसर एयरपोर्ट पर अमेरिकी सैन्य विमान से उतरते हुए जसपाल की आंखों में हताशा साफ झलक रही थी। वह बताते हैं कि प्लेन में उनके हाथों में हथकड़ियां थी, पैरों में बेड़ियां थीं। और सबसे बड़ा झटका तब लगा, जब अचानक एक अधिकारी ने सूचित किया—”तुम्हें भारत वापस भेजा जा रहा है।”

जसपाल अपने इस बुरे अनुभव के लिए ट्रेवल एजेंट को दोषी मानते हैं। उनका कहना है कि उन्होंने एजेंट से कहा था कि वह उन्हें वैध वीजा के साथ अमेरिका भेजे, लेकिन एजेंट ने उन्हें धोखा दिया। इस पूरे सौदे के लिए 30 लाख रुपये की रकम तय हुई थी। जसपाल के अनुसार, वे पहले विमान से ब्राजील पहुंचे थे, जहां से वादा था कि आगे की यात्रा भी फ्लाइट से होगी। लेकिन एजेंट ने उन्हें धोखा दिया और उन्हें अवैध तरीके से अमेरिका की सीमा पार करने को मजबूर किया।

छह महीने की खौफनाक जद्दोजहद

ब्राजील में जसपाल ने छह महीने ‘बेवतनों’ की तरह बिताए। न उनके पास कानूनी दस्तावेज थे, न वे किसी से शिकायत कर सकते थे—क्योंकि ऐसा करने से उनकी पहचान उजागर हो सकती थी। उन्हें खुद को छुपाकर रखना पड़ा, अपने ही सपने से भागना पड़ा।

फिर एक दिन, जसपाल और उनके साथियों ने ब्राजील से अमेरिका की सीमा पार करने की कोशिश की। लेकिन जनवरी 2025 में अमेरिकी बॉर्डर पेट्रोल ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उन्हें 11 दिनों तक हिरासत में रखा गया, जहां पूछताछ और जांच हुई। फिर बिना किसी औपचारिक सुनवाई के, उन्हें जबरन विमान में बैठाकर भारत भेज दिया गया।

“हमारी बेड़ियां अमृतसर एयरपोर्ट पर ही खोली गईं,” जसपाल बताते हैं। उनकी आवाज़ में दर्द है, गुस्सा है, और सबसे ज्यादा एक टूटी हुई उम्मीद की झलक है। उन्होंने इस सफर के लिए अपनी जमीन बेच दी थी, कर्ज लिया था, लेकिन अब वह खाली हाथ, अपमान और घाटे के साथ लौटे हैं।

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अमृतसर एयरपोर्ट पर उतरे 104 अवैध भारतीय प्रवासियों में 33-33 हरियाणा और गुजरात से थे, 30 पंजाब से, तीन-तीन महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश से, और दो चंडीगढ़ से थे। इनमें 19 महिलाएं और 13 नाबालिग भी शामिल थे। सरकार की तरफ से इन लोगों को उनके गृह राज्यों में वापस भेजने की व्यवस्था की गई। गुजरात के 33 लोगों को अमृतसर से अहमदाबाद ले जाया गया, जहां पुलिस उन्हें उनके घर तक छोड़ रही थी।

जसपाल की मां शिंदर कौर और उनके चचेरे भाई जसबीर सिंह की कहानी कुछ अलग है। उनका कहना है कि जसपाल ने दो साल इंग्लैंड में काम किया और 12 दिन पहले ही अमेरिका गया था। उनके अनुसार, वे दुखी हैं कि उनके बेटे का सपना अधूरा रह गया, लेकिन इस बात का संतोष भी है कि वह सकुशल लौट आया। जसपाल का एक बेटा और एक बेटी है, जबकि उनका छोटा भाई शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी में काम करता है। उनके पिता का पहले ही निधन हो चुका है।

केतुल पटेल की कहानी: उजड़े सपने का एक और चेहरा
गुजरात के सूरत का केतुल पटेल एक और नाम है, जिसका अमेरिका का सपना चकनाचूर हो गया। उसने अपने घर का फ्लैट बेच दिया था ताकि अमेरिका जा सके, लेकिन अब वह खाली हाथ वापस लौट आया। उसके परिवार की आर्थिक स्थिति पहले ही कमजोर थी, और अब उनकी उम्मीदें भी धराशायी हो चुकी हैं।

केतुल के पिता हसमुख भाई अहमदाबाद के खोरज में रहते हैं और दर्जी का काम करते हैं। जब एक पत्रकार ने उनसे बात करनी चाही, तो उन्होंने कैमरे के सामने कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया—शायद उनकी चुप्पी ही उनकी मजबूरी की सबसे बड़ी गवाही थी।

अमेरिकी नीति और प्रवासियों की दुर्दशा

डोनाल्ड ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति ने अवैध प्रवासियों के लिए स्थितियां और कठिन कर दी हैं। उनके प्रशासन ने सीमा सुरक्षा को पहले से अधिक सख्त बना दिया, जिससे अमेरिका में अवैध रूप से घुसने वालों के लिए हालात बदतर हो गए। अमेरिकी सरकार अब अवैध प्रवासियों को पकड़कर सीधे उनके मूल देश भेज रही है, बिना ज्यादा कानूनी प्रक्रिया अपनाए।

यह घटनाक्रम सिर्फ जसपाल या केतुल पटेल की कहानी नहीं है, बल्कि उन हजारों भारतीयों की कहानी है जो बेहतर जिंदगी की तलाश में विदेश जाने के सपने देखते हैं। लेकिन कई बार यह सपना उन्हें धोखा, अपमान और बर्बादी की ओर ले जाता है।

इस पूरे प्रकरण से एक सीख मिलती है कि विदेश जाने की चाह में जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहिए। दलालों और ट्रेवल एजेंटों के जाल में फंसने से बचना चाहिए, क्योंकि अक्सर ये लोग लालच देकर प्रवासियों को खतरनाक रास्तों पर धकेल देते हैं। भारत सरकार और स्थानीय प्रशासन को भी ऐसी ठगी रोकने के लिए कठोर कदम उठाने चाहिए ताकि कोई और जसपाल, केतुल या निकिता अपने सपनों की कीमत अपनी जिंदगी से न चुकाए।

अमेरिका से लौटे इन भारतीयों की आंखों में अब भी एक सपना है—लेकिन वह सपना अब अमेरिका का नहीं, बल्कि अपने ही देश में फिर से शुरुआत करने का है। क्या वे एक नया भविष्य बना पाएंगे? या फिर यह घटना उन्हें जिंदगी भर के लिए तोड़ देगी? यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

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