Ayodhya के राम मंदिर के जुनून को लेकर अक्टूबर 1990 18 वर्षीय सुभाष सोनी नीमकथाना से ट्रेन से निकल पड़े
झुंझुनू । राम मंदिर का जुनून लेकर अक्टूबर 1990 में गुड़ा के एक 18 वर्षीय युवक सुभाष सोनी ट्रेन द्वारा नीमकाथाना से Ayodhya के लिए रवाना हुए। जत्थे में कुल 27 कारसेवक थे। कानपुर में वे साथियों से बिछुड़ गए। पुलिस से बचने के लिए कानपुर से दूसरी गाड़ी में आगे की यात्रा के लिए रवाना हुए। परन्तु वह गाड़ी रात को कहीं भी नहीं रुकी।
प्रत्येक डिब्बे में सशस्त्र बलों के 6-6 जवान तैनात होने के कारण चैन खींचने का विचार भी नहीं किया। सूर्योदय के समय जब गाड़ी खलीलाबाद स्टेशन पर रुकी तो पुलिस से निवेदन करने पर हम वहां उतर गए। यह स्टेशन अयोध्या से लगभग 100 किमी आगे गोरखपुर के पास था। खलीलाबाद स्टेशन पर एक सिपाही साइकिल द्वारा जासूसी करके चला गया।
कुछ देर बाद मुख्य सडक़ पर पहुंचने ही वाले थे हमको रोक लिया गया और एक ट्रक में बैठा कर चुरेब पुलिस थाने ले आए। सिर दर्द का बहाना करके बाहर निकले तथा एक संघ के कार्यकर्ता से मिले। उन्हें आप बीती सुनाई। एक विवाह में शामिल होने की बात को लेकर मजिस्ट्रेट द्वारा छोड़ दिया गया था।
अगले दिन सुबह Ayodhya में कफ्र्यू लगा दिया गया था तो उन्हें दो दिन रुकना पड़ा। दो दिन बाद हरैया नामक स्थान पर पहुंचे। वहां से चलकर विक्रमजोत स्थान पर आए जहां से अयोध्या मात्र 10 किमी दूर था। वहां पर काफी संख्या में पुलिस कर्मी तैनात थे। काफी आग्रह किया परन्तु आगे जाने नहीं दिया। कुछ देर बाद उन्होंने हमें यूपी परिवहन की बस में बैठा दिया गया हम गोरखपुर पहुंच गए। फिर वहां से घर आ गए।
दिसम्बर 1992 में द्वितीय कार सेवा के लिए जयपुर से मरुधर एक्सप्रेस में बिना किसी रुकावट के Ayodhya पहुंच गए
दिसम्बर 1992 में द्वितीय कार सेवा के लिए जयपुर से मरुधर एक्सप्रेस में बिना किसी रुकावट के Ayodhya पहुंच गए। राम जन्मभूमि पर बने विवादित ढांचे में विराजमान रामलला के दर्शन व परिक्रमा करने का सौभाग्य मिला। 5 दिन तक अयोध्या में खूब भ्रमण किया। कई संतों की सिद्धियों को देखने का सौभाग्य मिला।
6 दिसम्बर 1992 को दोपहर में देखते ही देखते अचानक कारसेवक ढांचे पर चढ़ कर गुम्बद को तोडऩे लगे। शाम तक धवस्त कर दिया। अर्धरात्रि तक सारा मलबा भी हटा दिया गया था। मलबे में हिन्दू संस्कृति की प्रतीक जो वस्तुएं निकली वे Ayodhya के संग्रहालय में रखी गई। अगले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उसी स्थान पर मंदिर का निर्माण शुरू कर दिया गया था। उसके बाद सभी कार सेवक अपने अपने घरों को लौट गए जिनमें वे भी शामिल थे।
संजय सोनी, झुंझुनू
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