उप मुख्यमंत्री से मिलने जा रहे आउटसोर्स कर्मियों के सामने झुका प्रशासन, 10 मार्च तक वेतन का वादा
सर्किट हाउस की ओर बढ़ते प्रदर्शनकारियों से प्रशासन का टकराव, पुलिस ने रोका रास्ता
कर्मचारियों की एकजुटता से हड़ताल का दबाव बढ़ा, प्रशासन ने दिया वेतन का लिखित आश्वासन
आखिरकार, प्रशासन झुका: 10 मार्च तक वेतन देने का किया वादा
पुलिस ने एहतियातन लक्ष्मी गार्डन के दरवाजे बंद किए, उप मुख्यमंत्री के काफिले की सुरक्षा बढ़ाई
पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन आदित्य ने कर्मचारियों के संघर्ष को किया समर्थन, प्रशासन की निंदा
झांसी – महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के आउटसोर्स कर्मियों ने अपने वेतन की मांग को लेकर जब सड़कों पर उतरने का निर्णय लिया, तो प्रशासन के हाथ-पांव फूल गए। वेतन की लंबित राशि को लेकर कर्मचारी कई दिनों से परेशान थे, लेकिन जब उन्हें महसूस हुआ कि उनका मुद्दा सुलझाने के लिए प्रशासन और सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठा रही, तो उन्होंने आंदोलन को तेज करने का निर्णय लिया। इस आंदोलन की लहर ने प्रशासन को झुका दिया और आखिरकार, अधिकारियों ने कर्मचारियों को 10 मार्च तक वेतन देने का लिखित आश्वासन दिया।
सर्किट हाउस की ओर कूच: प्रदर्शनकारियों का प्रशासन से टकराव
सुधार की कोई संभावना न देख, आउटसोर्स कर्मी 8 मार्च को इलाईट चौराहे पर एकत्रित हो गए। उनके साथ थे पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन आदित्य, जिनके मार्गदर्शन में ये कर्मी अपनी आवाज़ प्रशासन तक पहुंचाने के लिए सर्किट हाउस की ओर बढ़े। जैसे ही प्रशासन को उनके इरादों का पता चला, एडीएम, नगर मजिस्ट्रेट और एसपी सिटी की अगुवाई में भारी पुलिस बल ने सर्किट हाउस की ओर बढ़ते कर्मचारियों को परशुराम चौक पर रोक लिया। पुलिस की भारी तैनाती और रोक-टोक ने स्थिति को और भी तनावपूर्ण बना दिया।
कर्मचारियों की एकता से हड़ताल का दबाव बढ़ा
पुलिस द्वारा रोके जाने के बावजूद, प्रदर्शनकारी अपनी जगह से हिले नहीं। उनका उद्देश्य था – वेतन की प्राप्ति और प्रशासन की आंखों में आंख डालकर अपनी मांगों को उठाना। इस बीच, पुलिस ने उन्हें लक्ष्मी गार्डन की ओर धकेल दिया, जहां उन्हें वहां बुलाए गए अधिकारियों से बात करने का मौका मिला।
यहां पर एक नया मोड़ आया। मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य डा. मयंक सिंह और सीएमएस डा. सचिन माहौर को बुलाया गया। जब इन अधिकारियों ने कर्मचारियों से बात की, तो उन्होंने उन्हें एक बड़ी राहत दी। प्रधानाचार्य ने कर्मचारियों को वादा किया कि 10 मार्च तक उन्हें दो महीने का वेतन दिया जाएगा। साथ ही, उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि यदि सेवा प्रदाता संस्था ने वादा पूरा नहीं किया, तो उसे ब्लैकलिस्ट कर दिया जाएगा।
प्रशासन को झुकने पर मजबूर किया
आखिरकार, प्रशासन की ओर से इस आश्वासन ने कर्मचारियों को हड़ताल समाप्त करने और काम पर लौटने के लिए प्रेरित किया। कर्मचारियों ने मेडिकल कॉलेज प्रशासन को एक आखिरी मौका देते हुए हड़ताल खत्म करने का निर्णय लिया। इस निर्णय के साथ ही प्रशासन ने राहत की सांस ली, और स्थिति शांत हो गई। कर्मचारियों का संगठन और एकजुटता इस संघर्ष में जीत गया था।
पुलिस प्रशासन की एहतियात: काफिले के मार्ग में रोड़े अटकाने की कोशिश
जब प्रशासन को यह जानकारी मिली कि उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का काफिला अब वहां से गुजरने वाला है, तो पुलिस प्रशासन ने एहतियात बरतते हुए लक्ष्मी गार्डन के मुख्य द्वार को बंद कर दिया। यह कदम उठाया गया ताकि हड़ताली कर्मचारी उप मुख्यमंत्री के काफिले तक न पहुंच सकें और आंदोलन की आग और न भड़क सके।
वेतन के लिए संघर्ष: पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन आदित्य का बयान
उप मुख्यमंत्री के काफिले के निकलने से पहले, पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन आदित्य ने कर्मचारियों के संघर्ष को समर्थन देते हुए कहा कि, “यह प्रदेश सरकार की नकारात्मकता को दर्शाता है। इन कर्मचारियों को हर बार अपनी मेहनत का हक पाने के लिए सड़कों पर उतरना पड़ता है। यह सरकार के लिए शर्म की बात है कि कोरोना जैसे संकट काल में, जब इन कर्मचारियों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए लोगों की सेवा की, तो आज उन्हें अपने अधिकारों के लिए सड़क पर उतरना पड़ रहा है।”
प्रदीप जैन ने आगे कहा, “लेकिन आज, इन कर्मचारियों ने अपनी एकता और ताकत के बल पर प्रशासन को झुकने पर मजबूर कर दिया है। यह एक महत्वपूर्ण जीत है, जो दर्शाता है कि जब लोग एकजुट होते हैं, तो वे अपने अधिकारों के लिए लड़ सकते हैं और जीत सकते हैं।”
कर्मचारी नेताओं का समर्थन: संघर्ष में साथ खड़े लोग
इस आंदोलन के दौरान, सैकड़ों की संख्या में कर्मचारी और कई कांग्रेसी नेता भी शामिल हुए।इन नेताओं ने इस संघर्ष में अपने समर्थन का संदेश दिया और कर्मचारियों के संघर्ष को हर संभव तरीके से सहारा दिया।
अंत में, संघर्ष की जीत: कर्मचारियों की एकजुटता और प्रशासन की हार
कर्मचारियों के इस संघर्ष ने साफ-साफ यह संदेश दिया कि जब तक लोग एकजुट रहते हैं और अपने अधिकारों के लिए खड़े होते हैं, तब तक किसी भी प्रशासन को उनके अधिकारों को अनदेखा करने की हिम्मत नहीं हो सकती। इस संघर्ष ने यह भी साबित कर दिया कि हर कर्मचारी की आवाज़ अहम है, और जब सभी एकजुट हो जाते हैं, तो उन्हें दबाया नहीं जा सकता।
आखिरकार, कर्मचारियों ने हड़ताल खत्म कर दी और काम पर लौट आए। यह जीत केवल कर्मचारियों की नहीं, बल्कि उनके समर्थन में खड़े सभी लोगों की भी थी।