पत्रकार मनोज जैन
बडवाह। क्षेत्र में विधानसभा चुनाव का आगाज जोर-शोर से हो चुका है। दोनो चिर-परिचित प्रतिद्वंद्वी भाजपा-कांग्रेस के दावेदार स्वयं को योग्य उम्मीदवार साबित करने का कोई मौका नही छोड़ रहे। फिर चाहे कोई शादी समारोह,शोक,धार्मिक एवं सामाजिक आयोजन या किसी का जन्मदिन ही क्यों ना हो उसमे शरीक हो भीड़ के साथ फोटो वायरल करवाकर सस्ती लोकप्रियता बटोरने में भी संकोच नही कर रहे। कुछ तो जन समस्या जानने विधानसभा के दौरे पर निकल पड़े हैं जैसे जीते तो क्षेत्र में विकास की गंगा बहा देंगे।
वहीं कुछ बाहुबली दावेदार ” रेवड़ी कल्चर ” की तर्ज पर स्वयं को बहुत बड़ा समाजसेवी एवं दानदाता साबित करके समर्थन जुटाने तथा टिकिट लाने की जुगाड़ में लगे हुए हैं। इसमे गलती इनकी भी नही है बाहुबल के दम पर टिकिट लाना और उसके बल पर चुनाव जीतना अब बडवाह विधानसभा की नियति बन चुकी है ? फिर आपका सामाजिक जीवन भले ही शून्य क्यों ना हो या आपको राजनीति में कदम रखे चार दिन ही क्यों ना हुए हो आपको प्रबल दावेदार बताने वालों की लंबी फेहरिस्त जमा हो जाती है। इस प्रकार एक बार टिकिट मिला फिर चंद भीतरघातियों और पेशेवर छुटभैया नेताओ के सहारे नैया भी पार हो ही जाती है ? उसके बाद विकास के सब्जबाग की आड़ में वह व्यापार शुरू होता है जिसमें विकास का तो दम ही घुटकर रह जाता है ? बडवाह विधानसभा में वर्षो से चली आ रही इस राजनीतिक परंपरा के चलते यहां की मूल आवश्यकताओं शिक्षा,स्वास्थ और रोजगार के मामले में क्षेत्र काफी पिछड़ चुका है। आज एक ओर उच्च शिक्षा एवं रोजगार के लिए युवा पीढ़ी इंदौर की ओर रुख कर रही है तो वहीं रहवासियों के बेहतर ईलाज के लिए भी इंदौर ही एकमात्र विकल्प है। शेष यहां चाटुकारिता करके अपना काम चला रहे है तो जिनके पास यह हुनर भी नही वे नशे की जद में खत्म हो रहे है ? कुल मिलाकर आजाद भारत की इस विधानसभा की आजादी आज भी गिने-चुने मजबूत हाथों में परतंत्र है।बहरहाल देखना यह है कि विकास की बांट जोह रही बडवाह की जनता इस बार दलगत राजनीति से परे योग्य चयन करती है या फिर… गुलाबजामुन खाएगा ?