महान सिख योद्धा Sardar Jassa Singh Ahluwalia की 306वीं जयंती मनाई गई

Aanchalik khabre
By Aanchalik khabre
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Sardar Jassa Singh Ahluwalia
Sardar Jassa Singh Ahluwalia

सिख फेडरेशन के सर्वोच्च कमांडर Sardar Jassa Singh Ahluwalia की जयंती पर उनकी प्रतिमा पर किया माल्यार्पण

कुरुक्षेत्र:  3 मई कपूरथला रियासत के संस्थापक व महान सिख योद्धा Sardar Jassa Singh Ahluwalia की 306वीं जयंती पर स्थानीय अहलूवालिया चौक पर मनाई गई। Sardar Jassa Singh Ahluwalia की जयंती पर अहलूवालिया सभा के प्रधान नरेंद्र वालिया, उप प्रधान अशोक रोशा, प्रदीप रोशा, के पी वालिया, यशपाल वालिया, प्रवीण वालिया, रणधीर वालिया, प्रदीप वालिया, महिपाल वालिया, सुरेन्द्र वालिया,अनिल वालिया, वीरेन्द्र वालिया, देवेन्द्र वालिया, तरुण वालिया, अनिरुद्ध वालिया, अश्विनी वालिया, सौरभ वालिया, अनुज वालिया, हितेश वालिया, माधव वालिया, राधव वालिया आदि ने आहलूवालिया चौंक पर उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया।

 

Sardar Jassa Singh Ahluwalia की जयंती पर अहलूवालिया सभा के प्रधान ने किया माल्यार्पण
Sardar Jassa Singh Ahluwalia की जयंती पर अहलूवालिया सभा के प्रधान ने किया माल्यार्पण

 

अहलूवालिया सभा के प्रधान नरेंद्र वालिया ने बताया कि सिख फेडरेशन के सर्वोच्च कमांडर Sardar Jassa Singh Ahluwalia का जन्म  3 मई 1718 को पाकिस्तान में लाहौर में आहलू गांव में हुआ था। वर्ष 1753 में उन्होंने 2200 युवा हिंदू लड़कियों को अहमद शाह अब्दाली के चंगुल से मुक्त करवाया था। इस कार्रवाई से उन्होंने भारतीयों के दिल में एक विशेष स्थान हासिल किया और उन्हें मुक्तिदाता का नाम भी दिया गया। उन्होंने वर्ष 1761 में लाहौर पर विजय प्राप्त की और 1762 में अफगान बलों के खिलाफ युद्ध में महान होलोकॉस्ट (वड्‌डा घल्लूघारा) में भयंकर लड़ाई लड़ते शरीर पर दो दर्जन घावों का सामना भी किया। 1764 में उनके द्वारा खालसा ने सरहिंद पर विजय प्राप्त की।

इस प्रकार छोटे साहिबाजादा स. फतेह सिंह और गुरु गोबिंद सिंह जी के जोरावार सिंह के शहीद का बदला लिया। उनके तहत दल खालसा ने पंजाब को मुगलों के 800 साल के शासन से मुक्त कर दिया। उन्होंने 1783 में दिल्ली में लाल किले पर विजय प्राप्त की और तख्त-ए-दीवान-आम (हिंदुस्तान के सिंहासन) पर विराजमान हुए। उन्होंने अहमद शाह अब्दाली के अमानवीय हमले के बाद अमृतसर में स्वर्ण मंदिर की महिमा बहाल की और 1764 में दूसरी बार पुनर्निर्माण के लिए दरबार साहिब की नींव रखी थी।

                                                                                                                                                                     कुरुक्षेत्र से अश्विनी वालिया

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