Chitrakoot News: महंगाई की मार के बाद बढ़ती School फीस से कराहता अभिभावक

Aanchalik khabre
By Aanchalik khabre
3 Min Read
Chitrakoot News: महंगाई की मार के बाद बढ़ती School फीस से कराहता अभिभावक
Indian School: आज के समय में बच्चों को पढ़ाना आसान नहीं रह गया है, मां-बाप की पूरी कमाई School की फीस भरने में ही निकल जाती है |

Private School केवल व्यावसायिक शिक्षा दे रहे

हर मां-बाप का सपना होता है कि वो अपने बच्चे को अच्छे School में पढ़ाएं, यही वजह है कि Private School की फीस आसमान छू रही है| स्कूलो मे शिक्षण शुल्क के अलावा लगने वाले अनेकों प्रकार के शुल्क जैसे बिल्डिंग मेंटिनेस, गेम्स, विज्ञान प्रदर्शनी, लाइब्रेरी चार्ज,एक्टीविटीज जैसे कई अन्य प्रकारों से शुल्क की वसूली की जाती है।
 Chitrakoot News: महंगाई की मार के बाद बढ़ती School फीस से कराहता अभिभावक
इतना ही नहीं ट्यूशन फीस, स्टेशनरी का खर्चा, यूनिफॉर्म खरीदने स्कूल बस टैक्सी आदि में होने वाले अत्यधिक खर्चों से  पेरेंट्स की कमर टूट जाती है। आम आदमी की साल भर के कमाई से भी कहीं ज्यादा है। तत्पश्चात भी विद्यालयों की पठन पाठन के स्तर की जिम्मेदारी विद्यालयों की नहीं इसलिए कोचिंग का दबाव भी अभिभावकों पर अत्यधिक पड़ता है। विद्यालय सिर्फ रंग रोगन बिल्डिंग आदि पर सारा फोकस रखता है ।
बेहतर शिक्षण बनाने के तमाम प्रयासों का दिखावा मात्र लक्ष्य से कोसों दूर नजर आ रहे हैं। सरकारी स्कूलों में सरकार का अंकुश नहीं, शिक्षकों का वेतन प्राइवेट स्कूलों के शिक्षको से दो गुने से चार गुना होने के बाद भी शिक्षा भगवान भरोसे । इसका सबसे बड़ा कारण है कि शिक्षकों के खुद के बच्चे अपने ही स्कूल में दाखिला नहीं दिलाते, प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाते हैं इससे शिक्षकों की गुणवत्ता का आकलन किया जा सकता है।
Chitrakoot News: महंगाई की मार के बाद बढ़ती School फीस से कराहता अभिभावक
यदि सरकार सभी सरकारी नौकरियों में कार्यरत एवं खादीधारियों के बच्चों को सरकारी विद्यालयों में एडमिशन का कानून बनाकर शक्ति के साथ पालन कराए तो सरकारी विद्यालयों की काया रातों-रात पलट सकती है, पर यह संभव नहीं | इसमें सबसे अधिक परेशानी मध्यम वर्गीय अभिभावकों को होती है। कहीं ना कहीं जनता भी दोषी है जब अपने ऊपर ऐसी स्थितियां आती हैं आर्थिक चोट लगती है तब ही कराहता है। तब ही समाज का जिम्मेदार नागरिक होने की बात करता है। चार दिन बाद फिर वही पुराना ढर्रा। समाज के चार दिनों वाले जिम्मेदार, सामाजिक संगठन एवं राजनेता कभी भी बेहतर शिक्षा स्वास्थ्य के लिए अगुवाई नहीं करते।
चित्रकूट से प्रमोद मिश्रा
Visit Our Social Media Pages
Share This Article
Leave a comment