Cowsheds वाले हमें आसरा देने से मना आखिर क्यों कर देते हैं ?

Aanchalik khabre
By Aanchalik khabre
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Cowsheds का संचालन

गौवंश को लेकर बहुत बड़ी बड़ी बाते जिले के उन Cowsheds व नंदी शालाओं के संचालकों के मुखारविंद से सुनने को हमें मिलती है । उनकी बातों में इतना मिठास होने के साथ ही स्वार्थ का तड़का भी लगा हुआ होता है । उन Cowsheds को जिले के भामाशाहों द्वारा उदारमना से आर्थिक सहयोग देते रहते हैं लेकिन उन्होंने कभी भी खुद को महिमा मंडित नहीं किया क्योंकि उनके दिलों में हमारे लिए अपार श्रद्धा व विश्वास है

Cowsheds

और उनकी हमेशा यह धारणा रही है कि हमारे जैसे असहाय व लाचार गौवंश लठ्ठ खाता न घूमें व इसके साथ ही बूचड़खानों में न जाने पाए । हमें बड़ा ताज्जुब होता है कि हमें असहाय और लावारिस छोड़ दिया जाता है लेकिन उससे बड़ा ताज्जुब तब होता है जब भामाशाहों व सरकारी अनुदान से चलने वाले वृध्दाश्रम जिनको आम भाषा मे गौशाला कहा जाता है उनके संचालक यह कहकर लेने से मना कर देते हैं कि यह बूढ़ी होने के साथ ही दुधारू भी नहीं है।

मानव जाति में भी असहाय व लाचार स्त्री पुरूष को जब वृध्दाश्रम में छोड़ने के लिए कोई जाता है तो क्या उसके संचालक भी यही प्रश्न करते हैं कि हमें कमाऊ पुरूष या स्त्री चाहिए ? यदि ऐसा नहीं तो फिर इन Cowsheds के संचालन करने वाले हमें आसरा देने से मना आखिर क्यों कर देते हैं ? यह ज्वलंत प्रश्न उन उदारमना दानदाताओं व भामाशाहों और सरकार से है कि जब आर्थिक सहयोग आप महानुभावों द्वारा दिया जाता है तो इनकी आखिर चौधराहट क्यों है ?

क्या कभी आपकी आंखों के सामने वह दर्दनाक दृश्य नहीं आया जब भरे बाजार में हमारी पीठ पर लठ्ठों की बौछार होने के साथ ही हम कूड़ा करकट खाने को मजबूर हैं। ऐसा नहीं है जिले में बहुत सी Cowsheds बड़े सेवाभाव से हमारी सेवा के लिए कृतसंकल्पित है उनके लिए हम उन संचालकों को धन्यवाद देते हैं ।आपको विदित होना चाहिए कि झुंझुनूं जिला पानी के गंभीर संकट का सामना कर रहा है

लोग एक एक बूंद के लिए तरसने के साथ ही टैंकर से पानी डलवाने को मजबूर हैं ऐसी स्थिति में हमें पानी कौन पिलाएं यह भी हमारे लिए संकट की घड़ी है । यदि आशियाना मिल जाए तो समस्या का स्थायी समाधान हो सकता है ।‌ अतः आप उदारमना दानदाताओं को खुला पत्र लिखकर आपसे अपील है कि हमारी समस्या के समाधान को लेकर प्रभावी कदम उठाए ।

                                                                                                                            झुन्झुनू(चंद्रकांत बंका)

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