Advocate’s का स्वाभिमान हैं Dr Rajendra Prasad
आज Advocate’s day है। हम जब भी कोई दिवस मनाते है, तो उसका कोई विशेष कारण होता है, कोई संदेश छिपा होता है Advocate’s day को मनाने के पीछे भी महत्वपूर्ण संदेश छिपा है। यह देश के प्रथम राष्ट्रपति एवं भारत रत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद के जन्मदिवस पर मनाया जाता है क्योंकि राजेंद्र बाबू के नाम से प्रसिद्ध राजेंद्र प्रसाद ने मात्र 18 वर्ष की उम्र में ही कोलकाता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा प्रथम स्थान से पास की और फिर कोलकाता के प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लेकर लॉ के क्षेत्र में डॉक्टरेट की उपाधि गोल्ड मेडल के साथ हासिल की।
उन्होंने वकालत में महारत हासिल की और स्वतंत्रता संग्राम में अनेक स्वतंत्रता सेनानियों के मुकदमे लड़े और उन्हें फांसी के फंदे से बचाया। उनकी ही तरह देश के स्वतंत्रता संग्राम में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से लेकर लाला लाजपत राय, सी राजगोपालाचारी, पं जवाहर लाल नेहरू, चितरंजन दास, सरदार वल्लभभाई पटेल, तेज बहादुर सप्रु, गोविंद वल्लभ पंत, आसफ अली, भुला भाई देसाई, डॉ बीआर अम्बेडकर जैसी महान विभूतियां वकालत के पेशे से अपने जीवन की शुरुआत करने वाले रहे हैं, भले ही बाद में यह लोग भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर भी रहे।
देश की एकता व अखण्डता के लिए सर्वस्व न्योछावर करने वालों में Advocate’s का कोई सानी नहीं है। Advocate’s ही वो कड़ी थे, जिन्होंने ना जाने कितने स्वतंत्रता सेनानियों को अंग्रेजों के क्रुर राज में फांसी के फंदे पर पहुंचने से रोका। उन्हीं अधिवक्ताओं के पुरोधा डॉ राजेंद्र प्रसाद के जन्मदिवस पर ना केवल देश आजादी एवं विकास में अधिवक्ताओं और राजेंद्र बाबू के योगदान को याद करने एवं उनके महत्व को समझने के लिए हम अधिवक्ता दिवस मनाते हैं। राजेन्द्र बाबू ने राष्ट्रपिता एवं अधिवक्ता महात्मा गांधी की निष्ठा, समर्पण एवं साहस से बहुत प्रभावित होकर 1928 में कोलकाता विश्वविद्यालय के सीनेटर का पदत्याग कर दिया।
गांधीजी ने जब विदेशी संस्थाओं के बहिष्कार की अपील की थी तो उन्होंने अपने पुत्र मृत्युंजय प्रसाद जो एक अत्यंत मेधावी छात्र थे उन्हें कोलकाता विश्वविद्यालय से हटाकर बिहार विद्यापीठ में दाखिल करवाया था। वे चाहते तो धन का ढेर इकट्ठा कर सकते थे लेकिन उन्होंने देशसेवा का विकल्प चुना।
Advocate’s ने स्वतंत्रता संग्राम में सर्वाधिक योगदान दिया
उनकी ही तरह अनेक Advocate’s ने स्वतंत्रता संग्राम में सर्वाधिक योगदान देते हुए फिरंगी सरकार से जमकर लोहा लिया। ये बातें आज भी युवा Advocate’s को रोमांचित करती हैं। इतिहास की बात करें तो आजादी की जंग के समय से पहले भी वकालत इंग्लैंड का राजशाही पेशा रहा है। संभ्रात घरानों के लोग ही वकालत करते थे। वकील के गाउन में पीछे दो जेब होती थी, इन पीछे की दो जेबों का गूढ़ अर्थ था।
वो यह है कि अपने क्लाइंट से कोई राशि नहीं मांगी जाना अर्थात क्लाइंट जो चाहे अपनी इच्छानुसार जेब में पारिश्रमिक डाल जाए। आज भी वकालत के पेशे में नैतिकता व सिद्धान्त की पालना करने वाले अधिवक्ता अलग ही मान-सम्मान पाते हैं। कुछ लोग Advocate’s के विरोध में यह तर्क भी देते नजर आते हैं कि दो पक्षों में से एक पक्ष का अधिवक्ता तो गलत या झूठ होता ही है लेकिन उन्हें यह समझना चाहिए कि अधिवक्ता का कार्य केवल अपने क्लाइंट के पक्ष को मजबूती से रखना है। अधिवक्ता का कार्य केवल न्याय के मूल सिद्धांतों की पालना करवाना है, जिनमें से एक सिद्धांत यह भी है कि भले ही कोई दोषी बचकर निकल जाए लेकिन किसी भी निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए।
इसलिए अधिवक्ता स्वयं भी अपने पेशे पर गर्व करें और आमजन भी उनका महत्व समझें कि जब-जब कार्यपालिका या विधायिका से उन्हें परेशानी हुई है तब-तब न्यायपालिका में Advocate’s के जरिए ही उनकी सुनवाई हुई है और देश में लोकतंत्र की गरिमा अक्षुण्ण बनी रही है। वस्तुत: अधिवक्ता आज भी मानवतावादी विचारों और मानवीय स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत हैं। दरअसल भारत की सारी न्याय व्यवस्था अधिवक्ता के कंधो पर ही टिकी हुई है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि न्याय मिल ही इसलिए रहा है क्योंकि अधिवक्ता उपलब्ध हैं। अधिवक्ता न्याय व्यवस्था के महत्वपूर्ण अंग है, कभी-कभी तो वे निर्णय देने वालों से उच्च स्तरीय प्रतीत होते हैं क्योंकि निर्णय देने से अधिक जिम्मेदारी का कार्य सही ढंग से पैरवी करना है।
सही ढंग से पैरवी करने का कौशल पाना सरल कार्य नहीं है। अधिवक्ता ही आपके वैधानिक और मौलिक अधिकारों के लिए न्यायालय तक आपको ला सकता है और न्याय की सुखद अनुभूति से महका सकता है। अगर अधिवक्ता न हो तो भारत की जनता को न्याय मिलना असंभव सा हो जाए। इस योगदान पर Advocate’s को भी खुद के पेशे पर गर्व होना चाहिए, उन्हें अपने पेशे के साथ भी न्याय करना चाहिए। क्योंकि जब तक वे खुद अपने पेशे के साथ न्याय नहीं करेंगे, अपने क्लाइंट को भी न्याय नहीं दिलवा पाएंगे। वहीं जनता को भी उनके योगदान को समझना चाहिए। Advocate’s ने हर युग में मानवता के हितार्थ कार्य किये हैं। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर वर्तमान के इस युग में भी समतावादी सिद्धांत और मानवतावादी विचारों के लिए अधिवक्तागण प्रयासरत हैं। कानून व न्याय में विश्वास रखने वाले प्रत्येक अधिवक्ता व आमजन को अधिवक्ता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ महान कानूनविज्ञ स्वतंत्रता सेनानी व भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद को कोटि कोटि नमन-वन्दन।
मनोज मील, अध्यक्ष, जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, झुंझुनू
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