धार्मिक जनमोर्चा द्वारा “कोरोना की चुनौतियां” पर धर्गुरूओं की प्रधानमंत्री से ऑनलाइन वार्ता-आँचलिक ख़बरें-एस. ज़ेड.मलिक

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नई दिल्ली – धर्माचार्यों, धर्मगुरुओं और धार्मिक संगठनों के प्रतिनिधयों के संयुक्त मंच धार्मिक जनमोर्चा के तत्वाधान में मान्नीय प्रधान मंत्री जी के साथ ग्यारह (11) धर्मगुरुओं की एक ऑनलाइन चर्चा का आयोजन किया गया। चर्चा का केंद्रीय विषय था ‘‘कोरोना महामारी की चुनौतियां: धार्मिक संगठन और सरकारों के संयुक्त प्रयास’’।
इस चर्चा में धर्मगुरुओं- शंकराचार्य श्री ओंकारानन्द सरस्वती जी (प्रयागपीठ), पीठाधीश गोस्वामी सुशील जी महाराज, गलतापीठाधीश अवधेशाचार्य जी, गुरुद्वारा बंगला साहब के मुख्य ग्रंथी ज्ञानी रंजीत सिंह जी, फादर डॉक्टर एम.डी. थॉमस, आचार्य विवेक मुनि जी, ब्रह्माकुमारी बहन बी.के. आशा, रामकृष्ण मिशन के स्वामी शान्तआत्मानन्द जी, रविदासीया धर्म संगठन के स्वामी वीरसिंह हितकारी जी, बहाई धर्म के डॉक्टर ए.के. मर्चेंट और जमाअत इस्लामी हिन्द के प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने हिस्सा लिया।
चर्चा लगभग डेढ़ घण्टे तक जारी रही। सभी धर्माचार्यों ने पहले अपने विचार और सुझाव प्रस्तुत किए। मान्नीय प्रधानमंत्री जी ने धर्मगुरुओं के विचारों एवं सुझावों को सुनने के बाद अपने विचार रखते हुए कहा कि धर्मगुरू और धार्मिक संस्थाओं को आपसी सहयोग के साथ कार्य करना चाहिए और अपने अपने राज्य सरकारों से भी निरंतर संपर्क में रहें। उन्होंने धर्मगुरुओं को टीकाकरण के बारे में लोगों में पाये जाने वाले भ्रम को दूर करने के लिए भी कार्य करने का सुझाव दिया। उन्होंने आज़ादी के 75 साला कार्यक्रमों का हिस्सा बनने व उसमें सहयोग करने का आह्वान भी किया। उन्होंने धर्मगुरुओं से ‘‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के लिए मिलजुल कर कार्य करने का भी आह्वान किया।
धर्माचार्यों की ओर से जो विचार व सुझाव आए उनमें से मुख्य हैं:
1. कोरोना की इस महाचुनौती का मुकाबला अकेले सरकार नहीं कर सकती। सभी धर्मगुरुओं, संस्थाओं एवं सामाजिक संगठनों एवं सरकारों को हर स्तर पर मिलजुल कर कार्य करना आवश्यक होगा।
2. इस महाचुनौती का मुकाबला तब ही सफलता से किया जा सकता है जब देश में आपसी प्रेम, सदभाव और विश्वास मज़बूत हो और कोई अपने आपकों असुरक्षित महसूस न करे। इस सम्बंध में धर्मगुरू और सरकार दोनों अपने अपने क्षेत्रों में सघन प्रयास करें। आपसी प्रेम और सद्भाव को कमज़ोर करने और आपस में नफ़रत फैलाने वालों को सामाजिक स्तर पर धर्मगुरू एवं संस्थाएं तथा सरकारी स्तर पर राज्य व केंद्र सरकारें रोकने का गंभीर प्रयास करें।
3. टीकाकरण के कार्यक्रम को और ज़्यादा तेज़ करने की आवश्यकता है। धर्मगुरू टीकाकरण के लिए जागृति के अभियान को समाज में चलायें तथा सरकार टीकों की उपलब्धता को तंज़ रफ्तार के साथ सुनिश्चित करने के लिए प्रयास करे।
4. इस आपदा के दौरान हुए नुकसान से सबक लेते हुए हमें चाहिए कि सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं को हमें कई गुना बढ़ाने की आवश्यकता है, राज्य एवं केंद्र सरकारों के बजट में स्वास्थ सेवाओं के लिए बजट में वृद्धि करने की आवश्यकता है।
5. दूसरी लहर के दौरान दवाओं एवं स्वास्थ्य सुविधाओं की कालाबाज़ारी और प्राइवेट हास्पीटलों द्वारा मजबूरी का फ़ायदा उठाकर बड़ी बड़ी रक़में वसूल करने की घटनाएं बड़ी संख्या में सामने आई थीं, भविष्य में ऐसा न हो इसके लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा सख़्त कदम उठाए जाने चाहिये।
6. दूसरी लहर के दौरान भी मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे, आश्रम, दरगाहें व अन्य धर्मस्थल, मानव सेवा के केंद्र बन गए थे। सरकारी संसाधनों की मदद से सेवा के ये कार्य और बड़े पैमाने पर किए जा सकते हैं, इसके लिए धर्मगुरू व सरकारें मिल कर कार्य करें।
7. दूसरी लहर के दौरान बड़ी संख्या में जनहानि हुई और अव्यवस्थायें सामने आयीं। जनता की ओर से कोविड निर्देशों के पालन में लापरवाही हुई और हम बड़ी भीड़ वाले धार्मिक व राजनीतिक आयोजनों को रोकने में असफल रहे। इन सब पहलुओं का ईमानदारी से समीक्षा कर के भविष्य में सुव्यवस्थित और अनुशासित रूप से कार्य करने के लिए आवश्यक कदम उठाये जाएं।
8. धर्माचार्यों ने आपदा के नैतिक पहलू की ओर भी इशारा करते हुए कहा कि प्राकृतिक आपदाओं के आने का एक कारण तो मानवजाति द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के दुरुपयोग से पैदा होने वाला असंतुलन है, तो दूसरी ओर समाज में व्याप्त अनैतिकता, दुराचरण, अन्याय, अत्याचार, शोषण, हिंसा एवं पक्षपात भी है। इसलिए हमें चाहिए कि हम व्यक्तिगत रूप से, सामुहिक रूप से एवं सरकारी स्तर पर ईमानदारी से अपनी अपनी ग़लतियों का जायज़ा लेकर उनपर पश्चाताप करने, ईश्वर से क्षमा चाहने एवं अपने अन्दर सुधार लाने का गंभीर प्रयास करें। आशा है ईश्वर हमें क्षमा करके हम पर कृपा करेंगे और कोरोना महामारी की आपदा से हमें मुक्ति देंगे।
9. सरकारों व जनता, धार्मिक व सामाजिक संगठनों के साथ निरंतर आवश्यकता अनुसार चर्चा, संवाद एवं सलाह व मशविरा करने से वास्तविक स्थितियां व लोगों की समस्याएं सामने आती हैं। प्रधानमंत्री की यह पहल स्वागत योग्य है। इसे जारी रखना देश के लिए आवश्यक है और उपयोगी भी।

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